मुख्य सचिव मारपीट केस: ढाई माह से अफसरों का मौन व्रत जारी, केजरीवाल के रुख से अटक गया विकास

नई दिल्ली । मुख्य सचिव अंशु प्रकाश के साथ मुख्यमंत्री निवास पर हुई मारपीट मामले में जहां दिल्‍ली के अफसरों का 75 दिनों से मौन व्रत जारी है, वहीं केजरीवाल सरकार इस मसले पर झुकने को कतई तैयार नहीं है। दिल्‍ली के अफसर इस बात पर अड़े हैं कि जब तक मुख्‍यमंत्री अरविंद केजरीवाल इस मसले पर माफी नहीं मांगेंगे तब तक उनका यह आंदोलन जारी रहेगा। नौकरशाही और राजशाही के बीच उपजे इस तनाव के बीच दिल्‍ली का विकास बाधित हो रहा है।

अधिकारी किसी भी मंत्री की बैठकों में नहीं जाएंगे, न ही मंत्रियों के फोन उठाएंगे। यह प्रक्रिया जारी है। आंदोलन को प्रतिकात्मक तौर पर मजबूती देने और सरकार को इसका अहसास कराने के लिए सभी विभागों में लंच के समय 1.30 से 1.35 तक प्रत्येक कार्य दिवस में होने वाला मौन कार्यक्रम जारी है।

अधिकारियों का कहना है कि यह मौन मुख्यमंत्री की सद्बुद्धि के लिए किया जा रहा है। यह मौन दिल्ली सचिवालय में अरविंद केजरीवाल के दफ्तर के ठीक सामने भी प्रतिदिन हो रहा है। जिसमें गांधी जी तस्वीर भी रखी जाती है।

बता दें कि 19 फरवरी को आधी रात को मुख्य सचिव के साथ केजरीवाल के सामने उनके निवास पर आप विधायकों ने मारपीट की थी। 20 फरवरी को जब यह मामला प्रकाश में आया तो उसी दिन से दिल्ली सरकार में काम कर रहे अधिकारी और कर्मचारी सरकार के खिलाफ आंदोलन कर रहे हैं।

सरकार का कहना है कि मारपीट की कोई घटना नही हुई है। जबकि मुख्यमंत्री के तत्कालीन सलाहकार की हैसियत से उस बैठक में शामिल रहे वी के जैन बयान दे चुके हैं कि मुख्य सचिव के साथ मारपीट हुई थी। इस घटना के बाद अधिकारियों की ओर से गठित की गई ज्वाइंट फोरम आंदोलन चला रही है।

ऐसे में दिल्ली की सत्ता में चल रही इस लड़ाई में मंत्रियों और अधिकारियों का भले ही कुछ न बिगड़े, मगर दिल्ली का नुकसान हो रहा है। दिल्ली में देश की यह पहली सरकार चल रही है जिसमें अधिकारी और मंत्री आपस में बात नहीं करते।

अधिकारी मंत्रियों की बैठकों में शामिल नहीं होते। फाइलें धीमी गति से चल रही हैं। रोजमर्रा के मामले छोड़ दिए जाएं तो इसके अलावा न ही किसी योजना पर काम हो पा रहा है और न ही विकास  की कोई नई योजना अस्तित्व में आती दिखाई दे रही है। ऐसे में सहज ही दिल्ली के विकास की रफ्तार के बारे में अनुमान लगाया जा सकता है।

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