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पूनम शर्मा
संयुक्त राष्ट्र में ग़ज़ा युद्धविराम प्रस्ताव पर भारत द्वारा मतदान से दूरी बनाने को लेकर कांग्रेस ने जिस तरह की तीखी प्रतिक्रिया दी है, वह न केवल हैरान करने वाली है बल्कि यह स्पष्ट रूप से आतंकवाद के समर्थन में खड़े होने का संकेत देती है। कांग्रेस ने सरकार पर नैतिक कायरता का आरोप लगाते हुए यह दिखा दिया कि वह फिलिस्तीन के नाम पर एक आतंकवादी संगठन हमास के एजेंडे को बढ़ावा दे रही है।
आज जब पूरी दुनिया यह देख रही है कि इज़रायल पर चारों ओर से हमले हो रहे हैं – ईरान, सीरिया, लेबनान, गाज़ा और यहां तक कि यमन तक से – तब भारत सरकार ने एक संतुलित, कूटनीतिक और सशक्त रुख अपनाया है। लेकिन कांग्रेस, अपने वोटबैंक और तुष्टिकरण की राजनीति के चलते, खुलेआम हमास और उसके पीछे खड़े ईरान, पाकिस्तान जैसे देशों के सुर में सुर मिलाकर भारत की अंतरराष्ट्रीय छवि को धूमिल करने में लगी है।
क्या हमास का समर्थन करना मानवता का पक्ष है?
ग़ज़ा में जो हो रहा है, वह दो पक्षों की लड़ाई नहीं है – यह एक लोकतांत्रिक देश इज़रायल और एक आतंकी संगठन हमास के बीच युद्ध है। हमास ने 7 अक्टूबर को जो नरसंहार किया, उसमें निर्दोष यहूदी महिलाओं, बच्चों और नागरिकों को मार डाला गया, अपहरण किया गया और उनके शवों के साथ अमानवीय व्यवहार किया गया। क्या कांग्रेस इन घटनाओं को भूल चुकी है?
जब प्रियंका गांधी यह कहती हैं कि भारत ने ग़ज़ा में युद्धविराम के पक्ष में वोट नहीं देकर नैतिक कायरता दिखाई, तो क्या वह यह मान रही हैं कि आतंकवादियों को रोकना अनैतिक है? क्या वह यह कहना चाहती हैं कि भारत को हमास जैसे संगठनों को खुली छूट देनी चाहिए कि वे इज़रायल पर हमला करें, और जब जवाबी कार्रवाई हो, तो उसी को युद्ध बताया जाए?
कांग्रेस की ऐतिहासिक दोहरी नीति
कांग्रेस को फिलिस्तीन के प्रति अपनी ‘ऐतिहासिक नीतियों’ की बहुत चिंता है, लेकिन यही पार्टी वही है जिसने भारत को विभाजन के कगार पर लाकर खड़ा कर दिया था। जिन्ना के साथ समझौता करने वाले भी कांग्रेस के नेता थे, जिन्होंने भारत को इस्लामिक पाकिस्तान बनने देने की जमीन तैयार की। यही नहीं, कांग्रेस की तुष्टिकरण नीति के कारण कश्मीर आज तक अशांत है, और पाकिस्तान जैसे आतंक के सरपरस्त देश को उसने हमेशा ‘पड़ोसी’ कहकर माफ किया।
आज भी कांग्रेस चीन के खिलाफ चुप रहती है, पाकिस्तान पर कुछ नहीं बोलती, लेकिन भारत की सरकार की आलोचना में कोई कसर नहीं छोड़ती। यह वही पार्टी है जिसने हिंदू आतंकवाद का झूठ गढ़कर दुनिया भर में भारत को शर्मिंदा किया।
इज़रायल और भारत – समान पीड़ा, समान संघर्ष
इज़रायल भी उसी तरह आतंकवाद से जूझ रहा है जैसे भारत दशकों से करता आ रहा है – कश्मीर से लेकर मुंबई तक, संसद हमले से लेकर पुलवामा तक। ऐसे में भारत का इज़रायल के प्रति संतुलित और सशक्त समर्थन केवल कूटनीतिक निर्णय नहीं है, बल्कि यह आतंकवाद के खिलाफ हमारी नैतिक जिम्मेदारी भी है।
भारत ने हमेशा शांति का समर्थन किया है, लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि हम आतंकवादियों के सामने घुटने टेक दें। युद्धविराम का समर्थन तब किया जाता है जब दोनों पक्ष समान हों, लेकिन यहां एक तरफ लोकतंत्र है, और दूसरी तरफ आतंक का अड्डा – हमास।
कांग्रेस किसके साथ खड़ी है?
जब कांग्रेस ग़ज़ा में युद्धविराम की बात करती है, तो वह दरअसल हमास को पुनः संगठित होने और फिर से इज़रायल पर हमला करने का मौका देना चाहती है। जब कांग्रेस ईरान, तुर्की और पाकिस्तान जैसे देशों की लाइन पर चलती है, तो वह भारत को अंतरराष्ट्रीय मंच पर अलग-थलग करने का प्रयास करती है।
कांग्रेस की यह रणनीति भारत की सुरक्षा के लिए खतरा है। आज जो लोग इज़रायल के खिलाफ खड़े हैं, वे वही हैं जो भारत में CAA, NRC, राम मंदिर, धारा 370 जैसे निर्णयों का विरोध करते हैं, और हर कदम पर देश को विभाजित करने की कोशिश करते
भारत को चाहिए सशक्त नेतृत्व, न कि आतंक के समर्थक
कांग्रेस की राजनीति अब साफ तौर पर देशहित से दूर, केवल वोटबैंक और अंतरराष्ट्रीय इस्लामिक लॉबी की सेवा में समर्पित लगती है। इस्लामिक देशों और आतंक के संरक्षकों के साथ खड़े होकर कांग्रेस यह बता रही है कि उसे न भारत की संप्रभुता की परवाह है, न नागरिकों की सुरक्षा की।
आज भारत को चाहिए एक ऐसा नेतृत्व जो आतंकवाद से बिना डरे लड़े, और अंतरराष्ट्रीय मंच पर मजबूत रुख अपनाए – ठीक वैसा ही जैसा आज की सरकार कर रही है। कांग्रेस की आलोचना में कोई तथ्य नहीं, केवल सियासी एजेंडा है।
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