शर्मिष्ठा पनोली को मिली ज़मानत, मगर क्या अभिव्यक्ति की आज़ादी अब एकपक्षीय हो गई है?

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पूनम शर्मा
कोलकाता से पुणे तक सोशल मीडिया और अदालतों में एक नाम गूंज रहा है—शर्मिष्ठा पनोली। एक लॉ स्टूडेंट, एक इंस्टाग्राम इन्फ्लुएंसर और अब एक विचारधारा की स्वतंत्रता की प्रतीक। कलकत्ता हाई कोर्ट ने उन्हें अंतरिम जमानत दी, लेकिन यह मामला सिर्फ एक जमानत से कहीं अधिक है। यह एक बड़ा सवाल खड़ा करता है—क्या भारत में ‘अभिव्यक्ति की आज़ादी’ अब एकपक्षीय हो गई है?

शर्मिष्ठा का कसूर क्या था?

14 मई को एक पाकिस्तानी सोशल मीडिया यूज़र ने पहलगाम आतंकी हमले के बाद शर्मिष्ठा पनोली से सवाल किया और साथ ही आतंकियों की तरफदारी भी की। जवाब में शर्मिष्ठा ने एक वीडियो पोस्ट किया, जिसमें उन्होंने पाकिस्तानी यूज़र को करारा जवाब देने के साथ-साथ बॉलीवुड के उन कलाकारों पर भी सवाल उठाए, जो आतंकी घटनाओं पर चुप्पी साध लेते हैं। लेकिन उनकी प्रतिक्रिया को मुस्लिम समुदाय पर हमला बताते हुए भारी विरोध शुरू हो गया। उन्होंने वीडियो डिलीट कर माफी भी मांगी, लेकिन 15 मई को एफआईआर दर्ज हो गई और 17 मई को गिरफ्तारी वारंट भी जारी कर दिया गया।

कोर्ट ने क्या कहा?

न्यायमूर्ति राजा बसु चौधरी ने माना कि शिकायत में शर्मिष्ठा की व्यक्तिगत जानकारी साझा करना उनकी सुरक्षा को खतरे में डाल सकता है। कोर्ट ने यह भी कहा कि अब उनसे पूछताछ की कोई जरूरत नहीं है और उन्हें ज़मानत मिलनी चाहिए। साथ ही, अगर उन्हें कोई धमकी मिलती है तो राज्य पुलिस को सुरक्षा देने का निर्देश भी दिया गया।

पर सवाल यह है कि…

जब शर्मिष्ठा पनोली को सिर्फ एक वीडियो के लिए निशाना बनाया जा सकता है, तो फिर वही कठोरता ममता बनर्जी सरकार उन नेताओं पर क्यों नहीं दिखाती, जो बार-बार हिन्दू धर्म और भारत की सुरक्षा व्यवस्था पर आपत्तिजनक टिप्पणियाँ करते हैं?

क्या अभिषेक बनर्जी को कोई रोकेगा?

तृणमूल कांग्रेस के वरिष्ठ नेता अभिषेक बनर्जी ने हाल ही में पाकिस्तान को लेकर एक बयान दिया, जिसमें उन्होंने भारत की सैन्य रणनीति पर सवाल उठाते हुए पाकिस्तान की ‘शांति की कोशिशों’ का उल्लेख किया। क्या यह शर्मिष्ठा पनोली से कम आपत्तिजनक है? लेकिन उनके खिलाफ कोई FIR नहीं, कोई गिरफ्तारी नहीं, कोई वॉरंट नहीं।

महुआ मोइत्रा का हिन्दू धर्म पर ज़हर

टीएमसी सांसद महुआ मोइत्रा कई बार हिन्दू देवी-देवताओं पर विवादास्पद टिप्पणियाँ कर चुकी हैं। एक बार तो उन्होंने मां काली को ‘मांसाहारी और शराबप्रेमी’ बताया था। इस पर राष्ट्रव्यापी आक्रोश के बावजूद न तो ममता बनर्जी ने कोई कार्रवाई की और न ही पार्टी ने उन्हें सस्पेंड किया। क्या यह हिन्दू धर्म के अनुयायियों की भावनाओं का अपमान नहीं है?

डबल स्टैंडर्ड क्यों?

जब कोई ‘आपत्तिजनक’ टिप्पणी किसी विशेष समुदाय पर होती है, तो तुरंत एक्शन होता है। लेकिन जब हिन्दू धर्म को गालियाँ दी जाती हैं, भारत की सैन्य नीति का मज़ाक उड़ाया जाता है, पाकिस्तान का पक्ष लिया जाता है—तो सब कुछ ‘अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता’ के नाम पर जायज़ मान लिया जाता है।

ममता बनर्जी की चुप्पी शर्मनाक क्यों?

एक ओर राज्य की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी कानून-व्यवस्था को लेकर भाषण देती हैं, दूसरी ओर जब उनकी ही पार्टी के नेता देश की एकता और धर्म विशेष के खिलाफ ज़हर उगलते हैं, तो वह चुप क्यों रहती हैं? क्या शर्मिष्ठा पनोली को सिर्फ इसलिए सज़ा दी गई क्योंकि वह एक सामान्य छात्रा हैं और उनके पास कोई राजनीतिक ताकत नहीं है?

सोशल मीडिया पर हिन्दू युवाओं का गुस्सा

इंस्टाग्राम, ट्विटर (अब X), और यूट्यूब पर हिन्दू युवाओं ने इस मामले को लेकर भारी विरोध जताया है। #JusticeForSharmistha ट्रेंड कर चुका है। युवा कह रहे हैं—”हमें अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता चाहिए, लेकिन सबके लिए बराबर।” इस पूरे विवाद ने एक बार फिर से यह साबित कर दिया कि डिजिटल भारत में विचारों की लड़ाई भी अब धर्म और राजनीति के खांचों में बंटी हुई है।

निष्कर्ष: यह सिर्फ ज़मानत नहीं, चेतावनी है

शर्मिष्ठा पनोली को मिली जमानत एक राहत जरूर है, लेकिन यह सिर्फ एक कानूनी फैसला नहीं, बल्कि एक चेतावनी है—अगर भारत को सचमुच एक लोकतांत्रिक राष्ट्र बनाना है तो ‘अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता’ को धर्म, जाति, और राजनीति से ऊपर रखना होगा। ममता बनर्जी और उनकी सरकार को यह तय करना होगा कि वे धर्मनिरपेक्षता के नाम पर सिर्फ एक समुदाय की भावनाओं की रक्षा करेंगी या सभी नागरिकों के अधिकारों की।


 

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