74 साल का अपमान खत्म: मोदी सरकार ने 30 मिनट में UNMOGIP को भारत से बाहर निकाला – औपनिवेशिक गुलामी की अंतिम कड़ी टूटी!
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पूनम शर्मा
भारत ने एक ऐसे ‘अतिथि’ को 74 वर्षों तक अपनी ज़मीन पर पनाह दी, जिसने न तो कभी आमंत्रण पाया, न ही कोई उपयोगिता साबित की। यह विदेशी मेहमान था – United Nations Military Observer Group in India and Pakistan (UNMOGIP)। 1948 से भारतीय ज़मीन पर मौजूद यह वैश्विक संस्था न तो शांति लाई, न निष्पक्ष रही, बल्कि वर्षों तक भारत की संप्रभुता में दखल देती रही।
लेकिन अब इतिहास बदल गया है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार ने वह कर दिखाया, जो पिछले सात दशकों में कोई सरकार नहीं कर सकी। सिर्फ 30 मिनट में इस 74 साल पुराने विदेशी कब्जे को समाप्त कर दिया गया। विदेश मंत्री डॉ. एस. जयशंकर के नेतृत्व में भारत सरकार ने UNMOGIP को सीधी भाषा में आदेश दिया – “अब आपकी जरूरत नहीं है। 10 दिन में भारत छोड़ दें।”
नेहरू की ऐतिहासिक भूल, जिसकी कीमत भारत ने चुकाई
इस कदम की गहराई को समझने के लिए हमें 1948 में लौटना होगा, जब प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू ने कश्मीर मामले को संयुक्त राष्ट्र में ले जाकर सबसे बड़ी रणनीतिक भूल की। यह वही समय था जब UNMOGIP का गठन हुआ था। उद्देश्य था – भारत और पाकिस्तान के बीच युद्धविराम का निरीक्षण।
लेकिन समय के साथ यह संस्था निगरानीकर्ता से एजेंडा-धारक बन गई। इसने भारत के विरोध में बयान देने शुरू कर दिए, पाकिस्तान की भाषा बोलनी शुरू की और अंतरराष्ट्रीय मंचों पर भारत की स्थिति को कमजोर किया। सबसे विडंबना – इस संस्था का खर्च भारत ही उठा रहा था! फाइव-स्टार होटलों, वाहनों, सुरक्षा और वेतन – सब कुछ भारतीय करदाताओं की जेब से।
UNMOGIP: भारत में बैठा विदेशी सेंसर बोर्ड
पिछले कुछ वर्षों में UNMOGIP एक विदेशी सेंसर बोर्ड बन चुका था, जो भारत की नीति और कार्रवाईयों पर सवाल उठाता था। इसके “रिपोर्ट्स” का उपयोग भारत को घेरने के लिए अंतरराष्ट्रीय मंचों पर किया जाता रहा।
UNMOGIP ने हमेशा यह जताने की कोशिश की कि कश्मीर मुद्दा सिर्फ भारत-पाक के बीच नहीं, बल्कि एक “तीरफा” मामला है जिसमें संयुक्त राष्ट्र की भूमिका होनी चाहिए। यह सीधा भारत की संप्रभुता पर हमला था।
इस संस्था की उपस्थिति, भारत में बैठे एक कूटनीतिक परजीवी की तरह हो गई थी – जो मेहमान बनकर आया था, लेकिन मेज़बान को ही नीचा दिखा रहा था।
मोदी सरकार की कूटनीतिक सर्जिकल स्ट्राइक
मोदी सरकार ने निर्णय लिया – अब बहुत हुआ! विदेश मंत्रालय ने UNMOGIP के अधिकारियों के वीज़ा रद्द कर दिए, कूटनीतिक छूटें समाप्त कर दी गईं और उन्हें 10 दिन में देश छोड़ने का आदेश दे दिया गया। यह पूरा निर्णय मात्र 30 मिनट में लिया गया! यह है नए भारत की कार्यशैली – निर्णय, गति और स्पष्टता।
यह महज़ एक प्रशासनिक फैसला नहीं था – यह औपनिवेशिक मानसिकता पर अंतिम प्रहार था। यह स्पष्ट संकेत है कि भारत अब ‘सॉफ्ट स्टेट’ नहीं, बल्कि ‘सॉलिड स्टेट’ है। जो स्वयं तय करेगा कि कौन मेहमान है और कौन घुसपैठिया।
दुनिया को संदेश: भारत अब खुद अपनी तकदीर लिखेगा
यह कदम मोदी सरकार के उस व्यापक दृष्टिकोण को दर्शाता है, जो भारत की संप्रभुता, गरिमा और सांस्कृतिक आत्मविश्वास को पुनःस्थापित कर रहा है। यह नया भारत अतीत के अपराधबोध से मुक्त है, अब वह किसी भी विदेशी संस्था के आगे झुकता नहीं, स्पष्टता से खड़ा होता है।
संयुक्त राष्ट्र जैसे निकायों को यह समझ लेना चाहिए कि अब भारत 1947 वाला देश नहीं है। अब भारत न तो निरीह है, न ही निष्क्रिय। अब वह निर्णय करता है, साहस के साथ, आत्मबल के साथ।
जैसे 1947 में यूनियन जैक उतरा था, वैसे ही अब UNMOGIP का पतन हुआ
यह घटना इतिहास के पन्नों में दर्ज की जानी चाहिए। जैसे 15 अगस्त 1947 को भारत से ब्रिटिश झंडा उतरा था, वैसे ही 2025 में भारत से UNMOGIP का झंडा उतरा। यह आखिरी विदेशी हस्तक्षेप का अंत है।
अधिकतर भारतीयों को तो यह भी नहीं पता था कि एक विदेशी मिशन दिल्ली में बैठा था, भारत विरोधी रिपोर्टें बना रहा था, और हमारा ही खर्च खा रहा था। अब वह अध्याय बंद हो गया है।
30 मिनट में सुधारा गया 74 साल पुराना अपराध
मोदी सरकार ने सिर्फ 30 मिनट में वह ऐतिहासिक भूल सुधार दी, जिसने भारत की विदेश नीति को 74 वर्षों तक बाधित किया। यह निर्णय सिर्फ कूटनीति नहीं, बल्कि सभ्यता का सुधार है।
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