अपोलो हॉस्पिटल इंदौर ने खास तरीके से मनाया वीमेन्स डे !

इंदौर – 1911 से हर वर्ष 8 मार्च को अंतराष्ट्रीय महिला दिवस मनाया जाता है। इस वर्ष महिला दिवस की थीम ‘बैलेंस फ़ॉर बेटर’ है। यानी समाज में यदि हम महिला और पुरुषों की सहभागिता बराबर का पाए तो यह समाज के लिए ही बेहतर होगा।  हम एक ऐसे समय में प्रवेश करने जा रहे हैं, जिसमें दुनिया हमसे बराबरी की अपेक्षा करती है। हम इसकी कमी को महसूस कर सकते हैं और समाज में स्त्री-पुरुष की बराबर सहभागिता को लेकर उत्साहित है। 
एक कामकाजी समाज के लिए यह बराबरी अच्छी है। चलिए एक ऐसी दुनिया बनाए जहां स्त्री-पुरुष बराबर हो। इस समय दौड़ इस बात की है कि हम ऐसी सरकार , बोर्डरूम्स और कार्यस्थल बना पाए जहां स्त्री-पुरुष बराबर हो। ऐसे ही मीडिया में भी स्त्री-पुरुष को लेकर बिना किसी भेदभाव के खबरे आए।  यह हमारी अर्थव्यवस्था और समाज दोनों के लिए अच्छा है। 
इसका एक सटीक उदाहरण है अपोलो अस्पताल। यहां हम लिंगभेद समाप्त करने का सफल प्रयास कर चुके हैं। हमारे यहां इंटरवेंशनल कार्डियोलॉजिस्ट डॉ सरिता राव द्वारा पूरी महिला टीम के साथ महिला मरीजों की कठिन एंजियोप्लास्टी कर चुकी है।  शरीर की मैन आर्टरी को डिलटिंग और स्टेंटिंग करने की इस प्रक्रिया की खासियत यह है कि इसे पूरी तरह से महिला स्टॉफ ने मिलकर किया है। जिसमे कैथ लैब टेक्नीशियन, स्क्रब नर्स आदि शामिल है। इस पूरी प्रक्रिया में एक भी पुरुष शामिल नही था। 
इस तरह की प्रक्रिया शायद ही पूरी दुनिया में कही भी हुई हो। महिला दिवस के लिए इससे बेहतर थीम और क्या हो सकती है और इस थीम को चरितार्थ करने के लिए  ही हमनें सभी महिलाओं को बराबरी का हक देते हुए पूरी महिला टीम के साथ यह प्रक्रिया की।   भारत में खासतौर पर कामकाजी महिला और पुरुषों के बीच बराबरी की आवश्यकता है जहां हमारी आधी आबादी काम नही कर पा रही है। 100 प्रतिशत सफलता हासिल करने के लिए इस 50 प्रतिशत आबादी को भी हमें मुख्यधारा में शामिल करना होगा। 
 
अपोलो अस्पताल हमेशा समाज में परिवर्तन लाने में अग्रणी भूमिका निभाता आया है।  इस परंपरा को आगे बढ़ाते हुए हमने यह इनिशिएटिव लिया। जहां जिंदगी और मौत का सवाल होता है, जब वहां महिलाएं इतना अच्छा काम कर सकती है तो भला अन्य कार्यक्षेत्रों में क्यो नही।   
सीनियर इंटरवेंशनल कार्डियोलॉजिस्ट डॉ सरिता राव कहती है कि समाज और अर्थव्यवस्था को आगे बढ़ाने के लिए लिंगभेद को समाप्त कर बराबरी लाना बेहद आवश्यक है। यह काम सभी को साथ मिलकर ही करना होगा। समाज में स्त्रियों को बराबरी का हक दिलाने की जिम्मेदारी सिर्फ कुछ संस्थाओं और फेमिनिस्ट की ही नही है बल्कि यह हर उस व्यक्ति की है जो मानव अधिकारों का सम्मान करता है और उसे बनाए रखना चाहता है। अपोलो अस्पताल ऐसी ही संस्था है।
 
 
 

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