हजारीबागः रंगबिरंगी चूड़ियों की खनक में दबी लाल बंदूक की आवाज

हजारीबाग। नक्सली आतंक का गढ़ रहे हजारीबाग के चुरचू प्रखंड में चूड़ियों की सुर्ख चमक और असरदार खनक ने लाल आतंक के सफाये का ऐलान कर दिया है। गोलियों की कर्कश आवाज लाख की लाखों चूड़ियों की इस ठोस खनक में दब कर रह गई है। लाख की इन चूड़ियों ने वंचित आदिवासी परिवारों को आशा की एक नई किरण दिखाई है। जिसके सहारे वे अपना पिछड़ापन हमेशा के लिए पीछे छोड़ देना चाहते हैं। जिससे यहां आतंक का नर्कसदा के लिए खत्म हो जाए। यह संभव हुआ है महिलाओं की एकजुटता से।

 

गांवों की आदिवासी महिलाएं इस बदलाव की वाहक बनी हैं। लाख (लाह) की चूड़ियां बनाकर वे महिला सशक्तीकरण, शिक्षा, गरीबी उन्मूलन और जनसंख्या नियोजन में अपनी सक्रिय भागीदारी सुनिश्चित कर रही हैं।

 

लाल आतंक से लालिमा तक 

एक वक्त था जब चुरचू का जिक्र आते ही एक जेहन में खौफनाक तस्वीर उभर आती थी। पुलिस-प्रशासन के लिए भी यह इलाका किसी चुनौती से कम नहीं था। नक्सलियों के प्रभाव और दुर्गम क्षेत्र होने के कारण शाम पांच बजे के बाद इस इलाके के लिए कोई बस या परिवहन का अन्य साधन नहीं मिलता था।

जून 2015 में नक्सलियों ने कोनार नदी पर बने बेड़म पुल को विस्फोट कर उड़ा दिया था। आज भी यह पुल इसी स्थिति में है। लेकिन अब इसी इलाके में लाख की सुंदर चूड़ियों के रूप में एक बेहतर भविष्य आकार ले रहा है। आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर हो चले आदिवासियों का नक्सलियों से मोह भंग हो चुका है। आर्थिक निर्भरता का ही कमाल है कि ये नई पीढ़ी को सुशिक्षित बनाने को आतुर हो उठे हैं।

 

सब कुछ बदल रहा है 

महिलाओं ने लाख की खेती कर इस बदलाव को हासिल किया है। इनके हाथों से बनीं लाख की चूड़ियां इनकी समृद्धि का प्रतीक बन गई हैं। धीर-धीरे सब कुछ बदल रहा है। सरकारी-गैर सरकारी संस्थाओं की मदद भी इन्हें मिल रही है। चूड़ियों को जयपुर जैसे बड़े बाजारों में भेजा जाने लगा है। एक दर्जन चूड़ियों के डब्बे की कीमत 200 से 300 रुपये तक मिल जाती है। घर घर में चूड़ियां बनाई जा रही हैं। चूड़ियों को राज्य सरकार का उपक्रम झारक्राफ्ट भी खरीद रहा है। जिन्हें वह अपने काउंटर और अन्य माध्यमों से बेचता है।

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