2050 तक भारत में सबसे बड़ी मुस्लिम आबादी, लेकिन हिंदू अल्पसंख्यक नहीं होंगे: PEW रिसर्च रिपोर्ट का विश्लेषण

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पूनम शर्मा 

अमेरिका के प्रतिष्ठित थिंक टैंक PEW रिसर्च सेंटर की एक हालिया रिपोर्ट ने भारत सहित पूरे विश्व की धार्मिक जनसंख्या के भविष्य को लेकर चौंकाने वाली और महत्वपूर्ण जानकारी साझा की है। रिपोर्ट के अनुसार, आने वाले 25 वर्षों में दुनिया की धार्मिक संरचना में बड़ा बदलाव होने जा रहा है, जिसका सीधा असर भारत पर भी पड़ेगा।

भारत में 2050 तक सबसे बड़ी मुस्लिम आबादी!

PEW रिसर्च सेंटर की रिपोर्ट के मुताबिक, वर्ष 2050 तक भारत दुनिया का सबसे बड़ा मुस्लिम आबादी वाला देश बन जाएगा, जो कि इस समय इंडोनेशिया के पास यह दर्जा है। अनुमान है कि 2050 तक भारत में मुसलमानों की संख्या 31.1 करोड़ (311 मिलियन) तक पहुंच जाएगी। यह वृद्धि काफी तेज़ है, और आगामी दशक में मुस्लिम जनसंख्या की विकास दर +7.5% होने का अनुमान है।

इस रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि भारत में मुस्लिमों की संख्या बढ़ने के बावजूद, हिंदू धर्म के अनुयायियों की संख्या में भी कमी नहीं आएगी। बल्कि हिंदुओं की जनसंख्या 2050 तक 1.3 बिलियन (130 करोड़) हो जाएगी, जो वर्तमान की तुलना में 33% की वृद्धि होगी।

वैश्विक धार्मिक परिवर्तन: ईसाई धर्म में गिरावट, नास्तिकों में वृद्धि

PEW रिसर्च की इस रिपोर्ट में केवल भारत ही नहीं, बल्कि विश्व स्तर पर धर्मों की स्थिति में बड़े बदलाव का पूर्वानुमान जताया गया है।

🔸 2025 से शुरू होकर विश्व की जन्म दर और युवाओं की संख्या में बड़ा बदलाव देखने को मिलेगा, जिससे विश्व में ईसाई और मुस्लिम धर्म के अनुयायियों की संख्या लगभग बराबर हो जाएगी।
🔸 यह संकेत करता है कि ईसाई धर्म की वैश्विक जनसंख्या में गिरावट आएगी जबकि इस्लाम धर्म में वृद्धि होगी।

विशेषकर यूरोप में मुस्लिम जनसंख्या में 10% की वृद्धि अनुमानित है। वहीं, अमेरिका, फ्रांस और अन्य ईसाई देशों में बड़ी संख्या में लोग नास्तिकता की ओर अग्रसर होंगे। इसका अर्थ है कि वे खुद को किसी धर्म से नहीं जोड़ेंगे। इसका सीधा प्रभाव यह होगा कि 2050 तक वैश्विक स्तर पर ईसाई धर्म की जनसंख्या में तेज़ गिरावट होगी।

 भारत में ईसाई जनसंख्या में वृद्धि लेकिन सीमित

भारत के संदर्भ में PEW की रिपोर्ट में यह उल्लेख किया गया है कि 2050 तक भारत में ईसाइयों की संख्या 3.7 करोड़ (37 मिलियन) तक पहुंच सकती है, जो कि 18% वृद्धि होगी। हालांकि यह वृद्धि ध्यान देने योग्य है, लेकिन मुसलमानों और हिंदुओं की तुलना में यह काफी कम है।

 जन्म दर: हिंदुओं के लिए एक चेतावनी

रिपोर्ट में सबसे अहम बात जो सामने आई है, वह है हिंदू समुदाय की जन्म दर में गिरावट। जहां एक ओर मुस्लिम समुदाय में जन्म दर अधिक बनी हुई है, वहीं हिंदू समुदाय में एक दंपत्ति के औसतन दो से कम बच्चे हो रहे हैं। यह एक गंभीर चेतावनी है।

PEW रिपोर्ट स्पष्ट संकेत देती है कि यदि आने वाले वर्षों में हिंदू दंपत्तियों ने दो से तीन बच्चों का औसत बनाए नहीं रखा, तो अगली सदी तक भारत में हिंदू समुदाय का बहुसंख्यक बने रहना मुश्किल हो सकता है।

हालांकि 2050 तक हिंदू जनसंख्या में वृद्धि होगी और भारत में हिंदू बहुसंख्यक रहेंगे, लेकिन यदि यह जन्म दर घटती रही तो यह दीर्घकालिक खतरे का संकेत है।

आंकड़ों के पीछे छिपा संदेश

PEW रिसर्च सेंटर की यह रिपोर्ट केवल आंकड़े नहीं हैं, बल्कि एक सामाजिक चेतावनी भी है। धार्मिक जनसंख्या में बदलाव का अर्थ केवल संख्या का खेल नहीं है, बल्कि यह सांस्कृतिक, राजनीतिक और सामाजिक संतुलन को भी प्रभावित करता है।

भारत जैसे विविधता वाले देश में यदि एक धर्म विशेष की जनसंख्या में तेज़ी से वृद्धि होती है और दूसरे धर्म के लोगों की जन्म दर कम होती है, तो आने वाले वर्षों में धार्मिक संतुलन प्रभावित हो सकता है। यह स्थिति सामाजिक तनाव को भी जन्म दे सकती है, जैसा कि कई यूरोपीय देशों में देखा जा रहा है।

भविष्य सुरक्षित करने की आवश्यकता

इस रिपोर्ट का सबसे बड़ा संदेश यह है कि भारत को न केवल धार्मिक सहिष्णुता बनाए रखनी होगी, बल्कि जनसंख्या संतुलन पर भी ध्यान देना होगा। हिंदू समुदाय को विशेष रूप से यह समझने की ज़रूरत है कि अगर वह आने वाले वर्षों में सांस्कृतिक और जनसंख्यात्मक नेतृत्व बनाए रखना चाहता है, तो संतुलित रूप से जनसंख्या वृद्धि पर ध्यान देना होगा।

यह समय है जब सरकार, समाज और धार्मिक संस्थाएं जनसंख्या नीति, शिक्षा और सांस्कृतिक संरक्षण पर खुली चर्चा करें। भारत का भविष्य तभी सुरक्षित रहेगा जब इसकी जनसंख्या संरचना स्थिर और संतुलित बनी रहे।

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