बिहार चुनाव में ‘धर्म’ बनाम ‘अधर्म’ की लड़ाई: गिरिराज सिंह ने बताया राम-रावण, कौरव-पांडव जैसा चुनावी संग्राम

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समग्र समाचार सेवा
पटना, 13 जून: बिहार की राजनीति में 2025 के विधानसभा चुनाव से पहले ही गरमाहट शुरू हो गई है। केंद्रीय मंत्री और भाजपा के फायरब्रांड नेता गिरिराज सिंह ने आगामी चुनावी मुकाबले को ‘धर्म’ और ‘अधर्म’ के बीच की लड़ाई करार दिया है। उन्होंने इस चुनाव को पौराणिक संदर्भ देते हुए राम-रावण और कौरव-पांडव के युद्ध जैसा बताया, जिससे सियासी हलकों में नई बहस छिड़ गई है।

गिरिराज सिंह का ‘धर्मयुद्ध’ बयान

गिरिराज सिंह अपने बयानों के लिए जाने जाते हैं, और इस बार उन्होंने बिहार चुनाव को लेकर बेहद तीखा हमला बोला है। उन्होंने कहा कि 2025 का विधानसभा चुनाव साधारण चुनाव नहीं होगा, बल्कि यह ‘धर्म’ और ‘अधर्म’ के बीच का संघर्ष होगा। उनका इशारा स्पष्ट रूप से भाजपा और उसके सहयोगी दलों को ‘धर्म’ के पक्ष में और विपक्षी महागठबंधन को ‘अधर्म’ के प्रतीक के रूप में पेश करने की ओर था।

यह बयान ऐसे समय में आया है जब बिहार में राजनीतिक समीकरण तेजी से बदल रहे हैं। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के एनडीए में वापसी और महागठबंधन के बीच सीटों के बंटवारे को लेकर चल रही खींचतान के बीच गिरिराज सिंह का यह बयान भाजपा के चुनावी एजेंडे को साफ करता है।

चुनावी रणभूमि में पौराणिक गाथाएं

गिरिराज सिंह ने अपने बयान में राम-रावण और कौरव-पांडव के युद्ध का जिक्र किया। ये पौराणिक संदर्भ भारतीय राजनीति में अक्सर भावनात्मक जुड़ाव और मतदाताओं को ध्रुवीकृत करने के लिए इस्तेमाल किए जाते हैं। राम को धर्म और न्याय का प्रतीक माना जाता है, जबकि रावण को अधर्म का। इसी तरह, पांडवों को धर्मपरायण और कौरवों को अधर्मी माना जाता है। इस तुलना के माध्यम से गिरिराज सिंह बिहार के मतदाताओं के सामने एक नैतिक और धार्मिक विकल्प प्रस्तुत करना चाहते हैं।

यह दर्शाता है कि भाजपा बिहार चुनाव को केवल विकास या शासन के मुद्दों तक सीमित नहीं रखना चाहती, बल्कि उसे एक व्यापक वैचारिक लड़ाई के रूप में पेश करना चाहती है।

सियासी मायने और आगामी रणनीति

गिरिराज सिंह का यह बयान भाजपा की आगामी चुनावी रणनीति का एक संकेत हो सकता है। पार्टी संभवतः हिंदू वोटों को एकजुट करने और धार्मिक पहचान के आधार पर मतदाताओं को गोलबंद करने का प्रयास करेगी। यह बयान महागठबंधन के लिए भी चुनौती पेश करेगा कि वह किस तरह इस ‘धर्म बनाम अधर्म’ के नैरेटिव का मुकाबला करता है।

बिहार में जातीय समीकरण हमेशा से चुनाव में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते रहे हैं, लेकिन भाजपा अब धार्मिक ध्रुवीकरण को भी एक प्रमुख हथियार के रूप में इस्तेमाल करने की कोशिश कर रही है। यह देखना दिलचस्प होगा कि आगामी दिनों में अन्य राजनीतिक दल इस बयान पर कैसी प्रतिक्रिया देते हैं और बिहार का चुनावी संग्राम किस दिशा में आगे बढ़ता है।

कुल मिलाकर, गिरिराज सिंह के इस बयान ने बिहार के राजनीतिक अखाड़े में एक नई और तीव्र बहस को जन्म दे दिया है, जिससे 2025 का विधानसभा चुनाव और भी दिलचस्प होने की उम्मीद है।

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