माँ कामाख्या मंदिर को नर बलि से जोड़ने की घटिया साजिश ?: CNN News18 पर PPFA का कड़ा प्रहार

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पूनम शर्मा
बीते दिनों CNN News18 ने एक ऐसा विवादित रिपोर्ट प्रसारित किया, जिसने पूरे भारतवर्ष में आक्रोश की लहर पैदा कर दी। इस रिपोर्ट में मेघालय में हुई एक अलग-थलग हत्या की घटना को असम के पवित्र माँ कामाख्या मंदिर से जोड़ने का प्रयास किया गया। यह न केवल तथ्यात्मक रूप से झूठा और भ्रामक था, बल्कि करोड़ों हिंदुओं की आस्था पर एक सुनियोजित प्रहार भी था।

इस रिपोर्ट के खिलाफ देशभर में विरोध की लहर है। देशभक्त पीपुल्स फ्रंट असम (PPFA) ने इसे ‘अपमानजनक, असत्य और सांस्कृतिक रूप से संवेदनहीन’ करार दिया है। लेकिन यह सिर्फ कामाख्या मंदिर की बात नहीं है, यह उस बड़े षड्यंत्र का हिस्सा है, जिसके तहत वर्षों से हिंदू परंपराओं, मंदिरों और आस्थाओं को योजनाबद्ध ढंग से बदनाम किया जा रहा है।

माँ कामाख्या: शक्ति की प्रतीक, आस्था की ऊर्जा
गुवाहाटी के नीलांचल पर्वत पर स्थित माँ कामाख्या मंदिर हिंदू धर्म के सबसे पवित्र शक्ति पीठों में से एक है। यह स्थान तांत्रिक साधना, उर्वरता और सृजन के सिद्धांतों पर आधारित है। यहाँ प्रतिवर्ष आयोजित होने वाला अंबुबाची मेला देवी के ऋतुकाल को उत्सव के रूप में मनाता है—जो सृजन और जीवन की शक्ति का प्रतीक है।

इसी मंदिर को सोनम हत्याकांड में मानव बलि जैसे जघन्य अपराध से जोड़ देना सिर्फ पत्रकारिता की गिरावट नहीं, बल्कि भारतीय संस्कृति और आस्था की खुली अवमानना है।

PPFA का कड़ा विरोध: मीडिया की जवाबदेही जरूरी
PPFA ने अपने आधिकारिक बयान में CNN News18 की इस रिपोर्ट को ‘हिंदू संस्कृति को बदनाम करने की सोची-समझी साजिश’ बताया है। उनका कहना है कि इस रिपोर्ट में कोई तथ्यात्मक पुष्टि नहीं की गई और सिर्फ सनसनी फैलाने के लिए एक पवित्र मंदिर को हिंसा से जोड़ दिया गया।

यह रिपोर्ट केवल असम की सांस्कृतिक अस्मिता पर हमला नहीं है, बल्कि पूरे भारत की आस्था और धर्मनिष्ठा के विरुद्ध एक दुष्प्रचार है।

बार-बार निशाने पर क्यों हिंदू मंदिर?
यह पहली बार नहीं है जब किसी हिंदू मंदिर या परंपरा को नकारात्मक रूप में प्रस्तुत किया गया हो। सबरीमला मंदिर को पितृसत्तात्मक कहकर बदनाम किया गया, दीवाली को केवल प्रदूषण से जोड़ कर दिखाया गया, और संतों-साधुओं को ‘कट्टरपंथी’ कहा गया, जबकि अन्य धर्मों के पादरियों को ‘शांति का दूत’ बताया गया।

हर बार जब किसी दूरदराज इलाके में कोई रहस्यमय अपराध होता है, मीडिया की उंगलियाँ किसी न किसी हिंदू परंपरा की ओर क्यों उठ जाती हैं? क्या यह पत्रकारिता का दायित्व है या किसी विशेष एजेंडे की सेवा?

मीडिया की भूमिका: जिम्मेदारी बनाम सनसनी
पत्रकारिता समाज का दर्पण होती है, लेकिन जब यह दर्पण झूठ और पूर्वाग्रह से धुंधला हो जाए, तो वह समाज को बांटने का उपकरण बन जाता है। CNN News18 जैसे प्रतिष्ठित मीडिया हाउस से यह अपेक्षा नहीं की जाती कि वे बिना तथ्यों की पुष्टि किए सिर्फ टीआरपी के लिए सनसनी फैलाएं।

अगर यही आरोप किसी चर्च या मस्जिद पर लगे होते, तो क्या मीडिया इतनी लापरवाही से उसे दिखाता? शायद नहीं। लेकिन हिंदू मंदिरों के साथ दोहरा मापदंड आज एक कड़वी सच्चाई बन चुका है।

तांत्रिक परंपराएं: रहस्य नहीं, आध्यात्मिक विज्ञान
हिंदू धर्म की तांत्रिक परंपराएं सदियों पुरानी हैं और आत्मिक ऊर्जा, ब्रह्मांडीय सिद्धांतों और चेतना के विस्तार पर आधारित हैं। लेकिन उन्हें जानबूझकर ‘काला जादू’ या ‘बलि’ जैसी संकीर्ण धारणाओं से जोड़कर दिखाया जाता है, जो न केवल असत्य है बल्कि सांस्कृतिक अपमान भी है।

आस्था पर हमला नहीं, जवाबदेही होनी चाहिए
माँ कामाख्या मंदिर को किसी अपराध से जोड़ना, लाखों लोगों की भावनाओं पर आघात है। यह सिर्फ एक इमारत नहीं, बल्कि संपूर्ण असम और भारत की आध्यात्मिक पहचान है। इसके खिलाफ झूठ फैलाना न केवल आपराधिक लापरवाही है, बल्कि पत्रकारिता की नैतिकता की भी हत्या है।

मीडिया को यह समझना चाहिए कि धार्मिक स्थलों को ‘हेडलाइन मटेरियल’ बनाने की संस्कृति अब नहीं चलेगी। भारत के लोग जागरूक हैं और अब ऐसे प्रोपेगेंडा को बर्दाश्त नहीं करेंगे।

क्षमा  माँगे  CNN News18
CNN News18 को चाहिए कि वह इस रिपोर्ट को तुरंत वापस ले, सार्वजनिक रूप से क्षमा  माँगे और भविष्य में किसी भी धार्मिक संस्था पर रिपोर्टिंग करते समय गंभीरता और जिम्मेदारी का परिचय दे।

हमें यह याद रखना होगा कि भारत की आत्मा उसकी आस्था में बसती है। कामाख्या जैसे मंदिर सिर्फ पूजा का स्थान नहीं, भारत की सांस्कृतिक रीढ़ हैं। इन्हें झूठ और अपमान से नहीं, सम्मान और सच से देखा जाना चाहिए।

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