वक्फ संशोधन अधिनियम 2025: मुस्लिम बुद्धिजीवियों ने बताया समय पर न्यायिक-सामाजिक सुधार, कहा– अब होगा फलेह-ए-इंसानियत का असली पुनर्जागरण!
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समग्र समाचार सेवा
नई दिल्ली,19 मई । देश के प्रमुख मुस्लिम बुद्धिजीवियों के मंच ‘भारत फर्स्ट’ ने वक्फ (संशोधन) अधिनियम, 2025 का खुलकर समर्थन करते हुए इसे “समयानुकूल न्यायिक, सामाजिक और आर्थिक सुधार” बताया है। मंच का कहना है कि यह अधिनियम वक्फ संपत्तियों—जैसे मस्जिदें, कब्रिस्तान, मदरसे, दरगाहें और सामाजिक कल्याण हेतु दान की गई अन्य अचल संपत्तियों—के प्रबंधन की दशकों पुरानी अव्यवस्थाओं और कानूनी उलझनों का व्यवस्थित समाधान प्रस्तुत करता है।
भारत फर्स्ट के राष्ट्रीय संयोजक और वरिष्ठ अधिवक्ता शिराज़ कुरैशी ने दिल्ली में आयोजित एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा,
“वक्फ (संशोधन) अधिनियम 2025 वक्फ संपत्तियों की सुरक्षा, पेशेवर प्रबंधन और सामाजिक न्याय की भावना को मजबूत करता है। पारदर्शी डिजिटल प्लेटफॉर्म, पेशेवर प्रशासन, समयबद्ध न्याय और जनकल्याण पर केंद्रित व्यय व्यवस्था से न केवल दाताओं का विश्वास लौटेगा, बल्कि वक्फ का असली मकसद – फलेह-ए-इंसानियत – पुनर्जीवित होगा।”
फोरम के राष्ट्रीय सलाहकार डॉ. इमरान चौधरी ने अधिनियम के विरोधियों की मंशा पर सवाल उठाते हुए कहा,
“कुछ नेता खुद को ‘समुदाय के रक्षक’ बताकर राजनीतिक लाभ लेना चाहते हैं। यह कहना कि सरकार वक्फ की ज़मीनें हड़पना चाहती है, एक निराधार भ्रम है।”
उन्होंने स्पष्ट किया कि धारा 91-बी के अनुसार किसी भी अधिग्रहण के लिए वक्फ बोर्ड की अनुमति जरूरी है, और बाज़ार दर पर पूरा मुआवज़ा अनिवार्य है जो वक्फ विकास कोष में जाता है।
जावेद खान सैफ (अधिवक्ता), मौलाना कौकब मुश्तबा, फैज़ अहमद फैज़, मोहम्मद अफ़ज़ल, सैफ़ राणा, और अन्य वक्ताओं ने एक सुर में कहा कि अधिनियम धार्मिक स्वतंत्रता को नहीं छूता।
“यह कानून सिर्फ़ प्रशासनिक पारदर्शिता—ऑडिट, डिजिटलीकरण, सीईओ की योग्यता—से संबंधित है। इमामत, नमाज़ या धार्मिक रीति-रिवाजों को नहीं छेड़ता।”
उन्होंने सुप्रीम कोर्ट का हवाला देते हुए कहा कि कोर्ट ने 15 मई 2025 को स्पष्ट किया कि सिर्फ अंतरिम राहत पर सुनवाई चल रही है, अधिनियम पर रोक नहीं है।
वक्ताओं ने नेशनल वक्फ इंफॉर्मेशन सिस्टम (NWIS) की सराहना की, जो सभी संपत्तियों का GIS पोर्टल पर जियो-टैगिंग, नक्शे और बिल्डिंग डिटेल्स अपलोड करने को अनिवार्य करता है। इससे बे-नाम या डुप्लीकेट प्रविष्टियों पर रोक लगेगी।
नए अधिनियम के अनुसार, जिन वक्फों की वार्षिक आय ₹100 करोड़ से अधिक है, उनके खातों की नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (CAG) द्वारा जांच अनिवार्य होगी। इसके अलावा सभी वक्फों को कम से कम 50% शुद्ध आय छात्रवृत्ति, महिला स्व-रोजगार, स्वास्थ्य शिविर जैसे सामाजिक कार्यों पर खर्च करनी होगी, अन्यथा दंडात्मक कार्रवाई तय है।
धारा 14-ए के अंतर्गत अब प्रत्येक राज्य वक्फ बोर्ड में एक गैर-मुस्लिम न्यायविद् और एक महिला सामाजिक कार्यकर्ता की अनिवार्य भागीदारी होगी। वहीं, वक्फ बोर्ड के सीईओ अब या तो ग्रुप A के अधिकारी होंगे या 15 वर्षों का प्रशासनिक अनुभव जरूरी होगा, जिससे राजनीतिक सिफारिशों की गुंजाइश कम होगी।
नए संशोधन के तहत वक्फ ट्रिब्यूनलों को विवाद 12 महीने में निपटाने होंगे और ऑनलाइन साक्ष्य की व्यवस्था होगी। अपील सीधे उच्च न्यायालय में होगी, जिससे वर्षों से लंबित विवाद जल्द निपट सकेंगे।
अगर किसी संपत्ति का धार्मिक स्वरूप बदला जाता है, तो सीईओ को नोटिस देकर 30 दिनों में उसे पुनः बहाल करना होगा। ज़रूरत पड़ने पर ज़िलाधिकारी को enforcement में सहायता देनी होगी।
वक्ताओं ने कहा कि तुर्किए, मलेशिया और खाड़ी देशों में डिजिटल व पारदर्शी वक्फ प्रबंधन से न केवल मुसलमानों की पहचान बरकरार रही है, बल्कि उनके सामाजिक हित भी सुरक्षित हुए हैं।
“यह अधिनियम संविधान के अनुच्छेद 25-30 के तहत धार्मिक स्वतंत्रता और राज्य की संवैधानिक परिपालक की भूमिका के बीच संतुलन स्थापित करता है।”
फोरम ने बताया कि मुस्लिम समुदाय की ओर से सुप्रीम कोर्ट में 12 इंटरवेनर याचिकाएं दाखिल की जा चुकी हैं, जो यह दर्शाती हैं कि समुदाय व्यापक स्तर पर इस सुधार का समर्थन कर रहा है।
वक्फ (संशोधन) अधिनियम, 2025 केवल एक कानून नहीं है, बल्कि यह मुस्लिम समाज के आत्म-विश्वास, पारदर्शिता और विकास के नए युग की शुरुआत है। यह न सिर्फ़ धार्मिक आस्था की रक्षा करता है, बल्कि भविष्य की पीढ़ियों के लिए संगठित और जवाबदेह वक्फ प्रणाली की नींव भी रखता है।
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