वर्ल्ड फूड प्रोग्राम और ईशा आउटरीच खाद्य और पोषण सुरक्षा पर सहयोग करेंगे

नई दिल्ली: संयुक्त राष्ट्र विश्व खाद्य कार्यक्रम (WFP) और ईशा आउटरीच ने भारत में टिकाऊ खाद्य और पोषण सुरक्षा पर वार्तालाप, जागरूकता, और पहुंच पैदा करने के लिए सहयोग करने के लिए एक समझौता ज्ञापन (MoU) पर हस्ताक्षर किए हैं।

 

 

‘दुनिया में हर जिम्मेदार वैज्ञानिक और यूएन संगठन स्पष्ट तौर पर कह रहे हैं कि हमारे पास 87-100 फसलें ही बची हैं, जिसका मतलब है कि धरती पर खेती योग्य मिट्टी लगभग 45-50 साल तक ही चलेगी। 2045 तक, हम आज की अपेक्षा 40 प्रतिशत कम खाद्यान्न उगा पाएंगे और हमारी आबादी 9.3 अरब होगी। अगले 25 सालों में खाद्यान्न की जो कमी हो सकती है – उसके परिणाम अकल्पनीय हैं। जब भोजन की कमी होगी तो दुनियाभर में गृह युद्ध छिड़ जाएंगे। हम अपने पीछे अपने बच्चों के लिए ऐसी दुनिया नहीं छोड़कर जाना चाहते हैं,’ आध्यात्मिक नेता और ईशा फाउण्डेशन के संस्थापक, सद्गुरु ने कहा।

 

 

देश की राजधानी में आज  WFP-भारत के प्रतिनिधि और कंट्री-डाइरेक्टर, श्री बिशो पराजुली और ईशा आउटरीच की डाइरेक्टर सुश्री मोमिता सेन शर्मा के बीच एक MoU पर हस्ताक्षर किए गए।

 

 

श्री पराजुली ने कहा, ‘हम ईशा आउटरीच के साथ सहयोग को लेकर बहुत उत्साहित हैं, क्योंकि हम भूख और कुपोषण को संभालने के लिए टिकाऊ परिपाटी और दृष्टिकोण पैदा करने, और दीर्घकालिक खाद्य सुरक्षा पैदा करने की जरूरत पर एकमत हैं।’

 

 

‘सद्गुरु जी द्वारा स्थापित ईशा के दुनियाभर में 1.1 करोड़ स्वयंसेवी हैं, जिस कारण इसके मानव सशक्तिकरण और समुदाय पुनरुत्थान के मॉडल के जरिए, महत्वपूर्ण मुद्दों पर गहन और टिकाऊ प्रयास संभव है, उन्होंने आगे कहा।

 

 

MoU WFP की तकनीकी और वैश्विक विशेषज्ञता का लाभ उठाएगा, जिसे 2020 में भूख को संभालने और विश्व शांति में योगदान करने के इसके काम पर नोबल शांति पुरस्कार प्रदान किया गया था, और साथ ही ईशा आउटरीच के जनता के साथ जुड़ने के विशाल कार्यक्रम और अभियानों का अनुभव उपयोगी होगा।

 

 

 

‘इस साझेदारी के जरिए, खासकर भारत में ये दो संगठन, इस देश में खाद्यान्न पैदा करने वाली खेती की मिट्टी के चिंताजनक क्षय को संभालने मे मदद करने के लिए जागरूक धरती अभियान में भी सहयोग करेंगे,’ सुश्री शर्मा ने कहा। ‘मिट्टी के इस क्षय के विस्तृत परिणाम हैं, जिसमें देश की दीर्घकालिक खाद्य और पोषण सुरक्षा, जलवायु परिवर्तन, पानी, जैवविविधता हानि, और ग्रामीण गरीब की आजीविका की दरिद्र अवस्था शामिल हैं,’ उन्होंने आगे कहा।

 

 

 

अगले महीने, सद्गुरु मिट्टी को बचाने के लिए वैश्विक जागरूक धरती आंदोलन शुरू करेंगे। मिट्टी बचाओ आंदोलन दुनिया के देशों के द्वारा अपने देशों में मिट्टी को पुनर्जीवित करने के लिए नीति-संचालित तत्काल कार्यवाही की वकालत करेगा। मरुस्थलीकरण रोकने के लिए संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन (UNCCD) के मुताबिक 2050 तक धरती की 90 प्रतिशत से अधिक मिट्टी बेकार बन सकती है, जिससे दुनियाभर में भोजन और पानी की कमी का अनर्थकारी संकट आ सकता है।

 

 

 

सद्गुरु और श्री पराजुली के बीच, ‘एक लोग। एक धरती। एक समाधान – समय की मांग’ विषय पर एक संवाद के दौरान MoU पर हस्ताक्षर किए गए। इस संवाद में यूएन संगठन और दूसरे गणमान्य लोग उपस्थित थे।

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