मोदी सरकार सीबीआई समेत अन्य सभी संस्थाओं की स्वतंत्रता और स्वायत्तता कायम रखते हुए उन्हें संरक्षित व मजबूत करने के लिए प्रतिबद्ध है: केंद्रीय मंत्री डॉ. जितेंद्र सिंह

डॉ. जितेंद्र सिंह ने सीबीआई मुख्यालय में आयोजित अलंकरण समारोह को संबोधित किया

डॉ. जितेंद्र सिंह ने विपक्ष शासित राज्य सरकारों से मामलों की जांच के लिए सीबीआई को सामान्य सहमति वापस लेने पर पुनर्विचार करने का आग्रह किया

केंद्रीय विज्ञान और प्रौद्योगिकी, पृथ्वी विज्ञान राज्यमंत्री (स्वतंत्र प्रभार) प्रधानमंत्री कार्यालय (पीएमओ), कार्मिक, लोक शिकायत, पेंशन, परमाणु ऊर्जा और अंतरिक्ष राज्यमंत्री डॉ. जितेंद्र सिंह ने आज फिर इस बात को दोहराया कि मोदी सरकार सीबीआई समेत जांच करने वाली अन्य सभी संस्थानों की स्वतंत्रता और स्वायत्तता को बनाए रखने, उन्हें संरक्षित और मजबूत करने के लिए प्रतिबद्ध है।

यहां सीबीआई मुख्यालय में आयोजित अलंकरण समारोह को संबोधित करते डॉ. जितेंद्र सिंह ने कहा कि भ्रष्टाचार के लिए जीरो टॉलरेंस, पारदर्शिता और नागरिकों की सहभागिता को केंद्र में रखना तीन मुख्य मंत्र हैं जो प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व वाली सरकार के प्रशासनिक नजरिये को निर्धारित करते हैं। उन्होंने कहा कि वैचारिक आस्थाओं की परवाह किए बगैर यह सबकी सामूहिक जिम्मेदारी है कि सीबीआई जैसी संस्थाओं को मजबूत किया जाए, क्योंकि समाज में सच्चरित्रता बनाए रखने के परम लक्ष्य को प्राप्त करने के राष्ट्र के संकल्प को मजबूत करने में भी इन संस्थानो का योगदान होता है।

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सीबीआई निदेशक श्री सुबोध कुमार जायसवाल के अलावा केंद्रीय सतर्कता आयुक्त श्री सुरेश एन. पटेल, केंद्रीय सचिव डीओपीटी, श्री पीके त्रिपाठी, सीबीआई के विशेष निदेशक श्री प्रवीण सिन्हा समेत वरिष्ठ अधिकारीगण, विशिष्ट सेवा के लिए पुरस्कार प्राप्त करने वाले अधिकारी और उनके परिवार के सदस्य इस मौके पर मौजूद थे।

डॉ. जितेंद्र सिंह ने कहा कि भ्रष्टाचार और बेहिसाब धन के खिलाफ जीरो टॉलरेंस की प्रतिबद्धता को पूरा करने के लिए, मोदी सरकार द्वारा पिछले 7 वर्षों के दौरान कई पहलें की गई हैं। उन्होंने कहा कि 26 मई, 2014 को प्रधानमंत्री के रूप में शपथ लेने के शीध्र बाद, प्रधानमंत्री मोदी की अध्यक्षता में मंत्रिमंडल की पहली बैठक में काले धन का पता लगाने के लिए एक विशेष जांच दल (एसआईटी) गठित का निर्णय लिया गया। उन्होंने बताया कि 2014 के बाद से, भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम 1988 में संशोधन, लोकपाल के पद की स्थापित और पारदर्शिता बढ़ाने के लिए एसीसी (नियुक्ति संबंधी मंत्रिमंडलीय समिति) के निर्णयों समेत सभी सरकारी फैसलों को तत्काल सार्वजनिक करने सहित अनेक सुधार किए गए हैं। डॉ. जितेंद्र सिंह ने बताया कि पिछले वर्षों के दौरान 1500 से अधिक कानूनों को समाप्त कर विभिन्न नियमों और विनियमों को सरल बनाया गया है।

कुछ राज्यों द्वारा मामलों की जांच के लिए सीबीआई को दी गई सामान्य सहमति वापस लेने जबकि उनके अपने अनुकूल चयनात्मक सहमति देने का विशेषाधिकार बनाए रखने पर चिंता व्यक्त करते हुए डॉ. जितेंद्र सिंह ने राज्य, समाज और राष्ट्र से इस बात पर व्यापक आत्मावलोकन करने का आग्रह किया कि क्या किसी राज्य में एक सत्तारूढ़ सरकार द्वारा जिस तरह के औचित्य का पालन किया जाना है। उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि इन राज्य सरकारों को स्पष्ट करना चाहिए और यह बताना चाहिए कि वे सीबीआई पर भरोसा करते हैं या नहीं, अथवा क्या वे सीबीआई पर चयनात्मक ढंग से भरोसा करते हैं क्योंकि जो मामले उनके लिए अनुकूल होते हैं उनमें वे चयनात्मक ढंग से ही सहमति देते हैं।

डॉ. जितेंद्र सिंह ने इन राज्य सरकारों से मामलों की जांच के लिए सीबीआई को दी जाने वाली सामान्य सहमति वापस लेने के निर्णय पर पुनर्विचार करने की अपील की। डॉ. सिंह ने याद दिलाया कि जनता के दबाव में राज्यों द्वारा कई मामले सीबीआई को भी भेजे जाते हैं जो यह दर्शाता है कि लोगों का सीबीआई पर अधिक भरोसा है। इसी तरह, न्यायपालिका द्वारा कई मौकों पर जटिल और जरूरी मामले भी सीबीआई को सौंपे जाते हैं।

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उन्होंने प्रधानमंत्री द्वारा इसी साल अक्टूबर में दिए गए उस संबोधन की ओर ध्यान आकर्षित करते हुए, जिसमें प्रधानमंत्री ने कहा, ’’नया भारत अब भ्रष्टाचार को व्यवस्था के हिस्से के रूप में स्वीकार करने के लिए तैयार नहीं है।’’ डॉ. जितेंद्र सिंह ने कहा कि व्यवस्था को पारदर्शी, सक्षम और दुरुस्त बनाने के प्रयास तेज गति से चल रहे हैं। उन्होंने कहा कि भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम, 1988 में 30 साल बाद 2018 में संशोधन करके उसमें कई नए प्रावधान शामिल किए गए जिनमें रिश्वत लेने के साथ-साथ रिश्वत देने के अधिनियम को भी अपराध माना गया है। साथ ही, ऐसी कार्रवाइयों में व्यक्ति और कॉर्पोरेट संस्थाओं के लिए एक प्रभावी रोकथाम की भी व्यवस्था की गई है। उन्होंने कहा कि व्यवस्था में अधिक पारदर्शिता, नागरिकों की सहभागिता और जवाबदेही लाना वर्तमान सरकार की प्रतिबद्धता है और इस बात का संकेत देश में उच्च संस्थानों में भ्रष्टाचार पर लगाम लगाने के लिए लोकपाल की संस्था को संचालित करने की इसकी निर्णायक पहल से मिलता है।

सीबीआई निदेशक सीबीआई श्री सुबोध कुमार जायसवाल ने इस अवसर पर सभी सीबीआई पुरस्कार विजेताओं को बधाई दी। श्री जायसवाल ने भ्रष्टाचार के खिलाफ जीरो टॉलरेंस के राष्ट्रीय लक्ष्य की दिशा में काम करने के लिए सीबीआई की अडिग प्रतिबद्धता दोहराई और कहा कि सीबीआई पिछले कुछ वर्षों के दौरान देश की एक बहु-विधायी प्रमुख जांच एजेंसी के रूप में उभरी है, जिसमें विभिन्न क्षेत्रों के प्रोफेशनलों को शामिल किया गया है। श्री जायसवाल ने इस बात पर भी जोर दिया कि सीबीआई पर न्यायालयों, सरकारों और बड़े पैमाने पर लोगों का भरोसा है। हर गंभीर अपराध के लिए सीबीआई जांच की मांग हमेशा उठती रहती है। सीबीआई की सफलता का उदाहरण इस तथ्य से मिलता है कि सीबीआई पिछले कुछ वर्षों में लगभग 70 प्रतिशत दोषसिद्धि दर हासिल करने में सक्षम रही है, जबकि आरोपियों को सर्वोत्तम कानूनी सहायता मिली है। उन्होंने इस बात को रेखांकित किया कि सीबीआई महती विरासत को आगे बढ़ाने और समय के साथ बदलाव के लिए प्रतिबद्ध है।

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श्री जायसवाल ने भारत की आजादी के 75वें वर्ष में मनाए जा रहे आजादी का अमृत महोत्सव के संदर्भ में सीबीआई के ’विजन 75’ पर भी प्रकाश डाला। उन्होंने बताया कि सीबीआई ने आधुनिकीकरण, क्षमताओं के उन्नयन, जांच और निवारक सतर्कता के लिए उच्च मानक स्थापित करने और नए युग के अपराध से निपटने के लिए अत्याधुनिक क्षमताओं का लाभ उठाने की एक व्यापक आंतरिक प्रक्रिया शुरू की है। डीसीबीआई ने कहा कि सीबीआई ने 75 प्रथाओं की पहचान की है, जिन्हें हतोत्साहित करने की आवश्यकता है ताकि संगठन की दक्षता को बढ़ाया जा सके।

डॉ. जितेंद्र सिंह ने सीबीआई के 47 अधिकारियों को सराहनीय सेवा के लिए पुलिस पदक प्रदान किए और सम्मानित अधिकारियों से अपने सर्वोत्तम कौशल और प्रतिभा के साथ राष्ट्र की सेवा में खुद को फिर से समर्पित करने की अपील की।

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