
इक थी सोने की चिड़िया
इक थी सोने की चिड़िया, उन्मुक्त गगन में उड़ती थी।
गाती थी गीत अपनी धुन में, डालों पे चहका करती थी।।
पथ में आते सहस्र तरुवर, पर्वत सरिता और खेत-खलिहान।
तरु के आँचल में थे फल मधुर, नीचे था ऋषियों का ज्ञान विज्ञान।।
बलखाती, इठलाती गंगा ब्रह्मपुत्र, हिन्दूकुश गगन चूमा करता था ।
जहाँ बालक में थे राम-कृष्ण, हर बाला में थी भूमिजा राधा।।
ना भय था किसी से भी किसी को, निर्भय स्वच्छंद समृद्ध खुशहाल।
जहाँ देवालयों के स्वर्ण शिखरों पर, दिनकर स्वर्णिम हो खिलता था।।
जहाँ वन अरण्य में सिंह और मृग, नृभय विहार किया करते थे।
और ग्राम ग्राम में जन मानस, नित सुख की नींद सोया करते।।
फिर एक दिन आई एक चील, चिड़िया को किया लहु -लुहान।
छटपटाती, बिलखती फिर चिड़िया, पड़ी धरा पे मूर्छित हो बेहाल ।।
लुट गए स्वर्ण-मणि किए मंदिर खंडित, जन जन में किया आक्रांत वीभत्स।
बाला नर नारी के चित्त-लहु का, किया हनन नृशंस अतिचार अपार।।
चिड़िया के नीड़ को किया दूषित, माँ की चीत्कारों से गूंजा आसमाँ ।
वो सबल, सुघड़, निर्मल चिड़िया, बन गई निर्बल, सकुचित लाचार ।।
आक्रांताओं के अत्याचारों से रोदित, खो गई गुमनामी में चिड़िया।
जहाँ निर्मल जल बहता था सरिता का, हुआ रंजित लहू वेदना से।।
अपने ही घर से हुई बेघर चिड़िया, लगी तड़पने तामसी व्यथा से।
फड़फड़ाती, तड़पती रही चिड़िया, ना कोई पोंछे आँसू उसके ।।
एक दिन फिर आया शातिर सौदागर, अस्मिता गौरव को विस्मृत किया।
बनी दास उत्पीड़न की बेड़ियों में, चिड़िया भूली अपना सर्वस्व।।
मैं क्या थी, और क्या था मेरा, भटके वो इतर उतर बेडोर।
सहस्त्र वर्षों से जूझती लड़ती, चिड़िया अब होने लगी निशक्त।।
पर यूँ निर्बल, मूक बिन मेरु, चिड़िया जो रही सुप्त उदासीन।
तो नीड तरु और आन बान, होगा सब एक दिन चकनाचूर।।
जो तेरी माता आत्मा को, वो निश-दिन झँझोड़ा करते हैं।
क्यूँ लहू होय तेरा ना ताप्त, जो सब कुछ देखे जाती है?
क्यों उर तेरा फट नहीं जाता, न समा जाती तू धरणी में?
कब तक निर्लज्ज स्वार्थी बने, उजड़े सिंदूर देखेगी तू ?
तू जाग पहचान उठ और लड़, और तब तक लड़ते रहना है।
लौटे ना जब तक तेरा गौरव, स्वधर्म भूमि और स्वाभिमान।।
तू थी है और रहेगी शाश्वत, सबल समृद्ध सुघड़ और ऊर्जावान।
जो तू फिर लड़ना सीख गई, तो कर कर लेगी विजय जीवन संग्राम।
फिर उड़ेगी सोने की चिड़िया, उन्मुक्त, स्वच्छंद, निर्भय हर्षित !
गायेगी फिर अपनी धुन में, स्वर्ण पंखों को शान से लहराती !!
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