हांगकांग में महात्मा बुद्ध से जुड़े पिपरहवा रत्नों की नीलामी रुकी, भारत सरकार की बड़ी सफलता

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समग्र समाचार सेवा 

हॉँगकॉंग 6 मई 2025-भारत सरकार ने एक महत्वपूर्ण राजनयिक और सांस्कृतिक हस्तक्षेप करते हुए हांगकांग में होने वाली भगवान बुद्ध से जुड़े अमूल्य पिपरहवा रत्नों (Piprahwa treasures) की नीलामी को सफलतापूर्वक रुकवा दिया है। यह नीलामी विश्वविख्यात नीलामी संस्था सोथबी (Sotheby’s) द्वारा आयोजित की जा रही थी, लेकिन भारत के संस्कृति मंत्रालय की ओर से नोटिस दिए जाने के बाद सोथबी ने इसे रोकने का आश्वासन दिया है।

पिपरहवा रत्न केवल पुरातात्त्विक वस्तुएं नहीं हैं, बल्कि इनका धार्मिक, ऐतिहासिक और भावनात्मक महत्व अत्यंत गहरा है। ये रत्न स्वयं महात्मा बुद्ध (भगवान बुद्ध) से जुड़े हैं और उनके महापरिनिर्वाण (Final Passing) के तुरंत बाद के समय के माने जाते हैं। माना जाता है कि इनमें बुद्ध के शरीर के धातु अवशेषों का अंश है, जिन्हें उनके शाक्य वंशजों ने प्राप्त किया था।

ऐतिहासिक और पुरातात्त्विक महत्व

पिपरहवा अवशेषों की खोज 19वीं सदी के अंत में, 1898 में, वर्तमान उत्तर प्रदेश के सिद्धार्थनगर जिले में स्थित पिपरहवा में की गई थी। उस समय ब्रिटिश राज के अधीन कार्यरत प्रशासनिक अधिकारी विलियम क्लैक्सटन पेप्पे (William Claxton Peppe) ने इस खुदाई का नेतृत्व किया था। आज, क्रिस पेप्पे और विलियम क्लैक्सटन पेप्पे जैसे नाम इन वस्तुओं के मालिकाना हक और उनके हस्तांतरण से जुड़े हुए हैं।

पिपरहवा की खोज को प्रारंभिक बौद्ध धर्म से जुड़ी सबसे महत्वपूर्ण पुरातात्त्विक खोजों में गिना जाता है। इनमें एक विशाल पत्थर का संदूक, सोपस्टोन के कलश, अवशेष पात्र, सोने और कीमती पत्थरों के टुकड़े तथा क्रिस्टल के अवशेष शामिल हैं, जिनमें से कई को बुद्ध के शरीर के अवशेषों को रखने के लिए तैयार किया गया था। एक ब्राह्मी लिपि में लिखे शिलालेख ने पुष्टि की थी कि ये अवशेष शाक्य वंशजों के हैं।

दशकों से पिपरहवा के अवशेष भारत ही नहीं, बल्कि श्रीलंका, थाईलैंड, म्यांमार, जापान और अन्य बौद्ध देशों में भी ऐतिहासिक और सांस्कृतिक जिज्ञासा का केंद्र रहे हैं।

विवादित नीलामी

हाल ही में विवाद तब शुरू हुआ जब सोथबी हांगकांग ने पिपरहवा रत्नों के रूप में वर्णित कुछ वस्तुओं की नीलामी की घोषणा की। भारत में विद्वानों, भिक्षुओं, इतिहासकारों और सरकारी अधिकारियों के बीच तुरंत चिंता की लहर दौड़ गई, जिन्होंने इसे बुद्ध के पवित्र अवशेषों की पवित्रता और स्वामित्व पर आघात माना।

भारत सरकार के संस्कृति मंत्रालय ने तुरंत प्रतिक्रिया देते हुए सोथबी हांगकांग और क्रिस पेप्पे तथा विलियम क्लैक्सटन पेप्पे को नोटिस जारी किया। नोटिस में भारत ने इन अवशेषों पर अपना दावा प्रस्तुत किया और इनके व्यावसायिकरण पर आपत्ति जताई। सरकार ने यह भी इंगित किया कि इस प्रकार की नीलामी 1970 की यूनेस्को (UNESCO) कंवेंशन के उल्लंघन में आती है, जिसका उद्देश्य सांस्कृतिक धरोहर की अवैध खरीद-बिक्री पर रोक लगाना है, और जिसके हस्ताक्षरकर्ता भारत और चीन (हांगकांग सहित) दोनों हैं।

भारत सरकार के हस्तक्षेप के बाद सोथबी हांगकांग ने नीलामी को स्थगित करने का आश्वासन दिया, जिससे भारत और वैश्विक बौद्ध समुदाय में राहत की लहर दौड़ी है।

भारत की सांस्कृतिक कूटनीति

यह घटना भारत के उस बढ़ते प्रयास का उदाहरण है जिसके तहत वह विश्वभर में अपनी सांस्कृतिक धरोहरों की रक्षा कर रहा है। हाल के वर्षों में मोदी सरकार ने विदेशों में चोरी-छिपे या उपनिवेशी काल में बाहर ले जाई गई भारतीय मूर्तियों, पांडुलिपियों और पुरावशेषों की वापसी को प्राथमिकता दी है।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की विदेशी यात्राओं के दौरान कई बार अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया, कनाडा और ब्रिटेन जैसे देशों से भारतीय वस्तुएं लौटाई गई हैं। संस्कृति मंत्रालय, जो पहले जी. किशन रेड्डी के अधीन था और अब सक्षम अधिकारियों के नेतृत्व में है, इस दिशा में सक्रिय भूमिका निभा रहा है।

पिपरहवा अवशेषों का मामला भारत के लिए और भी संवेदनशील है, क्योंकि भगवान बुद्ध का जीवन और शिक्षाएं केवल भारत के ही नहीं, बल्कि कई एशियाई देशों की सभ्यतागत पहचान का केंद्र हैं।

व्यापक बौद्ध संदर्भ

पिपरहवा स्थल अंतरराष्ट्रीय तीर्थयात्रा का केंद्र रहा है। यह बौद्ध परिपथ (Buddhist Circuit) का हिस्सा है, जिसमें लुंबिनी (नेपाल में जन्मस्थल), बोधगया (ज्ञान प्राप्ति), सारनाथ (प्रथम उपदेश) और कुशीनगर (महापरिनिर्वाण स्थल) शामिल हैं। भारत इस परिपथ को अपनी कूटनीति के तहत बौद्ध डिप्लोमेसी के रूप में पेश कर रहा है, जिससे श्रीलंका, थाईलैंड और जापान जैसे देशों के साथ संबंध मजबूत हुए हैं।

ऐसे में, पिपरहवा रत्नों की नीलामी की कोशिश न केवल राजनयिक संकट पैदा कर सकती थी, बल्कि भारत की बौद्ध धरोहर का संरक्षक होने की छवि को भी नुकसान पहुंचा सकती थी।

सार्वजनिक प्रतिक्रिया और विशेषज्ञ राय

नीलामी की खबर आते ही भारत में तीव्र प्रतिक्रियाएं हुईं। बौद्ध भिक्षुओं, विद्वानों और राजनीतिक नेताओं ने इसकी कड़ी निंदा की। सोशल मीडिया पर भी आक्रोश दिखाई दिया और तत्काल सरकारी हस्तक्षेप की मांग उठी। विशेषज्ञों का कहना है कि इस प्रकार के अवशेष केवल पुरातात्त्विक वस्तुएं नहीं हैं, बल्कि आज भी लाखों बौद्धों के लिए पूजनीय हैं।

पुरातत्वविदों ने यह भी कहा कि पिपरहवा की खोज का मूल उद्देश्य इन अवशेषों को अलग करना या उनका व्यावसायिककरण करना कभी नहीं था। ऐसे अवशेषों को सार्वजनिक संग्रहालयों या धार्मिक संस्थानों में संरक्षित किया जाना चाहिए।

आगे की राह

अब जबकि नीलामी रुक गई है, भारतीय सरकार के सोथबी और पेप्पे परिवार के साथ बातचीत जारी रखने की संभावना है, ताकि इन अवशेषों को भारत वापस लाया जा सके या किसी सुरक्षित सार्वजनिक स्थान पर रखा जा सके। सरकार पर यह दबाव भी बढ़ा है कि वह भविष्य में ऐसी घटनाओं को रोकने के लिए घरेलू कानूनों और अंतरराष्ट्रीय समझौतों को और मजबूत करे।

संक्षेप में, पिपरहवा अवशेषों की नीलामी रोकना केवल भारत के लिए ही नहीं, बल्कि वैश्विक बौद्ध समुदाय के लिए भी एक बड़ी जीत है। यह घटना हमें जागरूक और सजग रहने की याद दिलाती है, ताकि ऐसी धरोहरों की रक्षा की जा सके, जो केवल एक देश की नहीं, बल्कि पूरी मानवता की संपत्ति हैं।

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