न्यूज़ डेस्क : स्नेहा मोहनदास फूडबैंक नाम से अभियान चलाती हैं जो बेघरों को खाना देने का काम करता है। उन्होंने अपनी कहानी साझा करते हुए लिखा, ‘आपने सोचने के लिए खाना जरूरी है के बारे में सुना होगा। अब समय है कि इसपर कार्य किया जाए और गरीबों को एक बेहतर भविष्य दिया जाए। मुझे अपनी मां से प्रेरणा मिली जिन्होंने बेघरों को खाना खिलाने की आदत डाली। मैंने फूडबैंक इंडिया नाम के अभियान की शुरुआत की। भूख मिटाने की दिशा में मैंने स्वयंसेवियों के साथ काम किया जिनमें से ज्यादातर विदेश में रहते हैं। हमने 20 से ज्यादा सभाएं की और अपने काम के जरिए कई लोगों को प्रभावित किया। हमने साथ में मिलकर खाना बनाने, कुकिंग मैराथन, स्तनपान जागरुकता जैसी गतिविधियों की शुरुआत की। मुझे तब सशक्त महसूस होता है जब मैं वह करती हूं जिसका मुझे शौक है। मैं अपने देश के नागरिकों खासकर महिलाओं को आगे आने और मेरे साथ हाथ मिलाने के लिए प्रेरित करना चाहती हूं। मैं सभी से आग्रह करती हूं कि कम से कम एक जरूरतमंद व्यक्ति को भोजन कराएं और एक भूख मुक्त ग्रह में योगदान दें।’
मालविका अय्यर ने अपनी कहानी बताते हुए कहा, ’13 साल की उम्र में एक बम धमाके में मैंने दोनों हाथ गंवा दिए और पैर भी बुरी तरह से जख्मी हो गए थे। इसके बावजूद मैंने काम किया और अपनी पीएचडी की पढ़ाई की। किसी चीज को छोड़ देना विकल्प नहीं होता है। अपनी सीमाओं को भूल जाइए और विश्वास और आशा के साथ दुनिया में कदम रखते रहिए। मेरा मानना है कि शिक्षा परिवर्तन के लिए अपरिहार्य है। हमें भेदभावपूर्ण रवैये को लेकर युवाओं के दिमाग को संवेदनशील बनाना होगा। हमें विकलांग लोगों को कमजोर या दूसरे पर निर्भर दिखाने की बजाए उन्हें रॉल मॉडल के तौर पर दिखाना चाहिए। मनोवृत्ति विकलांगता को नष्ट करने की आधी लड़ाई है। माननीय प्रधानमंत्री ने महिला दिवस पर मुझे मेरे विचारों को प्रसारित करने के लिए चुना है। इससे मुझे विश्वास हो गया है कि विकलांगता के मामले में भारत पुराने अंधविश्वासों को खत्म करने के लिए सही रास्ते पर चल रहा है।’
जम्मू कश्मीर की रहने वाली आरिफा ने अपनी कहानी बताते हुए उन्होंने कहा कि मैंने हमेशा कश्मीर के पारंपरिक शिल्प को पुनर्जीवित करने का सपना देखा क्योंकि यह स्थानीय महिलाओं को सशक्त बनाने का एक साधन है। मैंने महिला कारीगरों की स्थिति देखी और इसलिए मैंने नमदा शिल्प को पुनर्जीवित करने का काम शुरू किया। मैं कश्मीर से आरिफा हूं और यह मेरी कहानी है। उन्होंने बताया, ‘जब परंपरा और आधुनिकता का मिलन होता है तब चमत्कार होते हैं। मैंने अपने काम में इसका अनुभव किया है। इसे आधुनिक बाजार की मांग के अनुरूप बनाया गया है। मेरी पहली व्यावसायिक गतिविधि नई दिल्ली में हस्तनिर्मित वस्तुओं की प्रदर्शनी में भाग लेना था। इस प्रदर्शनी से अच्छे ग्राहक और एक टर्नओवर मिला।’
कल्पना रमेश पानी संरक्षण और वर्षा जल संचयन का काम करती हैं। अपनी कहानी बताते हुए उन्होंने कहा, ‘छोटी कोशिशें बहुत बड़ा असर डाल सकते हैं। पानी एक मूल्यवान चीज है जो हमें विरासत के तौर पर मिली है। हमारी आने वाली पीढ़ियों को इससे वंचित न होने दें। जिम्मेदारी से पानी का उपयोग, वर्षा जल का संचयन करें, झीलों को बचाएं, उपयोग किए गए पानी को रिसाइकल करें और जागरूकता पैदा करें। मैंने कभी सोचा भी नहीं था कि मैं चिड़ियों को वापस किसी झील में ला सकती हूं या प्रधानमंत्री के अकाउंट से ट्वीट कर सकती हूं। दृढ़ संकल्प के साथ असंभव को प्राप्त किया जा सकता है। हम जल संसाधनों के प्रबंधन पर सामूहिक कार्रवाई के साथ समुदायों में बदलाव ला सकते हैं। आइये हम परेशानी को खत्म करने वाले बनें।’
विजया पवार ग्रामीण महाराष्ट्र के बंजारा समुदाय से ताल्लुक रखती हैं। वह दो दशकों से गोरमाटी कला के क्षेत्र में कार्य कर रही हैं। उन्होंने अपनी कहानी साझा करते हुए लिखा, ‘गोरमाटी कला को बढ़ावा देने के लिए पंतप्रधान नरेंद्र मोदी जी ने न केवल हमें प्रोत्साहित किया बल्कि हमारी आर्थिक सहायता भी की। ये हमारे लिए गौरव की बात है। इस कला के संरक्षण के लिए मैं पूरी तरह से समर्पित हूं और महिला दिवस के अवसर पर गौरवान्वित महसूस कर रही हूं।
छठवीं महिला कलावती देवी हैं, वह कानपुर की रहने वाली हैं। अपनी कहानी साझा करते हुए कलावती देवी ने लिखा कि देश की बहन, बेटी और बहुओं को मेरा यही संदेश है कि समाज को आगे ले जाने के लिए ईमानदारी से किया गया प्रयास कभी निष्फल नहीं होता। इसलिए बाहर निकलिए। अगर कोई कड़वी भाषा बोलता है तो उसे बोलने दीजिए। अगर अपने लक्ष्य को पाना है तो पीछे मुड़कर नहीं देखा करते हैं।
स्वस्थ रहने के लिए स्वच्छता जरूरी है। इसके लिए लोगों को जागरूक करने में थोड़ा समय जरूर लगा। लेकिन मुझे पता था कि अगर लोग समझेंगे तो काम आगे बढ़ जाएगा। मेरा अरमान पूरा हुआ, स्वच्छता को लेकर मेरा प्रयास सफल हुआ। हजारों शौचालय बनवाने में हमें सफलता मिली है।
मैं जिस जगह पे रहती थी, वहां हर तरफ गंदगी ही गंदगी थी। लेकिन दृढ़ विश्वास था कि स्वच्छता के जरिए हम इस स्थिति को बदल सकते हैं। लोगों को समझाने का फैसला किया। शौचालय बनाने के लिए घूम-घूमकर एक-एक पैसा इकट्ठा किया। आखिरकार सफलता हाथ लगी।
सातवीं महिला हैं वीणा देवी, जो मुंगेर की रहने वाली हैं। उन्होंने अपनी कहानी साझा करते हुए लिखा कि आज मुंगेर की महिलाएं पूरे देश के सामने एक मिसाल पेश कर रही हैं। घर में खेती से लेकर उपज को हाट में बेचने तक सारा जिम्मा खुद अपने कंधों पर उठाती हैं। इसलिए मैं देश की सभी महिलाओं से यही कहूंगी- बाहर निकलिए, खुद काम कीजिए और तब देखिए कितना अच्छा लगता है।
उन्होंने आगे लिखा कि आज महिलाएं किसी भी क्षेत्र में पीछे नहीं हैं। अगर देश की नारी शक्ति ठान ले तो घर के अपने कमरे से ही अपनी यात्रा शुरू कर सकती है। इसी खेती की वजह से मुझे सम्मान मिला। मैं सरपंच बनी। मेरे लिए खुशी की बात है कि अपने जैसी कई महिलाओं को ट्रेनिंग देने का अवसर भी मिल रहा है।
वीणा देवी ने लिखा कि जहां चाह वहां राह… इच्छाशक्ति से सब कुछ हासिल किया जा सकता है। मेरी वास्तविक पहचान पलंग के नीचे एक किलो मशरूम की खेती से शुरू हुई थी। लेकिन इस खेती ने मुझे न केवल आत्मनिर्भर बनाया, बल्कि मेरे आत्मविश्वास को बढ़ाकर एक नया जीवन दिया।
देशवासियों के लिए प्रेरणा बन चुकीं सात महिलाओं को ट्वीटर अकाउंट समर्पित करने के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ‘नारी शक्ति पुरस्कार’ से सम्मानित महिलाओं से बातचीत की। इस दौरान महिलाओं को संबोधित करते हुए उन्होंने पूछा कि जब आपने अपना काम शुरू किया, तो आपने इसे एक मिशन के रूप में किया होगा या जीवन में कुछ मूल्यवान करने के लिए किया होगा या फिर बस आप वक्त के प्रवाह के साथ चलते चले गए होंगे। आपने यह किसी इनाम के लिए नहीं किया, लेकिन आज आप दूसरों के लिए प्रेरणा बन गए हैं।
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