तमिलनाडु में करुणानिधि के अवसान का शून्य कौन सा सियासी दल भरेगा

चेन्नैई   तमिलनाडु में करुणानिधि और जयललिता के अवसान के बाद वहां की राजनीति में पैदा हुये शून्य को भरने के लिये काफी गुंजाइश पैदा हो गई है। 1969 में जब द्रविड़ मुनेत्र कड़गम (डीएमके) के संस्थापक सीएन अन्नादुरै का निधन हुआ, तो खाली हुई सियासी जगह पर करुणानिधि ने तेजी से कब्जा जमाया। करुणानिधि उस वक्त मंझे हुए स्क्रिप्टराइटर के रूप में चर्चित थे।

अपनी धारदार स्क्रिप्ट की बदौलत उन्होंने एआईएडीएमके के संस्थापक एमजी रामचंद्रन (एमजीआर) को एक अभिनेता और राजनेता के तौर पर स्थापित करने में मदद पहुंचाई। दिसंबर 1987 में एमजीआर की मौत के बाद करुणानिधि की कट्टर राजनीतिक प्रतिद्वंद्वी जयललिता ने एआईएडीएमके की सत्ता अपने हाथों में लेते हुए 1991, 2001, 2011 और 2016 के विधानसभा चुनावों में कामयाबी हासिल की।

पिछले साल जयललिता के निधन और करुणानिधि के राजनीतिक रिटायरमेंट के बाद राज्य की दो प्रमुख द्रविड़ पार्टियां लड़खड़ा गई हैं। हालांकि डीएमके में नेतृत्व परिवर्तन का यह दौर अपेक्षाकृत सामान्य रहा है। करुणानिधि के सक्रिय राजनीति से हटने के साथ ही जनवरी 2017 में पार्टी की आम परिषद ने स्टालिन को कार्यकारी अध्यक्ष नियुक्त कर दिया था। पार्टी का नेतृत्व करने की राह में स्टालिन के अब कोई रोड़ा नहीं है। लेकिन करुणानिधि की प्रभावशाली राजनीतिक विरासत और स्टालिन की कार्यशैली आने वाले वर्षों में चर्चा का विषय रहेगी।

दूसरी ओर दिशाहीन एआईएडीएमके में कई दावेदार होने की वजह से उठापटक चल रही है। इसके नए नेता मुख्यमंत्री ईके पलनिसामी, उप मुख्यमंत्री ओ पन्नीरसेल्वम और अलग हुए धड़े अम्मा मक्कल मुनेत्र कड़गम (एएमएमके) के अध्यक्ष टीटीवी दिनकरन अपने पूर्ववर्ती एमजीआर और जयललिता की करिश्माई और ऊर्जावान छवि से बहुत दूर हैं। एआईएडीएमके में नेतृत्व का यह संकट कई दूसरी पार्टियों के लिए रास्ता बना सकता है।

राज्य की राजनीति के नए खिलाड़ी करुणानिधि और जयललिता की श्रेणी में नहीं रखे जा सकते, जिनकी नेतृत्व क्षमता निर्विवाद थी। वरिष्ठ पत्रकार और राजनीतिक विश्लेषक सुधांगन का मानना है कि वर्तमान परिदृश्य में कोई भी इन दोनों जैसी कामयाबी हासिल नहीं कर पाएगा। उनका कहना है, पहले नेताओं को वोट मिलते थे और अब वोट से नेताओं का फैसला होगा।

राज्य की सियासत में इस खालीपन ने दो तमिल सुपरस्टार को आकर्षित किया है। कमल हासन पिछले साल से काफी मेहनत कर रहे हैं और उन्होंने अपनी पार्टी मक्कल नीधि मैयम का गठन भी किया है लेकिन अभी इसे मजबूती देने के लिए बहुत कुछ किया जाना बाकी है। वहीं अभिनेता रजनीकांत अपनी राजनीतिक पार्टी बनाने के लिए अपने प्रशंसकों को इकट्ठा करने में जुटे हैं।

रजनीकांत का राजनीतिक उद्देश्य या विचारधारा अबतक साफ नहीं है, हालांकि उनके सहयोगी और सलाहकार भाजपा से उनकी करीबी का इशारा कर रहे हैं। ऐसी चर्चा है कि संघ परिवार (राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ) रजनीकांत के नए संगठन के साथ ही पलनिसामी से चल रहे तनाव के बाद पन्नीरसेल्वम के संभावित धड़े और भाजपा के बीच महागठबंधन की संभावनाएं तलाश रहा है।

दोनों अभिनेता (रजनीकांत और कमल हासन) विजयकांत की पूरी तैयारी के साथ बनाई गई डीएमडीके का भविष्य भी टटोल रहे हैं। हालांकि राजनीतिक विश्लेषक किसी नए नेता के उभार की उम्मीद नहीं देख रहे हैं। सुधांगन का कहना है, जयललिता और करुणानिधि के बाद नेतृत्व में 100 प्रतिशत खालीपन है।

लोकप्रियता का नेतृत्व क्षमता से मतलब नहीं है। राजनीतिक नेतृत्व एक अलग ही खेल है। उन्होंने दोनों नेताओं की विचारधारा और नीतियों से बहुत लोगों के असहमत होने की संभावना जताते हुए कहा, हमें उनकी नेतृत्व क्षमता की सराहना करनी चाहिए और यह स्वीकार करना चाहिए कि हम उनके जैसा दूसरा नेता नहीं देख पाएंगे।

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