न्यूज़ डेस्क : प्रत्येक संगठन के जीवनचक्र में रीसेट होता है और यह येस बैंक का रीसेट फेज है। यह बैंक का री-कैरेक्टराइजेशन है जो जारी है। यह केवल बैंक के निर्धारित कारकों द्वारा ही संचालित नहीं हो रहा है, बल्कि वित्तीय बाजार, प्रतिस्पर्धी माहौल और नियमों में बदलाव के कारण भी संचालित है, रवनीत गिल – येस बैंक के एमडी और सीईओ ने बताया।
वर्तमान में येस बैंक की पहली प्राथमिकता प्रबंधन और बोर्ड की स्थिरता है। दूसरी प्राथमिकता परिसंपत्ति की गुणवत्ता है। बाजार इस बात पर ध्यान देता है कि जब अन्य बैंको के वाच लिस्ट निकाली थी तो क्या हुआ था। हमारे मामले में, लिक्विडिटी यानी नकदी की समस्याओं का सामना करने वाले नाम मुट्ठी भर हैं। ये ऐसे नाम नहीं हैं जो किसी एक उद्योग या क्षेत्र में हैं। रिजॉल्यूशन पर काम जारी है। कुछ मामलों में, यह परिसंपत्ति की बिक्री का मामला है। हो सकता है, यह बाजार को दिखाई नहीं दे। सूचना में समानता न होने से भ्रम पैदा हो रहा है। संपत्ति की गुणवत्ता को लेकर चिंताएं बहुत बढा़-चढ़ा कर देखी जा रही हैं। इसका कारण पर्याप्त रिजॉल्यूशन का न होना है। जब एनसीएलटी में रिजॉल्यूशन पर काम चल रहा होता है, तो सूचनाओं का प्रसार बेहतर होता है।
श्री रवनीत गिल ने एनपीए की स्थिति के बारे में बताया कि वर्तमान में हमारी संख्या पर भरोसा नहीं किया जा रहा है। इसका हमारे संख्याओं से कोई लेना-देना नहीं है। उन्होंने दो बार इसे देखा है, और यह सामान्य प्रवृत्ति है कि अगर दो बार हुआ है, तो यह तीसरी बार भी हो सकता है। इसलिए मुद्दे की और अधिक बारीक समझ होनी चाहिए। मार्च वाली तिमाही में, हमारी सब-स्टैंडर्ड बुक 6,000 करोड़ रुपये से बढ़कर20,000 करोड़ रुपये की हो गई। जब आप तीन गुना वृद्धि देखते हैं, तो यह बहुत महत्वपूर्ण बात है। समझने की जरूरत है कि तीन या चार नाम ही हैं जो 6,000 करोड़ रुपये से बढ़कर 20,000 करोड़ रुपये तक पहुंचे हैं। उनके पास लिक्विडिटी की समस्याएं हैं, लेकिन ऐसी परिसंपत्ति हैं जिनके इक्विटी मूल्य हैं। डिवेस्टमेंट या हिस्सेदारी बिक्री के माध्यम से, वे इलिक्विडिटी यानी नकदी की समस्या से बाहर आ सकते हैं।
अंडरराइटिंग के मानकों के बारे में, श्री रवनीत गिल ने कहा कि ऐतिहासिक रूप से, बैंक का प्रावधान बहुत मजबूत रह चुका है। जोखिम प्रबंधन बहुत अच्छे किस्म का था। जिस मुद्दे को हमें समझना है, वह यह है कि जब एनबीएफसी का संकट आया तो लिक्विडिटी यानी नकदी पर दबाव बढ़ गया। हमने महसूस किया कि रिफाइनेंसिंग यानी पुनर्वित्तीयकरण इतना आसान नहीं था और जोखिम झेलने की क्षमता कम हो गयी। ये कंपनियां दूसरी कंपनियों की तुलना में वित्तीय बाजार अव्यवस्था की चपेट में आने के प्रति अधिक संवेदनशील हो जाती हैं। म्यूचुअल फंड संकट के कारण, सारी प्रमोटर फंडिंग दबाव में आ गयी। ऑपरेटिंग कंपनी अच्छा कर रही थी, लेकिन अचानक, वैल्यूयेशन प्रोमोटर डिस्ट्रेस दिखा रहा था। यह एनबीएफसी सेक्टर, प्रमोटर फंडिंग और इन्फ्रास्ट्रक्चर फाइनेंसिंग संकट का मिलाजुला प्रभाव था।
इक्विटी बढ़ाने के बारे में बात करते हुए उन्होंने कहा कि निजी इक्विटी बाहरी सत्यापन है जिसके अंतर्गत किसी ने उस सामान पर ध्यान दिया है जो सार्वजनिक डोमेन में नहीं है। यह दीर्घकालिक पूंजी का स्रोत बन जाती है और कुछ मायनों में वे निवेश की गई कंपनियों के आधार पर सर्वोत्तम प्रशासन प्रथाओं को साकार कर सकती हैं। हम सार्वजनिक बाजार और निजी इक्विटी लेनदेन दोनों को देख रहे हैं।
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