ऑपरेशन सिंदूर” को सलामी: राष्ट्रवाद की वापसी

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पूनम शर्मा

25 मई 2025 को दिल्ली में आयोजित एनडीए की बैठक ने आगामी बिहार विधानसभा चुनावों को लेकर कई अहम संकेत दिए हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में हुई इस बैठक में बिहार की सियासत को केंद्र में रखते हुए तीन प्रमुख संदेश सामने आए—एकता का प्रदर्शन, जातिगत जनगणना को समर्थन और “ऑपरेशन सिंदूर” को सलामी। ये तीनों संदेश आने वाले चुनाव में भाजपा और उसके सहयोगी दलों की रणनीति को स्पष्ट करते हैं।

1. बिहार में एकजुट एनडीए का शक्ति प्रदर्शन

एनडीए की बैठक में सभी प्रमुख घटक दलों की मौजूदगी यह बताती है कि गठबंधन आने वाले बिहार चुनाव को लेकर पूरी तरह से तैयार है और आंतरिक मतभेदों को पीछे छोड़कर एकजुटता का प्रदर्शन कर रहा है। बैठक में जेडीयू, लोजपा (रामविलास), हम (सेक्युलर), और आरएलएसपी जैसे सहयोगी दल भी शामिल हुए। इससे यह संकेत गया कि भाजपा एक बार फिर से ‘सबको साथ लेकर चलने’ की नीति पर काम कर रही है, खासकर नीतीश कुमार के महागठबंधन से अलग होकर फिर भाजपा के करीब आने के बाद।

राजनीतिक रूप से यह बैठक विपक्षी महागठबंधन के लिए भी एक चुनौती का संकेत है। राजद और कांग्रेस जैसे दल अब अपनी रणनीति पर दोबारा विचार करने के लिए मजबूर हो सकते हैं, क्योंकि एनडीए की संगठित तस्वीर मतदाताओं को एक स्थिर और निर्णायक शासन का विकल्प पेश करती है।

2. जातिगत जनगणना पर समर्थन: सामाजिक समीकरण साधने की कोशिश

एनडीए की बैठक में जातिगत जनगणना को लेकर समर्थन जताना एक अहम राजनीतिक चाल है। बिहार में जातिवाद एक महत्वपूर्ण चुनावी कारक रहा है और इस मुद्दे पर स्पष्ट रुख अपनाकर एनडीए ने पिछड़े वर्गों और अति पिछड़ों को सीधा संदेश देने की कोशिश की है।

भाजपा लंबे समय तक जातिगत जनगणना से दूरी बनाकर चल रही थी, लेकिन अब उसने इसके समर्थन में स्वर उठाया है, जो संकेत करता है कि पार्टी अपनी सामाजिक समीकरणों की रणनीति में बदलाव ला रही है। खासकर ओबीसी और दलित वोट बैंक को अपने पक्ष में करने के लिए यह स्टैंड बेहद जरूरी बन गया है।

यह कदम महागठबंधन की जातीय राजनीति को चुनौती देने की एक चतुर रणनीति भी है, जो अब तक केवल विपक्षी दलों की ताकत मानी जाती थी।

3. “ऑपरेशन सिंदूर” को सलामी: राष्ट्रवाद का तड़का

एनडीए की बैठक में ‘ऑपरेशन सिंदूर’ को लेकर जो श्रद्धांजलि और समर्थन जताया गया, वह पूरी तरह से भावनात्मक और राष्ट्रवादी लहर को जगाने वाला कदम है। यह ऑपरेशन नक्सल प्रभावित इलाकों में सुरक्षाबलों द्वारा किए गए बड़े अभियान को संदर्भित करता है जिसमें कई वांछित नक्सलियों का सफाया हुआ।

इस मुद्दे को उभारना भाजपा की पारंपरिक राष्ट्रवादी राजनीति को फिर से केंद्र में लाने की कोशिश है। इसका मकसद यह है कि सुरक्षा, आतंकवाद और देशभक्ति जैसे मुद्दों को चुनावी विमर्श में शामिल किया जाए, जिससे शहरी और मध्यम वर्ग के वोटरों में उत्साह पैदा हो।

4. बिहार की राजनीतिक जमीन पर असर

बिहार की राजनीति जातीय और भावनात्मक मुद्दों के इर्द-गिर्द घूमती रही है। एनडीए ने जिस चतुराई से जातिगत जनगणना और राष्ट्रवाद दोनों को संतुलित किया है, वह साफ संकेत देता है कि चुनावी रणनीति अब केवल विकास के नारों पर नहीं, बल्कि सामाजिक और भावनात्मक समीकरणों पर आधारित होगी।

महागठबंधन की मुश्किलें इसलिए बढ़ सकती हैं क्योंकि एनडीए ने अब उन्हीं मुद्दों पर दावा करना शुरू कर दिया है जिन्हें अब तक विपक्ष अपनी ताकत मानता रहा है। खासकर नीतीश कुमार की भूमिका अब निर्णायक होगी। यदि वह सक्रिय तौर पर एनडीए का चेहरा बनते हैं, तो पुराने समर्थक वर्ग को वापस लाना भाजपा के लिए आसान हो सकता है।

एनडीए की दिल्ली बैठक ने स्पष्ट कर दिया है कि बिहार में 2025 का चुनाव महज राजनीतिक दलों के बीच नहीं, बल्कि विचारधाराओं, सामाजिक समीकरणों और भावनात्मक मुद्दों के टकराव का चुनाव होगा। भाजपा नेतृत्व अब अपने पारंपरिक राष्ट्रवादी एजेंडे को सामाजिक न्याय के साथ जोड़ने की कोशिश में है, जिससे वह अपने वोट बैंक को और विस्तृत कर सके।

जातिगत जनगणना के समर्थन से ओबीसी वर्ग को, ऑपरेशन सिंदूर से राष्ट्रवादी भावनाओं को, और गठबंधन की एकता से स्थिर शासन की उम्मीद को बल मिलेगा। अब देखना यह है कि विपक्ष इन नए समीकरणों का क्या जवाब देता है। बिहार की राजनीति में गर्मी बढ़ चुकी है—अब केवल परिणामों का इंतजार है।

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