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समग्र समाचार सेवा
नई दिल्ली,19 मई । सुप्रीम कोर्ट ने एक अहम मामले की सुनवाई के दौरान शरणार्थियों को लेकर बेहद तीखी टिप्पणी करते हुए साफ कहा है,
“भारत कोई धर्मशाला नहीं है, जो दुनियाभर से आए शरणार्थियों को हमेशा के लिए शरण देता रहे।”
इस बयान ने न सिर्फ सियासी गलियारों में हलचल मचा दी है, बल्कि देशभर में सुरक्षा, नागरिकता और राष्ट्रीय पहचान को लेकर एक बार फिर बहस छेड़ दी है।
मामला कुछ विदेशी नागरिकों को लेकर था, जिनके देश से निर्वासन पर रोक लगाने की याचिका सुप्रीम कोर्ट में दायर की गई थी। याचिकाकर्ता ने मानवाधिकारों का हवाला देते हुए इन नागरिकों को भारत में रहने देने की मांग की। लेकिन शीर्ष अदालत ने इस पर कड़ा रुख अपनाते हुए केंद्र सरकार से पूछा,
“कब तक हम देश की सीमाओं को खोलकर बैठे रहेंगे?”
“क्या हम एक असहाय राष्ट्र हैं?”
सुनवाई के दौरान अदालत ने सख्त लहजे में कहा कि भारत की जनसंख्या, संसाधन और सुरक्षा चुनौतियां पहले से ही चरम पर हैं। ऐसे में हर किसी को शरण देना न तो व्यावहारिक है और न ही न्यायसंगत। अदालत ने सवाल उठाया,
“क्या कोई भी व्यक्ति किसी भी देश से आए, और हम उसे सिर पर बैठा लें?”
सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार को यह भी संकेत दिया कि राष्ट्रीय सुरक्षा और जनसंख्या संतुलन को ध्यान में रखते हुए नीतियां बनानी होंगी। अदालत ने कहा कि मानवीय आधार पर मदद जरूरी है, लेकिन देश की संप्रभुता उससे ऊपर है।
अदालत की टिप्पणी के बाद राजनीतिक गलियारों में भूचाल आ गया है।
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कुछ दलों ने इसे “राष्ट्रहित में जरूरी कदम” बताया।
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तो वहीं कुछ विपक्षी नेताओं ने “अमानवीय रवैया” कहकर आलोचना की।
राजनीतिक विश्लेषक डॉ. राघव वर्मा का कहना है,
“सुप्रीम कोर्ट का यह बयान न सिर्फ कानूनी दायरे में अहम है, बल्कि यह देश की मौजूदा जनसांख्यिकीय स्थिति पर गहरी चिंता भी दर्शाता है। अब समय आ गया है कि भारत अपनी शरणार्थी नीति को स्पष्ट करे।”
सुप्रीम कोर्ट की यह टिप्पणी सिर्फ एक केस तक सीमित नहीं रहने वाली। यह देश की आप्रवासन नीति, नागरिकता कानून (CAA), NRC और विदेशी नागरिकों की उपस्थिति पर व्यापक असर डाल सकती है। सरकार पर अब दबाव बढ़ सकता है कि वह शरणार्थियों को लेकर कड़ा और स्पष्ट रुख अपनाए।
सुप्रीम कोर्ट का सख्त संदेश अब सिर्फ अदालत की टिप्पणी नहीं, बल्कि एक चेतावनी है — “भारत सहिष्णु है, लेकिन असहाय नहीं!”
और यह वक्त है, जब देश को सहयोग और शरण देने की भावना के साथ-साथ अपने हितों और सीमाओं की रक्षा करने वाली नीति भी बनानी होगी।
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