Bihar Chunav 2025: बिहार में नया सियासी समीकरण? RJD-कांग्रेस से गठबंधन को तैयार ओवैसी, लेकिन रख दी ये बड़ी शर्त

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समग्र समाचार सेवा                                                                                                                                                                                                                  पटना ,6 जून : बिहार की राजनीति में एक बड़े फेरबदल के संकेत मिल रहे हैं। असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी एआईएमआईएम (AIMIM) ने इशारों में महागठबंधन, यानी राष्ट्रीय जनता दल (RJD) और कांग्रेस के साथ मिलकर चुनाव लड़ने की इच्छा जताई है। हालांकि, इस दोस्ती के लिए एक ऐसी शर्त रख दी गई है, जिसे मानना आरजेडी और कांग्रेस के लिए किसी टेढ़ी खीर से कम नहीं है। इस नए राजनीतिक गणित ने बिहार के सियासी गलियारों में हलचल तेज कर दी है।

  • असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी AIMIM ने बिहार में RJD और कांग्रेस के साथ गठबंधन के संकेत दिए हैं।
  • गठबंधन के लिए AIMIM ने सीमांचल क्षेत्र की सभी सीटों पर अपनी दावेदारी की शर्त रखी है।
  • अगर यह गठबंधन सफल होता है, तो यह मुस्लिम वोट बैंक को एकजुट कर सकता है, जिससे नीतीश कुमार की मुश्किलें बढ़ सकती हैं।

ओवैसी की ‘सीमांचल शर्त’: क्या है AIMIM की माँग ?

AIMIM की ओर से जो संकेत मिले हैं, उनके मुताबिक पार्टी महागठबंधन का हिस्सा बनने को तो तैयार है, लेकिन उसकी नजर सीमांचल की सभी 24 विधानसभा सीटों पर है। पार्टी चाहती है कि इस क्षेत्र में आरजेडी और कांग्रेस अपनी दावेदारी छोड़कर सभी सीटें AIMIM के लिए छोड़ दें। AIMIM के बिहार प्रदेश अध्यक्ष और अमौर विधायक अख्तरुल ईमान ने भी इस पर बयान दिया है। उन्होंने कहा, “हमारी पार्टी महागठबंधन के साथ गठबंधन करने के लिए सकारात्मक है। हम बिहार को मजबूत बनाना चाहते हैं और इसके लिए कम सीटों पर भी समझौते को तैयार हैं, बशर्ते सीमांचल की प्रमुख सीटें हमें मिलें।”

महागठबंधन के लिए क्यों मुश्किल है यह राह?

सीमांचल आरजेडी और कांग्रेस का भी गढ़ माना जाता रहा है। ऐसे में पूरी 24 सीटें किसी एक सहयोगी दल को दे देना लगभग असंभव है। इसके बावजूद, महागठबंधन के रणनीतिकार इस गठबंधन की अहमियत को समझ रहे हैं। उनका मानना है कि अगर ओवैसी साथ आ जाते हैं, तो राज्य के करीब 17% मुस्लिम वोटों को साधना आसान हो जाएगा, जो सीधे तौर पर मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और एनडीए (NDA) के लिए बड़ी चुनौती खड़ी कर सकता है।

क्या ‘वोट कटवा’ का दाग धो पाएगी AIMIM?

अतीत में AIMIM पर अक्सर “वोट कटवा” पार्टी होने के आरोप लगते रहे हैं। विपक्ष का मानना है कि ओवैसी की पार्टी मुस्लिम वोटों को बांटकर बीजेपी को फायदा पहुंचाती है।

  • 2020 का झटका: 2020 के विधानसभा चुनाव में AIMIM ने सीमांचल में 5 सीटें (अमौर, कोचाधामन, जोकीहाट, वायसी और बहादुरगंज) जीतकर आरजेडी को सत्ता से दूर करने में एक बड़ी भूमिका निभाई थी। कई अन्य सीटों पर भी उसकी मौजूदगी ने महागठबंधन का खेल बिगाड़ दिया था।
  • अन्य दावेदार: आज मुस्लिम वोटों पर सिर्फ आरजेडी-कांग्रेस का ही हक नहीं है। जेडीयू (JDU) के अलावा प्रशांत किशोर की जनसुराज पार्टी भी एक नए दावेदार के रूप में उभरी है, जिसने हाल के उपचुनावों में मुस्लिम वोटों में सेंध लगाई है।

कांग्रेस नेता अधीर रंजन चौधरी भी पहले कह चुके हैं कि बीजेपी ने ओवैसी की पार्टी का बिहार में अच्छा इस्तेमाल किया है, जो इसे “बीजेपी की ‘बी’ टीम” होने के आरोपों को बल देता है।

आगे क्या होगा?

यह तय है कि अगर AIMIM, आरजेडी और कांग्रेस का गठबंधन हो जाता है, तो यह बिहार के पारंपरिक “एम-वाई” (मुस्लिम-यादव) समीकरण को एक नई मजबूती देगा, जिसे लालू प्रसाद यादव ने सालों तक अपनी सत्ता का आधार बनाए रखा था। लेकिन सबसे बड़ा सवाल यही है कि क्या आरजेडी और कांग्रेस, ओवैसी की “सीमांचल शर्त” को मानने के लिए तैयार होंगी? फिलहाल, दोनों खेमों में एक सम्मानजनक समझौता खोजने की कोशिशें जारी हैं और बिहार की जनता की नजरें इस दिलचस्प राजनीतिक घटनाक्रम पर टिकी हुई हैं।

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