सकारात्मक विचारों में अतुल्य-ऊर्जा, शुभता और अनन्त-सामर्थ्य समाहित है: स्वामी अवधेशानन्दं जी महाराज

पूज्य सद्गुरुदेव आशिषवचनम्
           ।। श्री: कृपा ।।
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 पूज्य “सद्गुरुदेव” जी ने कहा – सकारात्मक विचारों में अतुल्य-ऊर्जा, शुभता और अनन्त-सामर्थ्य समाहित है। जिस प्रकार सूर्य के उदय होते ही अंधकार का निर्मूलन हो जाता है, उसी प्रकार सकारात्मक विचारों से हमारे जीवन की हताशा, नैराश्य, दैन्य और पलायन का स्वतः अवसान हो जाता है ..! “सकारात्मक विचार हो तो सत्संग स्वत: होगा” कथा, प्रवचन व सत्संग से मन मस्तिष्क में सकारात्मक विचारों का समावेश होता है। हमें ऐसे शुभ आयोजनों में भाग लेकर आध्यात्मिक ज्ञान अर्जन करना चाहिए। वैदिक अनुष्ठान हमें और हमारी संस्कृति को आगे बढ़ाते हैं। ऐसे आयोजन प्रेम, सहयोग व सदभाव को बढ़ाते हैं। वहीं मनुष्य जीवन को सार्थक मनाते हैं। सत्संग में रूचि रखने वाले भक्त सद्गुणों से अपने जीवन का श्रृंगार करते हैं। संतों के गुण सहजतः ही जीवन को प्रभावित करते रहते हैं और एक दिन ऐसा आ जाता है कि संतो का संग अभिमानी को भी ज्ञानी बना देता है। संतों के वचन सुनना, सुनकर ह्रदय में स्थान देना और फिर उसे कर्म में ढ़ालना ही जीवन में सुगंधि भरना है। शुभ कर्मों की सुगंधि दूर-दूर तक फैल जाती है और यही कर्म जीवन की शोभा बढ़ाते हैं। इस तरह नित्य सत्संग व संतों की संगति हमारे जीवन का रूपांतरण कर देती है। इसलिए संतों का संग करके विशालता की और कदम बढ़ाना ही सत्संग का प्रभाव है …।
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 पूज्य आचार्यश्री जी ने कहा – जीवन एक हमेशा चलते रहने वाले प्रवाह की तरह है, ढ़ेर सारी खुशियों के बाद, दुःख भी उतना ही आता है और यही क्रम चलता रहता है। यह एक कभी ना समाप्त होने वाला चक्र है। जीवन की परिस्थितियाँ तो पिछले कर्मों  पर आधारित हैं, इसलिए किसी नकारात्मक (नेगेटिव) परिस्थिति से बच पाना संभव नहीं है, लेकिन स्वयं को इस परिस्थिति से भावनात्मक एवं आध्यात्मिक सहारे की मदद से बचाकर, इस नेगेटिविटी को पॉज़िटिविटी में बदला जा सकता है। क्या आपको इस भयावह उतार-चढ़ाव वाले चक्र से निकलने का एक सच्चा रास्ता चाहिए? सकारात्मक दृष्टिकोण, यही इस की चाबी है! सिर्फ सकारात्मक सोच ही हमें इस संसार में खुशियाँ दे सकती है, जबकि नकारात्मक सोच सिर्फ दुःख ही नहीं देती, बल्कि जीवन को पूरी तरह बर्बाद कर देती है। हमारी हर सोच आनेवाली परिस्थिति के बीज बोती है, तो क्यों ना हम सकारात्मक सोच रखें, वैसे ही मीठे फल पाने के लिए? किसी संकट के घड़ी में यदि हम सकारत्मक रहें, तो वह दुःखदाई परिस्थिति को भी सुखदाई बना देती है। जब हमारा मन पॉज़िटिव होगा, तब हमें दिव्यता का अनुभव होगा, क्योंकि सकारात्मकता वह निर्मलता की निशानी है और मन की निर्मलता, वही परम सुख है। भगवान महावीर ने कहा है कि जो सकारात्मक रहेगा वही मोक्ष की ओर आगे बढ़ सकता है, इसलिए नेगेटिविटी से बाहर निकलना अत्यंत आवश्यक है …।
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 पूज्य “आचार्यश्री” जी ने कहा – सत्संग से जीवन में रुपांतरण होता है। सत्संग करने से जीवन में प्रतिदिन निखार आता चला जाता है। सत्संग वह दर्पण है जिसके सामने आते ही अपने मन, वचन, कर्म की त्रुटियाँ नजर आने लगती है और आभास होने लगता है कि हमने काम, क्रोध, लोभ, मोह, ईर्ष्या द्वेष, निंदा के काले धब्बो से अपने मन को मैला किया हुआ है। संतो का संग, उनके अनमोल वचन और सद्गुरु की कृपा से मन को साफ करना है। बसंत तभी जीवन में आता है, जब जीवन में संत आते हैं। बसंत के आने पर प्रकृति मुस्कुराती है और संत के आने से संस्कृति। संतों की संगति ही जीवन में वह बहार लाती है जो कभी पतझड़ में नहीं बदलती, जिनके जीवन की बागडोर स्वयं सदगुरु ने संभाली है, उनके कार्य स्वतः ही होते चले जाते हैं, वह चिंतामुक्त जीवन जीते हैं। सत्संग ही हृदय में से ऊँच-नीच, अमीर-गरीब, जाती-मजहब की दीवारें गिराता है, प्रभु की रचना से प्रेम करना सिखाता है, सभी को अपने परमपिता की संतान मानकर समानता, विशालता एवं विश्व-बंधुत्व की भावना जागृत करता है। सत्संग से ही चिंतन पवित्र होता है जिससे आचरण और व्यवहार का भी शुद्धिकरण हो जाता है और सदगुरु-चरण में अनुराग दृढ़ होने लगता है। अतः सत्संग से ही सुमति आती है और कुमति का नाश होता है, सत्संग मन को शुद्ध करके हमारे विचारधारा को सकारात्मक बनाता है और धीरे-धीरे मानसिक कष्टों से मुक्ति मिल जाता है …।

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