SC में बोली केंद्र सरकार- फाइलों को दबाकर नहीं बैठते दिल्ली के उपराज्यपाल

नई दिल्ली। दिल्ली का बॉस कौन, मामले में सुनवाई कर रही सुप्रीम कोर्ट की संवैधानिक बेंच के समक्ष केंद्र ने केजरीवाल सरकार के उस आरोप को नकारा है, जिसमें कहा गया था कि उपराज्यपाल फाइलों को दबाकर बैठ जाते हैं। उनके रवैये के चलते जनहित के मामले लंबित रह जाते हैं।

केंद्र की तरफ से पेश अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल मनिंदर सिंह ने कहा कि आप सरकार का आरोप गलत है। संविधान के तहत व्यवस्था है कि दिल्ली से जुड़े मामले में उपराज्यपाल का दखल हो। उनका कहना था कि 96 फीसद मामलों में उपराज्यपाल दो से तीन दिनों के भीतर फाइलों को निपटा देते हैं।

वह चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली संवैधानिक बेंच के उस सवाल का जवाब दे रहे थे, जिसमें कहा गया था कि कानून बनाने का अधिकार दिल्ली विधानसभा के पास है और दिल्ली सरकार को केवल अपने निर्णय की सूचना उपराज्यपाल को देनी होती है।

मनिंदर सिंह का कहना था कि नेशनल कैपिटल टेरिटरी ऑफ दिल्ली रूल्स के मुताबिक दिल्ली सरकार को अपने हर निर्णय पर उपराज्यपाल की रजामंदी लेनी जरूरी है। उनका कहना था कि उपराज्यपाल हवा में काम नहीं कर सकते। उन्हें हर फाइल पर माथापच्ची करने के बाद फैसला लेना होता है और इसमें कुछ समय तो लग ही जाता है।

उनका कहना था कि संविधान के अनुच्छेद 239 एए की व्याख्या सही तरीके से करने की जरूरत है। इसके हिसाब से सरकार व उपराज्यपाल के बीच किसी मसले पर सहमति कायम न हो सके तो विवाद का निपटारा राष्ट्रपति ही कर सकते हैं।

गौरतलब है कि सुप्रीम कोर्ट दिल्ली की आम आदमी पार्टी की सरकार की उस याचिका की सुनवाई कर रहा है, जिसमें कहा गया था कि दिल्ली हाई कोर्ट का फैसला गलत है।

केंद्र ने सुप्रीम कोर्ट के समक्ष 1989 की बालकृष्ण समिति की रिपोर्ट का हवाला दिया, जिसमें कहा गया था कि दिल्ली को राज्य का दर्जा देना गलत होगा।

केंद्र का तर्क है कि दिल्ली केवल उन लोगों की ही नहीं है जो इसमें रहते हैं। यह सारे देश के लोगों की है। केंद्र का कहना है कि अनुच्छेद 239 एए अपने आप में इसके लिए एक व्यवस्था देता है। उधर, दिल्ली सरकार का कहना है कि उपराज्यपाल लोकतंत्र का मजाक बना रहे हैं। सुनवाई बृहस्पतिवार को भी जारी है।

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