पूज्य सद्गुरुदेव अवधेशानंद जी महाराज आशिषवचनम्

पूज्य सद्गुरुदेव आशिषवचनम्
            ।। श्री: कृपा ।।
???? पूज्य सद्गुरुदेव जी ने कहा – मनुष्य जीवन प्रतिपल पदार्थ-आश्रय, भौतिकीय आलम्बन और सुखाभास में लीन है; परन्तु आनन्द और जीवन सिद्धि भगवदीय आश्रय में निहित है…! ईश्वरीय अनुकंपा के लिए ईश्वर की शरण में जाना ही सर्वोत्कृष्ट उपाय है। भगवान दयालु हैं। वे शरणागत की रक्षा करते हैं। सच्चे मन से शरणागत हुए भक्त के भावों का वे सम्मान करते हैं। जीव भगवान की शरण ले तो उसके सभी पाप दूर हो जाते है। ”सन मुख होय जीव मोहि जबही। जन्मकोटि अघ नाशहुं तबही…।।” मनुष्य एक-दूसरे को देव-रूप मानने लगे तो कलयुग, सतयुग बन सकता है। भजन के लिए अनुकूल समय की प्रतीक्षा न करें, कोई भी क्षण भजन के लिये अनुकूल है। प्रत्येक क्षण को सुधारोगे तो मृत्यु भी सुधरेगी….।
???? पूज्य “आचार्यश्री” जी ने कहा – मनुष्य के विषय में बहुत महत्वपूर्ण तथ्य समझने योग्य है कि -“मनुष्य सोया हुआ है …” गीता, रामायण आदि धर्मग्रंथ और सारी आध्यात्मिक साधनाएं मनुष्य को जगाने के लिए हैं। जीवन कर्म भूमि है और उसका उचित-अनुचित फल भोगना ही पड़ता है। जीवन को जितना सहज बनाकर प्रभु को अपर्ण करेंगे, जीवन में उतनी ही शान्ति मिलेगी। प्रभु श्रीराम अति सहज हैं, ”अति कोमल रघुवीर सुभाऊ …”। उन्हें छल नहीं, निर्मल मन भाता है। सृष्टि में जब पापाचार, दुराचार बढ़ जाता है तो परमात्मा विविध रूप धारण कर नरलीला करते हुये पृथ्वी को पाप से मुक्त करते हुये सदाचरण सिखाते हैं। प्रत्येक अवतार के पीछे लोक मंगल की कामना छिपी है। ईश्वर भक्तों की सुख शांति के लिये स्वयं कितना कष्ट भोगते हैं यह उनके परम भक्त ही जानते हैं….।
???? पूज्य “आचार्यश्री” जी ने कहा – गीता सम्पन्न एवं विपन्न को मोक्ष का मार्ग बताती है। गीता विश्वव्यापी ग्रंथ है, जिसमें सुख और दु:ख के कारणों का उल्लेख है। गीता हमें अवसाद से आह्लाद का मार्ग बताती है। गीता हमें दृष्टि देती है और जो कुछ जीवन में चल रहा है, उसे देखने का सामर्थ्य प्रदान करती है। गीता में इतनी शक्ति है कि इसका एक ही श्लोक 6 माह तक लगातार पढ़ें, तो अज्ञानता समाप्त हो जायेगी। गीता के मूल रहस्य को समझने की जरूरत है। गीता के उपदेश ईश्वर प्रदत्त वाणी है। गीता मानव-कल्याण का मार्ग प्रशस्त करती है। गीता तनाव से मुक्त करती है और जीवन में प्रबंधन सिखाती है। गीता का उद्भव युद्ध के मैदान में हुआ था, जहाँ धर्म-अधर्म के बीच द्वंद चल रहा था। गीता में अनेक विषय समाहित हैं। गीता में भगवान श्रीकृष्ण ने न केवल अपने शिष्य अर्जुन को बल्कि सारे विश्व के लिए उपदेश दिये हैं। गीता के उपदेश हृदय से निकले हैं। गीता से मानव-कल्याण का मार्ग प्रशस्त होता है….।

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