आज़ाद लब : ‘कमल’ के नाथ बन सिंधिया लाएंगे ‘शिव-राज’ — विश्वबंधु

सूत्रों की माने तो सिंधिया के कांग्रेस से अलग होने का रास्ता बीजेपी के दिवंगत नेता अरुण जेटली ने एक साल पहले ही तैयार कर लिया था और भाजपा में सिंधिया को लाने वाले थे ,परंतु उनके निधन के बाद यह प्लान ठंडे बस्ते में चला गया l सिंधिया और जेटली की नजदीकी जगजाहिर है दोनों क्रिकेट में पदाधिकारी रहते हुए नजदीक आए और आपस में उनकी मेलजोल होते रहते थे और सिंधिया की बार-बार अनादर होने से अरुण जेटली ने उनको बीजेपी में आने का रास्ता सुझाया था और रास्ता बना दिया था और सिंधिया बीजेपी में जाने वाले थे, परंतु जेटली साहब की मृत्यु के बाद या कुछ समय के लिए होल्ड पर चला गया था ,परंतु अब वह स्क्रिप्ट पूरा होती नजर आ रही है l

 

कमलनाथ सरकार जो कि अब अपने असली रंग में आती हुई नजर आ रही थी, उसके रंग चढ़ने के पहले ही कांग्रेस को अपनों की ही नज़र लग गई और उनके दिग्गज नेता राहुल गांधी के विश्वसनीय ज्योतिराजे सिंधिया का कांग्रेस छोड़ना कांग्रेस के लिए कम मध्य प्रदेश सरकार के लिए ज्यादा नुकसानदेह साबित होता नज़र आ रहा है l  ज्योतिराज सिंधिया के चेहरे पर ही मध्य प्रदेश में चुनाव लड़ा गया था और भाजपा ने अपना चुनाव का कैंपेन  माफ करो ‘महाराज अबकी बार शिवराज’ के साथ किया था l 

 

परंतु मध्यप्रदेश में कांग्रेस को बहुमत प्राप्त होने के बाद कांग्रेस ने  सिंधिया को नजर अंदाज करते हुए कांग्रेस के ही अनुभवी नेता कमलनाथ को मध्य प्रदेश का मुख्यमंत्री बना दिया l  सिंधिया इससे नाराज भी हो गए परंतु उन्होंने इंतजार करना उचित समझा l उसके बाद सिंधिया के बार-बार प्रदेश अध्यक्ष पद की मांग करने के बावजूद भी पिछले डेढ़ साल से प्रदेश अध्यक्ष का कमान भी कमलनाथ के पास ही था और इन दोनों के बीच में मध्य प्रदेश की राजनीति के चाणक्य कहे जाने वाले दिग्विजय सिंह अपनी रोटी सेकते रहे l  दिग्विजय सिंह राजनीति के माहिर खिलाड़ी माने जाते हैं और उन्होंने अर्जुन सिंह के साथ मिलकर माधवराव सिंधिया को भी प्रदेश का मुख्यमंत्री बनने से रोक दिया था और अर्जुन सिंह ने दिग्विजय सिंह को मुख्यमंत्री बनाने का समर्थन कर दिया था, ठीक वैसे ही इस बार सिंधिया के मुख्यमंत्री बनने में दिग्विजय सिंह रोड़ा बनकर आए और कमलनाथ को मुख्यमंत्री बनवाने में सहयोग किया l

 

सूत्रों के अनुसार दिग्विजय सिंह ने सोनिया गांधी को समझाया कि अगर दूसरे युवा नेता को आगे बढ़ाया गया तो राहुल गांधी की छवि पर असर पड़ेगा l इसको सोनिया ने गंभीरता से लिया और  सिंधिया को किनारे करते हुए कमलनाथ को आगे बढ़ाया गया l  उसके बाद भी सिंधिया के चुनाव हारने में कमलनाथ का हाथ बताया जाता रहा और इन सब को सहते हुए सिंधिया पिछले डेढ़ सालों से अपनी उपेक्षा का शिकार होते हुए इंतजार करते रहे कि कभी तो पार्टी उनको एक महत्वपूर्ण जिम्मेवारी देगी l परंतु वह नजरअंदाज होते रहे और जब मामला राज्यसभा के टिकट का पहुंचा तो यहां भी उनके लिए रास्ता आसान नहीं बनते दिख रहा था और अंत में सिंधिया को कांग्रेसी पार्टी छोड़ने का निर्णय करना पड़ा l यहां पर ग़ालिब की ग़ज़ल याद आती है कि – ‘बड़े बेआबरू होकर तेरे कूचे से हम निकले’ l 

 

इतिहास अपने को दोहराता है और सिंधिया परिवार की राजनीतिक शुरुआत एक  तरीके से जनसंघ से हुई थी सिंधिया के परिवार के सभी लोग भारतीय जनता पार्टी में रहे परंतु माधवराव सिंधिया कांग्रेस में गए और उनका अनुसरण करते हुए ज्योतिराज सिंधिया भी कांग्रेस में पिछले 18 सालों से लगातार बने हुए थे परंतु अब लड़ाई स्वाभिमान की थी तो उन्हें अपना रास्ता चुनना पड़ा l 

 

वही सिंधिया बार-बार पार्टी लाइन से बाहर जाकर भी भारतीय जनता पार्टी के फैसलों का समर्थन करते हुए नजर आते रहे हैं और कुछ माह पूर्व जब उन्होंने मध्य प्रदेश सरकार को इशारा किया कि वह सड़क पर आ जाएंगे उसके जवाब में मुख्यमंत्री कमलनाथ ने जब कहा कि ‘उनको सड़क पर उतरना है तो उतर जाए’ उसके बाद से राजनीतिक समीकरण और तेजी से बदलने लगे और उसका नतीजा यह हुआ कि सिंधिया के समर्थक 22 विधायकों ने इस्तीफा दे दिया और इस इस्तीफे का असर पूरे प्रदेश में काग्रेस कार्यकर्ताओं खास कर सिंधिया समर्थक कार्यकर्ताओं पर पड़ा और हजारों की संख्या में सिंधिया कार्यकर्ताओं ने अपना इस्तीफा कांग्रेस ने दिया है l सवाल यह उठता है कि क्या यह सारे कार्यकर्ता बीजेपी जाएंगे और क्या बीजेपी को उनको सम्मान दे पाएगी , जिस सम्मान के लिए वह भाजपा में आ रहे हैं l जबकि भाजपा में चुनाव में हार के बाद खुद ही अंतर कलह चल रहा है l

 

शिवराज अपना मोह छोड़ने को तैयार नहीं है और विजयवर्गीय भी  मुख्यमंत्री बनने की हसरत पाले बैठे हैं l अब देखना यह है कि सिंधिया जी की अगली राजनीति क्या होती है ? क्या वह अपने पिता की तरह नई पार्टी बना कर  नई राजनीति की शुरुआत करेंगे या बीजेपी का दामन थाम राज्यसभा में जाते हुए केंद्रीय मंत्री बन और अपने किसी करीबी को उपमुख्यमंत्री मध्य प्रदेश में बनाते हुए इस सियासी ड्रामे का अंत करते करेंगे l परन्तु जनता यह सोचने पर मजबूर है कि क्या वह किसी को वोट देकर सत्ता में बैठा है तो क्या वह सरकार चला पाएंगे या अब सरकार वही चलाएंगे जिनको जनता ने वोट देकर विपक्ष में रहने जनादेश दिया है l यह राजनीति है और राजनीती के खेल में कुछ भी हो सकता है l एक समय बीजेपी का कमल मुरझाने  वाले सिंधिया आज खुद बीजेपी का कमल खिलाने में लगे हैं और अपने कमल को उन्होंने अनाथ कर दिया है l 

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