सितंबर में फिर बढ़ी खुदरा महंगाई

नई दिल्ली : ईंधन और बिजली के साथ ही आवास, स्वास्थ्य, शिक्षा और परिवहन एवं संचार सेवाओं के महंगा होने से इस वर्ष सितंबर में उपभोक्ता मूल्य सूचकांक पर आधारित खुदरा महंगाई बढ़कर 3.77 प्रतिशत पर पहुंच गई। जो अगस्त में 3.69 प्रतिशत और सितंबर 2017 में 3.28 फीसदी रही थी।

केंद्रीय सांख्यिकी कार्यालय द्वारा शुक्रवार को जारी आंकड़ों के अनुसार, सितंबर 2018 में खाद्य उपभोक्ता मूल्य सूचकांक की वृद्धि दर 0.51 प्रतिशत रही लेकिन ईंधन एवं बिजली, आवास तथा अन्य वर्गों ने महंगाई दर बढ़ाने में योगदान दिया। अगस्त में खाद्य उपभोक्ता मूल्य सूचकांक 0.29 प्रतिशत बढ़ा था जबकि सितंबर 2017 में इसकी वृद्धि दर 1.25 प्रतिशत रही थी।

सितंबर में शहरों में जहां उपभोक्ता खाद्य खुदरा महंगाई ऋणात्मक 0.22 प्रतिशत दर्ज की गई जबकि ग्रामीण क्षेत्रों में 0.94 फीसदी रही। अगस्त में भी शहरी क्षेत्रों में यह ऋणात्मक 1.21 प्रतिशत रहा था जबकि ग्रामीण क्षेत्रों में 1.14 प्रतिशत रहा था।

एक साल पहले की तुलना में पेट्रोल-डीजल की कीमतों में तेज बढ़ोतरी से इस साल सितंबर में ईंधन तथा बिजली खंड की महंगाई दर 8.47 प्रतिशत रही। आवास खंड में महंगाई दर 7.07 प्रतिशत, स्वास्थय में 5.90 प्रतिशत, परिवहन एवं संचार में 6.42 प्रतिशत और शिक्षा में 6.40 प्रतिशत दर्ज की गई। कपड़े तथा जूते-चप्पल 4.64 प्रतिशत महंगे हुए।

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– दो सूचकांकों के आधार पर तय होती है महंगाई
उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (सीपीआई) है, जो रिटेल महंगाई का इंडेक्स है। रिटेल महंगाई वह दर है, जो जनता को सीधे तौर पर प्रभावित करती है। यह खुदरा कीमतों के आधार पर तय की जाती है।

भारत में खुदरा महंगाई दर में खाद्य पदार्थों की हिस्सेदारी करीब 45 प्रतिशत है। दुनिया भर में ज्यादातर देशों में खुदरा महंगाई के आधार पर ही मौद्रिक नीतियां बनाई जाती हैं।

थोक मूल्य सूचकांक (डब्ल्यूपीआई), जो थोक महंगाई का इंडेक्स है। डब्ल्यूपीआई में शामिल वस्तुएं अलग-अलग वर्गों में बांटी जाती हैं।

थोक बाजार में इन वस्तुओं के समूह की कीमतों में हर बढ़ोतरी का आंकलन थोक मूल्य सूचकांक के जरिए होता है। इसकी गणना प्राथमिक वस्तुओं, ईंधन और अन्य उत्पादों की महंगाई में बदलाव के आधार पर की जाती है।

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