न्यूज़ डेस्क : ब्रिटेन की दूरसंचार कंपनी वोडाफोन को भारत सरकार के साथ उसके पुराने कर विवाद मामले में अंतरराष्ट्रीय मध्यस्थता अदालत में जीत हासिल हुई है। यह मामला कंपनी से 22,100 करोड़ रुपये की कर मांग से जुड़ा है। बहरहाल, फैसले की जानकारी मिलने के बाद सरकार ने कहा है कि वह मध्यस्थता अदालत के फैसले का अध्ययन करेगी और उसके बाद ही आगे की कार्रवाई के बारे में कोई निर्णय लेगी।
अंतरराष्ट्रीय मध्यस्थता न्यायाधिकरण ने व्यवस्था दी कि भारत की पिछली तिथि से कर की मांग करना दोनों देशों के बीच द्विपक्षीय निवेश संरक्षण समझौते के तहत निष्पक्ष व्यवहार के खिलाफ है। ब्रिटिश कंपनी ने एक बयान में कहा, ‘वोडाफोन इस बात की पुष्टि करती है कि निवेश संधि न्यायाधिकरण ने मामला वोडाफोन के पक्ष में पाया। यह आम सहमति से लिया गया निर्णय है जिसमें भारत द्वारा नियुक्त मध्यस्थ रोड्रिगो ओरेमुनो भी शामिल हैं।’
सभी विकल्पों पर विचार करेगी सरकार
कंपनी के अनुसार, ‘न्यायाधिकरण ने कहा कि भारत का कर मांग को लागू करने को लेकर कोई भी प्रयास भारत के अंतरराष्ट्रीय कानून दायित्वों का उल्लंघ्न होगा।’ भारत ने कहा, ‘सरकार मामले में निर्णय और सभी पहलुओं का अपने वकीलों के साथ विचार-विमर्श कर अध्ययन करेगी। विचार-विमर्श के बाद सरकार सभी विकल्पों पर विचार करेगी और उपयुक्त मंच पर कानूनी उपाय समेत अन्य कार्रवाही के बारे में निर्णय करेगी।’
इस बीच मामले से जुड़े सूत्रों ने बताया कि फैसला आने के बाद मामले में भारत सरकार की देनदारी करीब 75 करोड़ रुपये तक होगी। इसमें 30 करोड़ रुपये लागत और 45 करोड़ रुपये कर वापसी शामिल है। निर्णय के तहत सरकार को वोडाफोन को उसकी कानूनी खर्चे का 60 फीसदी और मध्यस्थ की नियुक्ति में 6,000 यूरो की लागत का आधा हिस्सा का भुगतान करना है।
मध्यस्थता न्यायाधिकरण ने कहा कि उच्चम न्यायालय के निर्णय के बाद भी वोडाफोन से कर मांग करना द्विपक्षीय निवेश संरक्षण संधि के तहत निष्पक्ष और समान व्यवहार की गारंटी का उल्लंघन है। वोडाफोन ग्रुप पीएलसी ने भारत सरकार के पिछली तिथि से कर लगाने के कानून के तहत उससे की गई कर मांग के खिलाफ मध्यस्थता अदालत में चुनौती दी थी। सरकार ने 2012 में पारित एक कानून के जरिए पिछली तिथि में हुए सौदों पर कर लगाने का अधिकार हासिल कर लिया था।
कर विभाग ने 2016 में 22,100 करोड़ रुपये के कर की मांग को लेकर नोटिस दिया। वोडाफोन के अलावा भारत सरकार ने पूर्व की तिथि से कर कानून का उपयोग करते हुए ब्रिटेन की तेल खोज कार्य करने वाली कंपनी केयर्न एनर्जी से 10,247 करोड़ रुपये की मांग की थी। यह मांग कंपनी से 2006 में उसके भारतीय कारोबार का पुनर्गठन करने को लेकर की गई थी।
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