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समग्र समाचार सेवा
चेन्नई 18 जून : मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट ने तमिलनाडु सरकार और मद्रास हाईकोर्ट दोनों पर तीखी टिप्पणी करते हुए कहा कि ADGP एच. एम. जयाराम की गिरफ़्तारी का आदेश ‘चौंकाने वाला’ है और इस पर की गई कार्रवाई न्यायपालिका की मर्यादा के खिलाफ है।
मुख्य न्यायाधीश डी. वाई. चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पीठ ने सरकार द्वारा वरिष्ठ अधिकारी को निलंबित किए जाने को भी आड़े हाथों लिया और कहा कि यह कदम राजनीतिक दबाव में लिया गया फैसला प्रतीत होता है, जो कानून व्यवस्था पर गहरा असर डाल सकता है।
अदालतों की सीमाएँ लाँघी ?
सुप्रीम कोर्ट ने साफ शब्दों में कहा कि न्यायिक आदेशों में न्यायसंगतता और संतुलन होना चाहिए। हाईकोर्ट द्वारा ADGP जयाराम की तात्कालिक गिरफ़्तारी का आदेश, बिना जाँच पूरी हुए, कानूनी प्रक्रिया का अपमान है और इससे पुलिस प्रशासन की गरिमा को ठेस पहुँचती है।
सरकार पर सीधा वार
तमिलनाडु सरकार को भी सुप्रीम कोर्ट ने फटकार लगाई कि उसने ADGP को जल्दबाज़ी में निलंबित कर एक प्रकार से राजनीतिक प्रतिशोध का प्रदर्शन किया है। कोर्ट ने चेतावनी दी कि यदि इस प्रकार अधिकारियों के खिलाफ निर्णय लिए गए तो पुलिस तंत्र डर के साए में काम करेगा और इससे पूरे राज्य की कानून व्यवस्था चरमरा सकती है।
मामला क्या है?
यह पूरा विवाद चेन्नई में हुए एक अपहरण मामले से जुड़ा है, जिसमें मद्रास हाईकोर्ट ने बिना पूरी जाँच के सीधे ADGP को गिरफ्तार करने का आदेश दे दिया था। सुप्रीम कोर्ट ने इसे कानून की मूल भावना के खिलाफ बताते हुए ‘हैरान करने वाला फैसला’ करार दिया।
आगे क्या?
यह मामला अब फिर से सुप्रीम कोर्ट में आगे की सुनवाई के लिए जाएगा, जहाँ जमानत और अधिकार क्षेत्र जैसे अहम मुद्दों पर बहस होगी। यह देखना दिलचस्प होगा कि मद्रास हाईकोर्ट अपने आदेश पर अड़ी रहती है या सुप्रीम कोर्ट के कड़े रुख के बाद कदम पीछे खींचती है।
देश देख रहा है… यह न्याय की रक्षा है या सत्ता का टकराव?
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