परम वो है जो मौके पर संभाल ले,और पामर वो है जो मौके पर सुना दे!- मोरारी बापू 

इंदौर , जून । चित्रकूट में आयोजित कथा के आठवें दिन की कथा पर कल पांच विषम व्रत के बारे में बापू ने बताया था थोड़ा ज्यादा बताते हुए कहा कि हमारी दृष्टि से चांद और सूरज हम हमारी खिड़की से देखें तो थाली जैसा दिखता है। लेकिन चांद सूरज इतना ही है क्या? वैसे हमारी दृष्टि से परम तत्व का दर्शन करें तो ऐसे ही लगता हैं।। राम सत्यव्रत है।। लेकिन राम इतना ही नहीं,राम तो अखिल है,राम का महिमा बड़ा है।। कितना बड़ा? दरिया जितना? नहीं बहुत बड़ा।। और ईश्वर संकेत में इशारे में हुनर सिखा देते हैं।। बापू ने कहा कि मैं पल-पल दे रहा हूं मेरा आपको, इसलिए एकाग्र होकर मुझसे जुड़े,और बीच में बापू ने एक श्रोता को कहा कि फोन बंद करो और फिर दूसरी ही पल बापू को पीड़ा हुई और कहा कि मुझे अच्छा नहीं लगता कहने का,और कहने के बाद और पीड़ा होती है तो मन पर मत लेना!जीवन में मार्गदर्शक की खास जरूरत है ।।
पांच मार्गदर्शक है। एक-ऐसे महापुरुष को मार्गदर्शक चुनो जो भूल कूबूल करें।। भरत जैसे महापुरुष ने मार्गदर्शन गुह से लिया।। भगवान राम ने किन-किन से मार्गदर्शन लिया? जो शुरू में सुमंत को मार्गदर्शन देते हैं और बाद में केवट से पूछते हैं।। भरद्वाज के आश्रम में भरद्वाज से और फिर ५० शिष्यों में से ४ शिष्य जो वेदों का प्रतीक माने जाते हैं उनसे सीखा।। शबरी से मार्गदर्शन लिया और विभीषण से भी मार्गदर्शन लिया।। दूसरा-अनुभवी का मार्गदर्शन लेना।। कोल किरात राम से कहते हैं यह बीहड़ जंगल हमने कोना-कोना देखा है।।
 जाने बिना ना होई प्रतीति बिनु परतीति थी न होइहि प्रीति।।
 तीसरा सांस की तरह जो व्रत धारी है उनसे मार्गदर्शन लेना।। पामर और परम में फर्क क्या है? परम वह है जो मौके पर हमें संभाल लेंगे और पामर वह है जो मौके पर हमें सुना देंगे! राम सत्यव्रत है कृष्ण के सत्य और राम के सत्य में छोटा सा अंतर है।। कृष्ण का सत्य ईश्वर का सत्य है, और राम जीव का भी सत्य और ईश्वर का भी सत्य है।।शील वह है जो बड़ों के चरणों में विनय रखे और छोटों से करुना रखें।। तो यह वीनय,शील और करुणा का मानो तिरंगा है।।इसलिए कभी-कभी कृष्ण असत्यव्रत वृत्ति दिखते हैं।। भरत जी प्रेमव्रत और अयाचक  व्रत है,शत्रुघ्न मौन व्रत है और लक्ष्मणजी ब्रह्मचर्य व्रत है।।भरत की यात्रा में ५ विघ्न आये,हनुमानजी की यात्रा में ६ विघ्न आये और भगवान राम की यात्रा में सात विघ्न आये।।भरत की यात्रा अवध से चित्रकूट यह साधना का मार्ग है तो विघ्न आएंगे ही।।
अयोध्या से निकले सब रथ में बैठे लेकिन  भरत ने निर्णय किया कि ठाकुर बिना पदत्राण निकले तो मैं भी पैदल चलुं! और जब वह पैदल चले तो शिष्टाचार के नाते सब पैदल चलने लगे। तब कौशल्या मां ने कहा कि तेरे इस नियम के कारण सब पैदल चल रहे हैं और मां के कहने पर फिर भरत रथ में बैठे। भरत ने सोचा कि लोगों को पता लग गया इसलिए विघ्न आया।। जहां तक हो सके साधना करने वाले साधन को छिपाए वरना बाधा आएगी।। दूसरा विघ्न श्रृंगवेरपुर गुहराज की ओर से उसने कहा कि सब नैया डूबा दो, हम जहां तक जीवित है भरत को पार नहीं होने देंगे।।दूसरा विघ्न हमारी साधना को समझे बिना तत्कालीन अगल-बगल का समाज विरोध करेंगे।। लेकिन साधना पक्ष ठीक है तो गैर समझ करने वाला ही शरणागति से निपट जाएगा।। तीसरा-भरद्वाज ऋषि के आश्रम में रिद्धि-सिद्धि सब समृद्धि लेकर रास्ते में आई। रास्ते की संपत्ति मार्ग बदलने का प्रयास करेगी।।चौथा विघ्न देवताओं की ओर से आया कि राम और भरत की भेंट ना होनी चाहिए,वरना यह हमारे राम को ले जाएंगे। कुछ विघ्न जमीन पर से आए और आसमान से भी विघ्न उतरे हैं।। लेकिन भरत का भजन सही था तो बृहस्पति ने इंद्र आदि देवताओं को डांटते हुए मना किया।। पांचवा विघ्न चित्रकूट पहुंचते ही लक्ष्मण ने देखा और राम को बताया कि यह भरत चतुररंगीणी सेना लेकर आ रहा है और रोष किया।। निज परिवार की व्यक्ति भी विरोध करें और हत्या तक का सोचे तब भजनानंदी को ये ध्यान रखना अब चित्रकूट दूर नहीं।। और तब विरोध करने वाला ही प्रार्थना करेगा।।
 फिर संक्षिप्त में नामकरण,धनुष भंग,सीता विवाह, और परशुराम का आगमन के प्रसंग से बालकांड, और बाद में अयोध्या कांड का अति संक्षिप्त दर्शन कराते हुए अरण्यकांड और किष्किंधा कांड एवं सुंदरकांड की कथा का अति संक्षिप्त प्रसंग का गान करके आज की कथा को विराम दिया गया।।

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