“थंडर बनाम ब्लंडर”: मोदी पर ‘सरेंडर’ टिप्पणी को लेकर राहुल गांधी पर BJP का तीखा वार

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समग्र समाचार सेवा                                                                                                                                                                                                         भोपाल 3 जून – भोपाल  की सरज़मीं एक बार फिर राजनीति की आंधी का गवाह बनी, जब लोकसभा में विपक्ष के नेता राहुल गांधी ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर तीखा हमला बोला। कांग्रेस नेता ने आरोप लगाया कि पाकिस्तान के साथ सैन्य संघर्ष के दौरान अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की एक फोन कॉल पर नरेंद्र मोदी ने “सरेंडर” कर दिया। इस टिप्पणी ने सियासी हलकों में तूफान खड़ा कर दिया है।

राहुल गांधी ने कहा,

“ट्रंप का फोन आया और नरेंद्र जी तुरंत झुक गए—इतिहास इसका गवाह है। ये है BJP-RSS का चरित्र। ये लोग हमेशा विदेशी ताकतों के सामने झुकते हैं। लेकिन कांग्रेस ने 1971 में अमेरिका की धमकी के बावजूद पाकिस्तान को तोड़ा था। हमारे नेता शेर और शेरनियां थे जो कभी नहीं झुके।”

यह बयान उन्होंने मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल में एक कांग्रेस कार्यक्रम के दौरान दिया, जहां उन्होंने ‘ऑपरेशन सिंदूर’ के संदर्भ में पीएम मोदी को अमेरिका के सामने घुटने टेकने वाला बताया।

BJP का पलटवार: “थंडर बनाम ब्लंडर”

राहुल गांधी के इस बयान के बाद BJP ने तीखा पलटवार किया। पार्टी के राष्ट्रीय प्रवक्ता गौरव भाटिया ने X (पूर्व में ट्विटर) पर राहुल गांधी को ‘राष्ट्रीय ब्लंडर’ करार देते हुए कहा:

“एक तरफ भारतीय सेना की गरजती हुई ‘थंडर’ है, जिसने पाकिस्तान की हवाई ताकत को पस्त कर दिया। दूसरी तरफ राहुल गांधी जैसे ‘ब्लंडर’ हैं, जो दुश्मन के नैरेटिव को अपने भाषण में दोहराते हैं। कांग्रेस का DNA ही विदेशी गुलामी है।”

गौरव भाटिया ने सवाल उठाया कि क्या राहुल गांधी को भारतीय सेना की बहादुरी पर भरोसा नहीं है? क्या वे पाकिस्तान की ओर से झुके भारत के दावे को मज़बूती देने की कोशिश कर रहे हैं?

क्या हुआ था ऑपरेशन सिंदूर में?

ऑपरेशन सिंदूर, भारत और पाकिस्तान के बीच हुए हालिया सैन्य टकराव का हिस्सा था, जिसमें भारत ने पाकिस्तान के एयरबेस और एयर डिफेंस सिस्टम को बड़ी सफाई से निष्क्रिय कर दिया था। इस हमले के तुरंत बाद पाकिस्तान ने संघर्षविराम की इच्छा जताई थी।

भारत के विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने स्पष्ट रूप से कहा था:

“हमारे सैन्य कमांडरों के बीच सीधे संवाद के बाद ही फायरिंग रोकी गई। हम पहले ही पाकिस्तान की रक्षा प्रणाली को ध्वस्त कर चुके थे। अमेरिका का इसमें कोई हस्तक्षेप नहीं था। अगर किसी को धन्यवाद देना है, तो भारतीय सेना को देना चाहिए।”

भारत के विदेश सचिव विक्रम मिस्री ने भी स्पष्ट किया कि संघर्षविराम भारत की रणनीतिक सैन्य जीत के परिणामस्वरूप हुआ, न कि ट्रंप की मध्यस्थता से।

ट्रंप का बयान: सियासत या सच्चाई?

डोनाल्ड ट्रंप ने अपने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म Truth Social पर दावा किया था कि उनके हस्तक्षेप से भारत-पाकिस्तान संघर्षविराम संभव हुआ। लेकिन भारत सरकार और रक्षा विशेषज्ञों ने इस दावे को सिरे से खारिज कर दिया।

राहुल गांधी द्वारा ट्रंप के इसी बयान का संदर्भ लेते हुए ‘सरेंडर’ वाली टिप्पणी करने पर BJP ने उन्हें ‘अमेरिकी प्रोपेगैंडा का वाहक’ बताया।

‘देश के शत्रु की बोली बोलते हैं राहुल?’

BJP नेताओं और समर्थकों का कहना है कि राहुल गांधी ने अपने बयान से देश की सेना के मनोबल को चोट पहुंचाई है। पूर्व रक्षा मंत्री और BJP सांसद राजनाथ सिंह ने कहा:

“राहुल गांधी को भारतीय सेना की वीरता पर विश्वास नहीं है, लेकिन ट्रंप के ट्वीट पर भरोसा है। क्या यही है कांग्रेस की राष्ट्रभक्ति?”

कई वरिष्ठ पत्रकारों और सुरक्षा विश्लेषकों ने भी राहुल के बयान को ‘राजनीतिक अपरिपक्वता’ बताया। उनका कहना है कि कांग्रेस नेता ने राष्ट्रीय सुरक्षा जैसे गंभीर विषय को सस्ती राजनीति के मंच पर घसीट दिया है।

1971 बनाम 2025: कांग्रेस बनाम BJP

राहुल गांधी ने अपने भाषण में 1971 की ऐतिहासिक जीत का हवाला देते हुए कांग्रेस की तुलना BJP से की। उन्होंने कहा कि इंदिरा गांधी के नेतृत्व में भारत ने अमेरिका की धमकी को दरकिनार करते हुए पाकिस्तान को दो टुकड़ों में बांट दिया था, लेकिन नरेंद्र मोदी एक फोन कॉल पर झुक गए।

BJP नेताओं ने इस तुलना को “ख्याली पुलाव” बताते हुए कहा कि 2025 की भारतीय सेना 1971 की सेना से कहीं ज़्यादा तकनीकी, सक्षम और आत्मनिर्भर है, और उसे किसी विदेशी नेता के सहारे की जरूरत नहीं।

निष्कर्ष: बयानबाज़ी की सीमाएं और राष्ट्रीय गरिमा

राहुल गांधी की ‘सरेंडर’ टिप्पणी ने एक बार फिर साबित कर दिया कि सियासत में शब्दों की सीमा बेहद नाजुक होती है। विपक्ष का काम सवाल पूछना है, लेकिन जब सवाल राष्ट्रीय स्वाभिमान पर हमला करने लगे, तो जनता जवाब देना जानती है।

‘थंडर बनाम ब्लंडर’ की इस राजनीतिक जंग में जहां एक तरफ सेना की वीरता की गरज सुनाई दी, वहीं दूसरी तरफ बयानबाज़ी की गड़गड़ाहट ने राजनीतिक गरिमा पर सवाल खड़े कर दिए हैं। अब देखना यह है कि जनता इस मुद्दे को कैसे लेती है—एक साहसिक सवाल के रूप में या एक खतरनाक अफवाह के तौर पर।

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