वाशिंगटन । 2 मई 25 । राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने आज ऐलान किया कि वह माइक वाल्ट्ज को अमेरिका का नया संयुक्त राष्ट्र राजदूत बना रहे हैं। माइक वाल्ट्ज अभी तक राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार थे। इसके साथ ही ट्रम्प ने विदेश मंत्री मार्को रुबियो को राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार पद की भी जिम्मेदारी दे दी है।
CNN की रिपोर्ट के मुताबिक, माइक वाल्ट्ज जल्दी ही अपनी पोस्ट छोड़ने वाले थे। यह ट्रम्प के राष्ट्रपति बनने के बाद पहला बड़ा बदलाव है। एक सूत्र ने बताया कि इस हफ्ते की शुरुआत में वाल्ट्ज को साफ कह दिया गया था कि अब उनका समय खत्म हो गया है।
वाल्ट्ज को उस समय आलोचना का सामना करना पड़ा जब उन्होंने गलती से एक पत्रकार को उस चैट ग्रुप में जोड़ लिया, जिसमें सीक्रेट मिलिट्री प्लानिंग पर चर्चा हो रही थी। यह एक बड़ी राजनीतिक चूक थी और माना जा रहा है कि यह मुद्दा उनके संयुक्त राष्ट्र पद की पुष्टि के दौरान उठ सकता है।
फ्लोरिडा से पूर्व सांसद वाल्ट्ज ट्रम्प के दूसरे कार्यकाल में व्हाइट हाउस छोड़ने वाले पहले सीनियर अफसर हैं। डोनाल्ड ट्रम्प ने अपने पहले कार्यकाल में चार NSA बदले थे। पहले सलाहकार जनरल मैकमास्टर सिर्फ 22 दिन ही पद पर रह पाए थे।
हूती विद्रोहियों पर हमले का प्लान लीक होने पर हंगामा हुआ था
रक्षामंत्री पीट हेगसेथ ने 15 मार्च को यमन में हूती विद्रोहियों पर हमले के प्लान को 2 घंटे पहले सिग्नल ऐप पर एक सीक्रेट ग्रुप चैट में शेयर किया था। इस ग्रुप को माइक वाल्ट्ज ने बनाया था। इसमें द अटलांटिक मैगजीन के मुख्य संपादक जैफ्री गोल्डबर्ग भी जुड़े हुए थे। साथ ही अमेरिका के उपराष्ट्रपति जेडी वेंस और विदेश मंत्री मार्को रूबियो भी शामिल थे।
जेफ्री गोल्डबर्ग ने बताया कि उन्हें गलती से इस ग्रुप चैट में जोड़ दिया गया था। यह ग्रुप सिक्योर मैसेजिंग ऐप सिग्नल पर बनाया गया था। जिसे राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार माइकल वाल्ट्ज ने बनाया था।
गोल्डबर्ग ने लिखा कि 15 मार्च को सुबह 11:44 बजे हेगसेथ ने यमन पर होने वाले हमलों की जानकारी शेयर की थी। इसमें टारगेट्स और इस्तेमाल किए जाने वाले हथियारों के अलावा कौन-सा हमला कब और कहां किया जाना है, इसकी जानकारी भी थी।
भारत समर्थक माने जाते हैं माइक वाल्ट्ज
माइक वाल्ट्ज को चीन-ईरान का विरोधी और भारत समर्थक माना जाता है। वे चीन पर अमेरिका की निर्भरता कम करने से जुड़े कई विधेयकों का समर्थन कर चुके हैं।
वॉल्ट्ज अमेरिकी सेना की स्पेशल यूनिट फोर्स में ‘ग्रीन बेरे कमांडो’ रह चुके हैं और तालिबान के साथ अफगानिस्तान में जंग भी लड़ चुके हैं। उन्होंने अफगानिस्तान से बाइडेन सरकार की सैन्य वापसी का कड़ा विरोध किया था। वे मिडिल ईस्ट और अफ्रीका में भी अपनी सेवाएं दे चुके हैं।
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