आजाद लब — मैं रहूं या ना रहूं भारत यह रहना चाहिए : विश्वबंधू

 यही वह लाइन है जो कश्मीर में सहीद हुए सैनिक आज स्वर्ग से बोल रहे होंगे  “मैं रहूं या ना रहूं, भारत यह रहना चाहिए ” यह एक ऐसी  लाइन है जो सभी भारतीय  सैनिक अपने दिल में दबाए रखते हैं और इसी को जीते हैं l चाहे वह कश्मीर के माइनस 50 डिग्री टेंपरेचर हो या युद्ध स्थल हो या फिर वह जब तक जीते है तब  तक उनके जेहन में उनके मन में एक ही बात रहती है  “मैं रहूं या ना रहूं भारत यह रहना रहना चाहिए ” l  इसी को चरितार्थ करते हुए कश्मीर में मारे गए  सैनिकों ने अपनी जान दे दी  l
यह कायराना  हरकत है आतंकी संगठन जैश-ए – मोहम्मद का इसका सरगना अजहर मसूद है जो कभी भारत का बंदी था l सैनिकों ने उसे पकड़ लिया था परंतु कंधार विमान अपहरण के वक्त भारत के नागरिकों को आतंकवादियों के चंगुल से मुक्त कराने के लिए उस वक्त की वाजपेई सरकार ने उनके आगे झुकते हुए उसको छोड़ दिया था l  तब से लेकर आज तक अजहर मसूद हमेशा भारत के ऊपर आंख में आंख मिलाकर हमला करता है l  भारत जब भी उसे आतंकवादी घोषित करने का प्रयास करता है चाइना उसके बचाव में जाता है  और पाकिस्तान में तो खुल्लम-खुल्ला घूमता है और पाकिस्तान में हुए चुनाव में तो वह अपनी पार्टी बनाकर चुनाव लड़ रहा था  l अफसोस की बात है कितने सबूत देने के बावजूद भी पाकिस्तान एक आतंकवादी को मान्यता देता है उसके पार्टी को मान्यता देता है उसे चुनाव लड़ने देता है और बोलता है वह आतंकवादी नहीं है l यह पाकिस्तान का दोगलापन है साथी ही साथी कहीं ना कहीं वह भारत के नजरिए को भी पढ़ नहीं पा रहा है l
सरकार ने इस घटना के बाद पाकिस्तान को मोस्ट फेवर्ड नेशन का दिया दर्जा वापस ले लिया है l यह निर्णय बहुत पहले होना था परन्तु अब हुआ है l परंतु आज लिया गया यह एक सराहनीय फैसला है इसका सम्मान होना चाहिए l  पाकिस्तान के ऊपर कूटनीतिक दबाव बनाने का पाकिस्तान को अलग करने की सरकार की घोसना अच्छी है, परन्तु यह फैसला अगर आज से पांच वर्ष पहले लिया गया होता तो परिणाम कुछ और होता l  भारत का दुर्भाग्य है की घटना होने के बाद हम जगते हैं और फिर उसके ऊपर कार्रवाई करते हैं l  क्या भारत इजराइल से कुछ सीख सकता है जो अपने नागरिकों पर या देश पर हुए  छोटे से छोटे हमले का उस देश में जाकर या फिर  वह दोषी  जहा भी हो ढूंढ के मारता है  l हमे सोचना होगा क्या हम ऐसा कर सकते है और अगर कर सकते हैं तो किस तरीके से कर सकते हैं और अगर नहीं कर रहे तो क्यों नहीं कर रहे हैं ? पूरा देश अभी आक्रोश में है और  कार्रवाई का इंतजार कर रहा है  l सरकार भी आश्वासन दे रही है कि हम कार्रवाई करेंगे लेकिन  कब करेंगे, कैसे करेंगे ,किस पर करेंगे , यह स्थिति अभी स्पष्ट नहीं है  l
दूसरी स्थिति यह है कि पूरे विश्व में आतंकवाद किसी ना किसी रूप में चल रहा है और आतंकवाद की परिभाषा तय नहीं हो पा रही है l यूनाइटेड नेशंस  मे बात चल रही है परन्तु  आतंकवाद को परिभाषित कैसे करें l सीरिया में आई एस आई को लेकर अमेरिका और रूस आमने सामने है कोई बोलता है सही है और कोई बोलता वो गलत है l ईरान को लेकर दोनों देश आमने सामने है l सरकार ने बोला था कि नोटबंदी से आतंकवाद की कमर टूटेगी शायद उनकी सोच गलत हुई या फिर उनके सोच से आगे आतंकवाद सोचता है l इस विश्व में आतंकवाद का सफाया नहीं करना सुनियोजित साजिश लगती है क्योंकि आज पूरे विश्व में जो सबसे बड़ा व्यवसाय है वह हथियार खरीदना और बेचना है l इसका उदाहरण है पिछले 10 वर्षों में पूरे विश्व में जितने भी हथियार बीके उसका 12 से 13 फ़ीसदी खरीददार भारत रहा है ,और भारत का जो अपना हथियार खरीदने में जो बजट की बढ़ोतरी है वह है 43% । 
स्टॉकहोल्म इंटरनेशनल पीस रिसार्च का डाटा है दुनिया में सबसे बड़ा धंधा है हथियार बेचने का है और अमेरिका का सबसे बड़ा बिज़नस हथियार बेचना ही है  l अमेरिका एक साल मे 47169 मिलीयन डॉलर, रूस 33169 मिलीयन डॉलर , चीन 8768 मिलीयन डॉलर, फ्रांस  8561 मिलीयन डॉलर, ब्रिटेन 6586 मिलीयन डॉलर, जर्मनी 8000 मिलीयन डॉलर,कुल सिर्फ यह 6 देश मिलकर 1,40,270 मिलीयन डॉलर सिर्फ एक बरस में हथियारों का बिसनेस करते है l यह सभी देश कभी नहीं चाहेंगे की आतंकवाद रुके क्योंकि अगर आतंकवाद रुका तो उनका हथियारों का व्यासाय बंद हो जायेगा और उनकी देश की इकॉनमी बर्बाद हो जाएगी और हमारा दुर्भाग्य है की हम इन्ही देशो से सहायता मांगते है या इनका की मुह देखते है  l जो हमारा कभी सहयोग नहीं करेंगे l क्या सरकार  कुछ व्यवस्था कर सकते हैं कि सैनिकों की सुरक्षा प्राथमिकताओं मे हो और सैनिकों को सड़क मार्ग की वजाए हवाई मार्ग से पहुचाया जा सके l अगर सड़क मार्ग सुरक्षित नहीं है तो l अगर हम राजनेताओं के हवाई खर्चे को वाहन कर सकता है  जो की देश के नागरिकों के टेक्स से होता है तो फिर हम तो सैनिकों की हवाई यात्रा को सकते हैं मान्यता दे सकते हैं l  अगर यह यात्रा हवाई मार्ग से होता तो सैनिक शहीद नहीं होते l ध्यान देना होगा कि मोदी सरकार ने सर्जिकल स्टाइल किया उसका कोई आतंकवादी पर ज्यादा फर्क नहीं पड़ा है और वो अभी भी आंख दिखा रहे हैं और आतंकवाद खत्म नहीं हुआ l 
आज वक्त आ गया है कि हमें अपनी कमजोरी और हमें अपनी ताकत दोनों को देखकर और उसके ऊपर काम करना होगा क्योंकि कब तक किसी के बाप, किसी के बच्चे, किसी के पिता ऐसे ही शहीद होते रहेंगे और क्या हम हाथ पर हाथ रखे बैठे रहेंगे l  हम इस विषय पर गंभीरता से सोचना होगा अंतरराष्ट्रीय दबाव तो तब भी था जब इंदिरा गांधी बांग्लादेश बनाने के लिए निकली तब भी अमेरिका ताकतवर था और आज भी है l अमेरिका ने उस वक़्त बहुत कोशिश की परंतु इंदिरा गांधी ने उनकी एक नहीं सुनी और बांग्लादेश बनाने के बाद ही दिल्ली मे फोन रिसीव किया था l  हम भी कुछ ऐसा ही फैसला लेना होगा क्योंकि देश हमारा है इसकी सुरक्षा हमारी प्राथमिकता होनी चाहिए l कुल मिलाकर आतंकवाद की परिभाषा सबके लिए अलग अलग है और भारत को अब यह समझना होगा की यह लड़ाई उसकी खुद की है और उसको खुद ही लड़ना होगा और उसको खुद ही अब आतंकवाद की परिभाषित करना होगा l भारत को अपनी लड़ाई अब खुद लड़नी होगी और भारत इसमे सक्षम है l सबसे महत्वपूर्ण हम सब को यह याद रहना चाहिए -“हम रहे या न रहे भारत यह रहना चाहिय” l जय हिन्द 
संपादक 

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