छुपा हुआ खेल: क्यों भारत को अमेरिका-पाकिस्तान संबंधों और वैश्विक हथियार अर्थव्यवस्था पर सतर्क रहना चाहिए
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पूनम शर्मा
जब दिसंबर 2001 में संसद पर हमले के बाद भारत और पाकिस्तान के बीच तनाव अपने चरम पर था, तब लगा जैसे युद्ध बस होने ही वाला है। भारतीय सैनिकों ने सीमा पर डेरा डाल लिया था, और पाकिस्तान की सेना मोर्चे पर तैनात थी — लेकिन गोली एक भी नहीं चली। वजह? पाकिस्तान युद्ध की लागत उठाने की हालत में नहीं था।
आज 20 साल बाद, भारत एक नई ताकत बन चुका है — सैन्य रूप से, आर्थिक रूप से और रणनीतिक रूप से। पर खतरे अब सिर्फ सीमा पर नहीं हैं, बल्कि वैश्विक राजनीति के कोने-कोने में छिपे हैं। और इसी के केंद्र में है एक ऐसा त्रिकोण जो दशकों से दक्षिण एशिया की सुरक्षा नीति को परिभाषित करता रहा है — भारत, पाकिस्तान और अमेरिका।
पाकिस्तान ने दशकों तक अमेरिका से अरबों डॉलर की सैन्य सहायता ली है — F-16, टैंक, निगरानी उपकरण — सबकुछ। बदले में पाकिस्तान ने अमेरिका के सबसे बड़े दुश्मनों को पनाह दी: ओसामा बिन लादेन, तालिबान और न जाने कौन-कौन।
ताजा घटनाक्रमों में अमेरिका ने फिर से पाकिस्तान को 400 मिलियन डॉलर की आर्थिक सहायता दी है — नाम भले ही ‘स्थिरीकरण’ का हो, पर उद्देश्य कहीं ज्यादा गहरा है। पाकिस्तान, हमेशा की तरह, अमेरिका, सऊदी अरब और चीन के बीच संतुलन साध रहा है। वहीं पाक सेना प्रमुख असीम मुनीर भारत विरोधी बयानबाज़ी से बाज़ नहीं आ रहे।
आज भारत और अमेरिका के संबंध पहले से कहीं अधिक मजबूत हैं। QUAD, COMCASA, BECA जैसे समझौते, चीन के खिलाफ साझा रणनीति और टेक्नोलॉजी से लेकर क्लाइमेट और एजुकेशन तक सहयोग — दोनों देश एक नए युग में प्रवेश कर चुके हैं।
लेकिन क्या यह नज़दीकी भरोसे के बराबर है? अमेरिका की विदेश नीति अक्सर “ट्रांजैक्शनल” रही है। पाकिस्तान को हथियार बेचने वाला देश, भारत का “रणनीतिक साझेदार” कैसे हो सकता है?
2023 में वैश्विक सैन्य खर्च $2.44 ट्रिलियन पहुंच गया। और इसमें सबसे बड़ा हिस्सा हथियारों की बिक्री का है। अमेरिका, रूस, चीन, फ्रांस और जर्मनी — ये देश दुनिया के सबसे बड़े हथियार व्यापारी हैं।
जैसे ही दुनिया में तनाव बढ़ता है — दक्षिण एशिया हो या यूक्रेन — इन देशों की हथियार कंपनियों के शेयर आसमान छूने लगते हैं। युद्ध किसी देश के लिए बर्बादी है, पर हथियार उद्योग के लिए सोने की खान।
भारत को तैयार रहना होगा, लेकिन जल्दबाज़ी में फंसना नहीं चाहिए। पाकिस्तान या चीन के किसी भी उकसावे पर रणनीतिक और ठंडे दिमाग से जवाब देना जरूरी है। युद्ध केवल अंतिम उपाय होना चाहिए — वह भी तभी जब देश की रक्षा या भविष्य दांव पर हो।
घरेलू मोर्चे पर भी सावधानी जरूरी है। फूट डालने वाले नेता, नफरत फैलाने वाले मीडिया चैनल, और मतभेद भड़काने वाले समूह — ये भी सुरक्षा के उतने ही बड़े दुश्मन हैं जितने सीमापार से आने वाले खतरे।
भारत के सामने एक अनोखा मौका है — दुनिया में नेतृत्व करने का। लेकिन यह तभी संभव है जब हम वैश्विक जाल को समझें। हथियार बेचने वालों की चालों से बचें। दोस्ती में भी अपनी शर्तें रखें। और सबसे जरूरी — देश के भीतर एकता को प्राथमिकता दें।
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