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पूनम शर्मा
नेतन्याहू: मजबूत नेतृत्व की मिसाल
बेंजामिन नेतन्याहू को पश्चिम एशिया की राजनीति में एक दृढ़, राष्ट्रवादी और आतंक के खिलाफ कठोर रुख अपनाने वाले नेता के रूप में देखा जाता है। इज़रायल जैसे देश में, जहां चारों ओर से सुरक्षा चुनौतियाँ बनी रहती हैं, नेतन्याहू ने कभी भी समझौता करने की नीति नहीं अपनाई। वे हमेशा से मानते रहे हैं कि आतंक से निपटने के लिए कूटनीति नहीं, निर्णायक कार्रवाई जरूरी है।
हमास के विरुद्ध ‘पूर्ण युद्ध’
नेतन्याहू ने मई 2025 में स्पष्ट किया कि गाज़ा में चल रही कार्रवाई कोई सीमित ऑपरेशन नहीं, बल्कि एक “पूर्ण सैन्य मिशन” है। इस मिशन का एकमात्र उद्देश्य है — हमास का सम्पूर्ण विनाश। उनके शब्दों में, “हम गाज़ा में पूरी ताकत के साथ घुसेंगे, ताकि मिशन पूरा हो सके।”
यह बयान तब आया जब अंतरराष्ट्रीय दबाव इज़रायल पर युद्धविराम के लिए बढ़ रहा था। लेकिन नेतन्याहू ने वैश्विक आलोचना को दरकिनार करते हुए साफ किया कि इज़रायल किसी भी कीमत पर अपने नागरिकों की सुरक्षा से समझौता नहीं करेगा।
दृष्टिकोण: रक्षात्मक नहीं, आक्रामक नीति
इज़रायली प्रधानमंत्री की आतंकवाद से निपटने की रणनीति सदैव आक्रामक रही है। वे मानते हैं कि अगर आतंक के खिलाफ समय पर निर्णायक कदम न उठाए जाएं, तो वह नाग की तरह फैलकर पूरे समाज को जकड़ लेता है।
नेतन्याहू के कार्यकाल में कई बार देखा गया है कि इज़रायल ने प्रिवेंटिव स्ट्राइक (रोकथाम के लिए हमला) की नीति अपनाई — चाहे वह हमास की सुरंगों को ध्वस्त करना हो या आतंकवादियों के रॉकेट लॉन्चिंग ठिकानों पर हमले करना।
अंतरराष्ट्रीय मंच पर मुखर
नेतन्याहू केवल युद्धभूमि पर ही नहीं, कूटनीतिक मोर्चे पर भी आतंक के खिलाफ मुखर रहते हैं। संयुक्त राष्ट्र, अमेरिका और यूरोपीय संघ के मंचों पर वे बार-बार इस्लामी आतंकवाद, विशेष रूप से हमास, हिजबुल्लाह और ईरान समर्थित गुटों के खतरों को उजागर करते रहे हैं।
वे मानते हैं कि “जब तक दुनिया आतंकवाद के खिलाफ एकजुट नहीं होगी, तब तक शांति एक मृगतृष्णा बनी रहेगी।”
विरोधियों की आलोचना और नेतन्याहू की स्पष्टता
हालांकि नेतन्याहू को लेकर दुनिया दो हिस्सों में बंटी हुई है। एक ओर उन्हें “मिडिल ईस्ट का लौह पुरुष” कहा जाता है, तो दूसरी ओर उन्हें युद्धप्रिय, सख्त और समझौता न करने वाला नेता करार दिया जाता है। लेकिन नेतन्याहू की सोच एकदम स्पष्ट है — “जो शांति चाहता है, उसे पहले आतंक का अंत करना होगा।”
गाज़ा युद्ध: आंकड़ों में एक झलक
- मई 2025 तक, इज़रायल की सेना ने हमास के 400 से अधिक ठिकानों को नष्ट किया है।
- हमास द्वारा इज़रायल पर हजारों रॉकेट दागे गए, जिनमें से अधिकांश को आयरन डोम ने निष्क्रिय किया।
- सैकड़ों आतंकी सुरंगें और हथियार डिपो ध्वस्त किए जा चुके हैं।
- इज़रायल के दर्जनों सैनिक बलिदान दे चुके हैं, लेकिन नेतन्याहू के अनुसार, यह लड़ाई “इज़रायल के अस्तित्व और सम्मान” की है।
नेतन्याहू का यह रुख केवल इज़रायल के लिए नहीं, बल्कि पूरी दुनिया के लिए चेतावनी और संदेश है। जब लोकतांत्रिक देश आतंक के सामने झुकते हैं, तो आतंक और बढ़ता है। लेकिन जब कोई देश, कोई नेता — अंतरराष्ट्रीय दबाव को दरकिनार कर, राष्ट्रहित में निर्णायक कदम उठाता है, तब वह एक नया मानदंड स्थापित करता है।
आतंक के अंत तक युद्ध जारी रहेगा
नेतन्याहू का स्पष्ट संदेश है — “यह युद्ध तब तक चलेगा, जब तक हमास की अंतिम ईंट भी गिर नहीं जाती।” इज़रायल के इस लौह पुरुष की नीति यही रही है — आतंक से कोई संवाद नहीं, केवल जवाब।
आज जब विश्व आतंकवाद के नए-नए रूपों से जूझ रहा है, तब नेतन्याहू की निर्णायक और अडिग नीति एक उदाहरण बन सकती है। इज़रायल के नागरिक जान रहे हैं कि उनका नेतृत्व उन्हें अधर में नहीं छोड़ेगा।
और शायद, यही एक सच्चे नेता की असली पहचान है।
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