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पूनम शर्मा
इस सप्ताह भारत ने वैश्विक मंच पर दो अहम देशों—तुर्की और चीन—को लेकर जो स्पष्ट और कड़े बयान दिए हैं, वे केवल कूटनीतिक औपचारिकताएँ नहीं, बल्कि भारत की बदलती हुई भू-राजनीतिक सोच और मुखर विदेश नीति का संकेत हैं। विदेश मंत्रालय (MEA) के प्रवक्ता रंधीर जायसवाल ने 22 मई को एक प्रेस वार्ता में जो बातें कहीं, वे आने वाले समय में भारत की रणनीतिक दिशा तय कर सकती हैं।
तुर्की को भारत का सीधा संदेश: पाकिस्तान को कहो, आतंकवाद बंद करे
MEA प्रवक्ता रंधीर जायसवाल ने साफ शब्दों में कहा:
“हम उम्मीद करते हैं कि तुर्की, पाकिस्तान से सीमा पार आतंकवाद का समर्थन समाप्त करने और दशकों से पनपते आतंकी नेटवर्क के खिलाफ ठोस और विश्वसनीय कदम उठाने की अपील करेगा।”
यह बयान ऐसे समय में आया है जब भारत और तुर्की के रिश्तों में पहले से ही तनाव है। तुर्की न केवल कश्मीर मुद्दे पर पाकिस्तान का खुला समर्थन करता रहा है, बल्कि उसने पाकिस्तान को हथियारों और ड्रोन की आपूर्ति भी की है, जो भारत विरोधी गतिविधियों में इस्तेमाल हुए हैं।
इस बयान के साथ ही भारत सरकार ने तुर्की की कंपनी Çelebi Aviation Pvt Ltd की सुरक्षा मंजूरी भी रद्द कर दी है, जो देश के नौ हवाई अड्डों पर ग्राउंड हैंडलिंग सेवाएं देती थी। हालांकि यह निर्णय नागरिक विमानन सुरक्षा ब्यूरो द्वारा लिया गया, लेकिन इसके पीछे सुरक्षा और कूटनीतिक चिंताएं स्पष्ट हैं।
यह भारत की ओर से तुर्की को एक कड़ा संदेश है—आतंकवाद को किसी भी रूप में समर्थन करने वालों को भारत बर्दाश्त नहीं करेगा, चाहे वे दोस्त हो या साझेदार।
चीन को याद दिलाया: विश्वास और सम्मान से ही चलेंगे रिश्ते
इसी प्रेस कॉन्फ्रेंस में जायसवाल ने यह भी बताया कि 10 मई को भारत के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार (NSA) अजीत डोभाल और चीन के विदेश मंत्री वांग यी के बीच एक अहम बातचीत हुई थी। इसमें डोभाल ने चीन को स्पष्ट रूप से कहा कि भारत किसी भी युद्ध का इच्छुक नहीं है, लेकिन अपने नागरिकों और संप्रभुता की रक्षा के लिए कड़े कदम उठाने से पीछे नहीं हटेगा।
MEA प्रवक्ता ने कहा:
“भारत-चीन संबंधों की नींव पारस्परिक विश्वास, सम्मान और संवेदनशीलता पर टिकी होनी चाहिए।”
डोभाल ने वांग को यह भी बताया कि पाहलगाम आतंकी हमले के बाद भारत को कार्रवाई करनी पड़ी, क्योंकि पाकिस्तान से आतंकवाद की लगातार आपूर्ति हो रही है। यह बयान चीनी न्यूज एजेंसी Xinhua ने भी रिपोर्ट किया।
इस बातचीत के जरिए भारत ने चीन को यह संकेत दिया कि वह अब सुरक्षा मुद्दों को अलग-अलग देशों के साथ अलग नजरिए से नहीं देखेगा, बल्कि अगर कोई भी देश—चाहे वह प्रत्यक्ष रूप से शामिल हो या अप्रत्यक्ष रूप से—आतंकवाद को शह देता है, तो भारत उसे खुलकर जवाब देगा।
भू-राजनीति पर इन बयानों का व्यापक असर
ये बयान केवल दो देशों तक सीमित नहीं हैं, बल्कि इसका असर वैश्विक स्तर पर भारत की स्थिति को परिभाषित करता है।
1. सुरक्षा आधारित वैश्विक भूमिका
भारत अब सिर्फ कूटनीतिक भाषा में नहीं, बल्कि सुरक्षा के नजरिए से सीधा और प्रभावी संवाद कर रहा है। आतंकवाद को लेकर वह स्पष्ट रूप से दोषियों को नामजद कर रहा है—यह पहले की तुलना में एक बड़ा बदलाव है।
2. ग्लोबल साउथ को चेतावनी
तुर्की जैसे OIC देशों को भी यह संदेश मिला है कि विचारधारा की समानता, भारत की राष्ट्रीय सुरक्षा से ऊपर नहीं है। कश्मीर मुद्दे पर समर्थन की कीमत अब राजनीतिक और आर्थिक रूप से चुकानी पड़ेगी।
3. पश्चिमी देशों के साथ तालमेल
भारत का यह रवैया अमेरिका और यूरोपीय देशों की आतंकवाद विरोधी नीति के साथ मेल खाता है। इससे भारत की वैश्विक छवि एक मजबूत, निर्णायक शक्ति के रूप में उभर रही है
4. चीन-पाकिस्तान गठजोड़ पर दबाव
चीन को सीधे तौर पर आतंकवाद से जुड़े मुद्दों पर जवाबदेह ठहराना पाकिस्तान के लिए भी एक चेतावनी है। इससे पाकिस्तान पर दबाव बढ़ेगा कि वह अपनी नीति बदले, वरना उसे दो फ्रंट पर अंतरराष्ट्रीय आलोचना झेलनी पड़ेगी।
मुखर भारत, नई विदेश नीति का आगाज़
भारत अब केवल घटनाओं की प्रतिक्रिया देने वाला देश नहीं रह गया है—वह रणनीति तय कर रहा है, दिशा निर्देश दे रहा है और वैश्विक मुद्दों पर नेतृत्व करता दिख रहा है। चाहे वह तुर्की को चेतावनी देना हो या चीन के सामने आतंकवाद पर अपनी स्थिति स्पष्ट करना—भारत अब चुप नहीं रहेगा।
यह विदेश नीति में एक नए युग की शुरुआत है—जहाँ भारत न केवल खुद के लिए, बल्कि वैश्विक शांति और सुरक्षा के लिए भी मजबूती से अपनी बात रख रहा है।
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