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समग्र समाचार सेवा
नई दिल्ली 12 मई –22वें आतंकी हमले में जब हमारे जवानों को निशाना बनाया गया और निर्दोष नागरिक मारे गए, तब पूरा देश दुःख, गुस्से और आक्रोश से भर उठा। सोशल मीडिया से लेकर न्यूज़ चैनलों तक, हर जगह यह माँग उठी कि अब सहनशक्ति की सीमा पार हो चुकी है और निर्णायक कार्रवाई होनी चाहिए। देश के कई फिल्म कलाकारों, नेताओं और खिलाड़ियों ने शहीदों के प्रति संवेदना प्रकट की। लेकिन इस राष्ट्रीय शोक की घड़ी में तीन प्रमुख बॉलीवुड सितारों—आमिर ख़ान, शाहरुख़ ख़ान और सलमान ख़ान—एक बार फिर पूरी तरह मौन दिखाई दिए।
इन तीनों की चुप्पी ने एक बार फिर यह प्रश्न खड़ा कर दिया है: जब देश पर हमला होता है, जवान शहीद होते हैं, तो क्या इन सितारों की ज़ुबान बंद क्यों हो जाती है? क्या ये सिर्फ विदेशी मुद्दों, मुस्लिम समुदाय के पीड़ित होने की खबरों या किसी अंतरराष्ट्रीय विवाद पर ही बोलते हैं?
सोशल मीडिया पर जनता ने भी इस पर तीखी प्रतिक्रिया दी। एक यूज़र ने X (पूर्व ट्विटर) पर लिखा:
“आमिर ख़ान को ‘भारत असहिष्णु है’ बोलने का साहस है, लेकिन आतंकवाद पर चुप्पी? शर्मनाक।”
दूसरे यूज़र ने लिखा:
“शाहरुख़ जब अमेरिका एयरपोर्ट पर रोके जाते हैं, तो CNN तक इंटरव्यू देते हैं। लेकिन जब देश के जवान मरते हैं, तो चुप क्यों?”
इन प्रतिक्रियाओं से स्पष्ट है कि जनता अब इनकी दोहरी मानसिकता से थक चुकी है। क्या ये वही लोग नहीं हैं जो “इंडिया वाले” गाने में देशभक्ति का नारा लगाते हैं, और रक्षाबंधन या दिवाली के विज्ञापनों में देश की विविधता की बातें करते हैं? फिर जब असली भारत घायल होता है, तब इनके अंदर का देशप्रेम कहाँ चला जाता है?
नेताओं ने भी जताया आक्रोश
इस चुप्पी पर नेताओं की ओर से भी अप्रत्यक्ष प्रतिक्रिया देखने को मिली। केंद्रीय मंत्री अनुराग ठाकुर ने बिना नाम लिए कहा:
“कुछ लोग देश की संस्कृति और सुरक्षा पर हमला होने पर चुप्पी साध लेते हैं, लेकिन वही लोग अन्य मुद्दों पर तुरंत ट्वीट करने लगते हैं। यह ‘सिलेक्टिव एक्टिविज़्म’ अब ज्यादा दिन नहीं चलेगा।”
उधर असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा ने कहा:
“बॉलीवुड का एक बड़ा तबका अब भी यह मानता है कि राष्ट्रवाद उनके लिए एक ‘चॉइस’ है, जिम्मेदारी नहीं।”
यह साफ़ दर्शाता है कि आमिर, शाहरुख़ और सलमान जैसे कलाकार अब राष्ट्र के प्रति अपनी नैतिक जिम्मेदारियों से मुंह मोड़ रहे हैं।
क्या डर है या एजेंडा?
यह सवाल भी उठता है कि क्या ये चुप्पी किसी डर का परिणाम है या फिर किसी छिपे एजेंडे का हिस्सा? जब इज़राइल पर हमला होता है, तो शाहरुख़ के परिवार से जुड़े लोग तुरंत फिलिस्तीन के समर्थन में ट्वीट करते हैं। आमिर ख़ान ‘PK’ जैसी फिल्मों में हिन्दू धर्म को व्यंग्य का पात्र बनाते हैं, लेकिन आतंक पर एक शब्द नहीं कहते। सलमान ख़ान जब-जब विवाद में फंसे हैं, उन्होंने भारत की न्याय व्यवस्था पर तो सवाल उठाया, पर पाकिस्तान की निंदा नहीं की।
क्या यह केवल संयोग है?
देश को चाहिए ज़िम्मेदार सितारे
जनता अब जागरूक हो चुकी है। देश अब वह भारत नहीं है जहां सितारे कुछ भी कहकर छूट जाते थे। आज जनता पूछ रही है कि जब करोड़ों भारतीय आपकी फिल्में देखने जाते हैं, आपके ब्रांड्स को खरीदते हैं, तब क्या आपकी भी कोई ज़िम्मेदारी नहीं बनती?
सहानुभूति दिखाना, शहीदों के परिवार के साथ खड़ा होना कोई राजनीतिक स्टेटमेंट नहीं होता—यह इंसानियत का कर्तव्य होता है। और जब बार-बार यही चेहरे चुप रहते हैं, तो संदेह स्वाभाविक है।
अंत में यही कहना उचित होगा:
आमिर, शाहरुख़ और सलमान को अब यह समझना होगा कि भारत को मात्र अपनी जीविका चलाने के लिए भावनात्मक रूप से प्रयोग न करें । अगर वे आतंकी हमले पर भी दो शब्द सहानुभूति नहीं दे सकते, तो देश उन्हें ‘मौन सितारा’ मानने को मजबूर होगा, न कि ‘मेगास्टार’।
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