तप से आत्मा निर्मल और शुद्ध होती है : स्वामी अवधेशानन्दं जी महाराज

पूज्य सद्गुरुदेव आशिषवचनम्
            ।। श्री: कृपा ।।
🌿
 पूज्य “सद्गुरुदेव” जी ने कहा – आध्यात्मिक जीवन उत्कृष्ट एवं आत्मोन्नति कारक है।अज्ञान निवृत्ति, आत्म-जागरण एवं इहलौकिक-पारलौकिक अनुकूलताओं का सृजन आध्यात्मिक जीवनशैली द्वारा ही सम्भव है। अतः अपने अंतःकरण को आध्यात्मिक बनायें ..!  जीवन की समस्त समस्याओं के समाधान का मार्ग जिस दिशा में है, वह है – अध्यात्म। अहिंसा अध्यात्म की आत्मा है। अध्यात्म विश्व का सर्वोपरि विज्ञान है। अध्यात्म के पास प्रत्येक समस्या का केवल समाधान है, अपितु हर युग में अध्यात्म ने ही प्राणीमात्र को सही और गलत की पहचान का ज्ञान कराया है। वर्तमान विज्ञान अध्यात्म का शिशु है और विज्ञान इस बात को स्वीकार भी करा चुका है।
अध्यात्म में धर्म सिद्धांतों के द्वारा और उनकी परिभाषाओं के प्रयोजन से कोई विवाद नहीं होता, अपितु मनुष्य ईश्वरीय प्रार्थना-ध्यान के अवलंबन से एक-दूसरे के निकट अनुभूत करते हैं। अध्यात्म विश्व का सर्वोपरि विज्ञान है। आध्यात्मिक अन्त:करण का निर्माण कर मनुष्य असीम सामर्थ्य और अनन्त ऊर्जा का अधिकारी बन सकता है ! आध्यात्मिक यात्रा स्वभाव की यात्रा है। शुभता-दिव्यता और जीवन सिद्धि के सम्पूर्ण सूत्र अध्यात्म में ही समाहित हैं। अध्यात्म स्वभाव की यात्रा है। मनुष्य सत्ता में विद्यमान सनातन महासत्ता सर्वत्र चित-घन, पूर्ण-परमानंद स्वरूप है।
यह विश्वरूपा प्रकृति उसका ही एक धर्म परिणाम है, सनातन का धर्म परिणाम सनातन होता है। परम सब प्रकार से पूर्ण है, अतः उसमें कुछ भी अपूर्णता नहीं। इस सत्य का अनावरण है – अध्यात्म। हमारी संस्कृति की जड़ें ही अध्यात्म है। मनुष्य-जीवन ईश्वरीय उपहार है। अतः अपने वास्तविक स्वरूप का बोध और जीवन के प्रयोजन की पूर्ति ही जीवन का लक्ष्य हो यही परम पुरुषार्थ है …!
🌿 
पूज्य “आचार्यश्री” जी ने कहा – उचित आहार, व्यायाम, तप आदि के द्वारा अंतःकरण को पवित्र रखना चाहिए। तप अध्यात्म साधना का प्राण है। तप से आत्मा निर्मल और शुद्ध होती है, जिसमें केवल शरीर तपता है। जिस तप में मन नहीं तपता, बुद्धि नहीं तपती तब उसका फल अभिमान है। तप का अर्थ है – हमारा आचरण सत्य हो, क्योंकि सत्य ही तप है। सत्य नित्य विद्यमान सत्ता है। जैसे भगवान नित्य विद्यमान सत्ता हैं ठीक वैसे ही सत्य भी नित्य विद्यमान सत्ता है। सत्य भगवान का साकार रूप है। कलयुग में नाम स्मरण की बड़ी महिमा है। यह अत्यंत सहज साधन है। मंत्र भगवान की सूक्ष्म सत्ता है।
भगवान का वो सूक्ष्म बीज है। ये बिल्कुल सत्य है कि भगवान की कोई सूक्ष्म सत्ता यदि देखनी हो तो वह मंत्र में छुपी हुई है। भगवान मंत्र में छुपे हैं और देवता मंत्र में छुपे हैं। मंत्र में उनका वास है। मंत्र से हम इष्ट के साथ एकाकार हो जाते हैं। पूज्य “आचार्यश्री” जी ने कहा – अध्यात्म अपने स्वभाव में लौटने की यात्रा का नाम है। जहां शांति, आनन्द और स्थाई समाधान है।अध्यात्म भीतर की ऊर्जा को, स्वयं की आग को जगाता है।
यह बताता है कि कैसे विषम और प्रतिकूल परिस्थितियों में बड़ा बना जाएं? स्वयं का बाहरी विकास विज्ञान है और भीतरी विकास अध्यात्म है। अध्यात्म की प्रेरणा पूरी वसुधा को एक परिवार मान कर चलने की है। बहिर्जगत में विज्ञान ने दुनिया को एक सूत्र में आबद्ध करने का आधार प्रस्तुत किया है तो अंतर्जगत में वही प्रयोजन अध्यात्म को पूरा करता है। अध्यात्म के बिना विज्ञान अधूरा है। जीवन की स्वाभाविक मांग अध्यात्म है।
जब उसकी पूर्ति होने लगती है, तब सहसा प्रसन्नता, आनंद, उल्लास, जीवन में धन्यता, उत्सव-धर्मिता, स्थायित्व, प्रसन्नता आदि अनुभूत होने लगती है, जिसके आने पर भ्रम-भय नहीं रहता, शोक नहीं रहता, फिर द्वंद भी कहाँ रहता है? लाभ-हानि, जन्म-मरण, यश-अपयश इन द्वंदों से ऊपर उठना ही अध्यात्म है। जो चेतना को प्रसादिक बना दे, वही तो अध्यात्म है। अतः अध्यात्म स्वभाव का नाम है। जो हमें स्वभाव की ओर, अपने अस्तित्व की ओर, अपनी सत्ता की ओर ले आए, उसे ही अध्यात्म कहते हैं …।

Comments are closed.