भाषा व्यक्ति को व्यक्ति से, जाति को जाति से राष्ट्र को राष्ट्र से मिलाती है : स्वामी अवधेशानन्दं जी महाराज

पूज्य सद्गुरुदेव आशिषवचनम्
            ।। श्री: कृपा ।।
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 पूज्य “सदगुरुदेव” जी ने कहा – हिन्दी हमारी आत्मसत्ता, निजता व सांस्कृतिक चेतना का वाक-रूपांतरण और भारतीयता की आत्म-अभिव्यक्ति है। हिन्दी से हमारी संस्कृति-संस्कार और मातृवत अनेक संवेदनाएं जुड़ी हुई हैं। अतः राष्ट्रभाषा हिन्दी के उत्कर्ष में ही भारत का उत्कर्ष-उन्नयन समाहित है ..! हिंदी का उद्भव देवभाषा संस्कृत से हुआ है। भाषा संस्कृति की संरक्षक एवं वाहक होती है। भाषा भावों की वाहिका और विचारों का माध्यम होती है। अतएव किसी भी जाति अथवा राष्ट्र की भावोंत्कर्ष और विचारों की समर्थता उसकी भाषा से स्पष्ट होती है।
भाषा व्यक्ति को व्यक्ति से, जाति को जाति से राष्ट्र को राष्ट्र से मिलाती है। इसलिए राष्ट्रभाषा हिंदी से प्रेम करिये और उसके प्रसार और विस्तार में कोई कमी मत छोड़िये, क्योंकि अपनी भाषा से प्रेम करना अपने देश से प्रेम करने जैसा ही है। हिंदी भारत की राष्ट्रभाषा ही नहीं, बल्कि भारतीयों की पहचान भी है। हमें अपनी मातृभाषा हिंदी को कभी नहीं भूलना चाहिए। हिन्दी केवल भाषा नहीं, अपितु सनातन वाक् सत्ता एवं भारतीय अस्मिता की सुषुम्ना है जिसमें भारत की आद्य-संस्कृति सभ्यता और संस्कारों के स्वर समाहित हैं। भाषा की वैविध्यपूर्ण विधा में वैखरी के सभी सारस्वत स्वरूप सम्माननीय हैं ! हिंदी भाषा भारत देश का गौरव है।
भारत की राजभाषा हिंदी, विश्व की एक प्रमुख भाषा है। इस भाषा का इतिहास हजारों साल पुराना माना जाता है। हिन्दी भाषा विश्वस्तर पर सनातन वैदिक संस्कृति की सहज-सरल, सरस-समर्थ एवं दिव्य अभिव्यक्ति का सशक्त माध्यम है। यह भाषा सम्पूर्ण प्राणियों के हृदय को आकर्षित करती है। हमें अपनी मातृभाषा और संस्कृति पर गर्व होना चाहिए। हिन्दी एकमात्र ऐसी भाषा है, जो देश को एकसूत्र में बांधकर रखने का काम करती है। हिंदी भाषा का शब्दकोश बढ़ा ही विशाल है। हिंदी भाषा में अपनी किसी भी एक भावना को व्यक्त करने के लिए अनेक शब्द हैं जो कि अन्य भाषाओं की तुलना में अपने आप में अद्भुत है। किसी भी भाषा को राष्ट्रभाषा बनने के लिए उसमें सर्वव्यापकता, प्रचुर साहित्य रचना, बनावट की दृष्टि से सरलता और वैज्ञानिकता, सब प्रकार के भावों को प्रकट करने की सामर्थ्य आदि गुण होने अनिवार्य होते हैं। और, यह सभी गुण हिंदी भाषा में हैं।
भाषा वह साधन है जिसके माध्यम से प्रत्येक प्राणी अपने विचारों को दूसरों पर अभिव्यक्त करता है। यह ऐसी दैवीय शक्ति है, जो मनुष्य को मानवता प्रदान करती है और उसका सम्मान तथा यश बढ़ाती है। पूज्य “आचार्यश्री” जी ने कहा कि बिना हिंदी के हम अपने विकास की कल्पना नही कर सकते हैं। किसी भी राष्ट्र की पहचान उसकी भाषा और उसकी संस्कृति से होती है और सम्पूर्ण विश्व में हर देश की एक अपनी भाषा और अपनी एक संस्कृति है जिसके छाँव में उस देश के लोग पले-बड़े होते हैं। यदि कोई देश अपनी मूल भाषा को छोड़कर दूसरे देश की भाषा पर आश्रित होता है तो उसे सांस्कृतिक रूप से गुलाम माना जाता है। किसी भी स्वतंत्र राष्ट्र की अपनी एक भाषा होती है जो उसका गौरव होती है। राष्ट्रीय एकता और राष्ट्र के स्थायित्व के लिए राष्ट्रभाषा अनिवार्य रूप से होनी चाहिए जो किसी भी राष्ट्र के लिये महत्वपूर्ण होती है। पूज्य “आचार्यश्री” जी ने कहा – निज भाषा यानी अपनी मूल भाषा से ही उन्नति सम्भव है, क्योंकि हमारी यही मूल भाषा ही सभी उन्नतियों का मूलाधार है और मातृभाषा के ज्ञान के बिना हृदय की पीड़ा का निवारण सम्भव नहीं है। हमें विभिन्न प्रकार की कलाएँ, असीमित शिक्षा तथा अनेक प्रकार का ज्ञान सभी देशों से अवश्य लेने चाहिये, परन्तु उनका प्रचार-प्रसार मातृभाषा में ही करना चाहिये …।
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 पूज्य “आचार्यश्री” जी ने कहा – हिंदी का उद्भव भाषाओं की जननी संस्कृत से हुआ है, जो आज भी तकनीकी क्षेत्र में प्रयोग के लिए सर्वाधिक उपयुक्त भाषा मानी जा रही है। हिंदी के व्याकरणिक नियम प्रायः अपवाद-रहित हैं, इसलिए ये अत्यंत सहज हैं। हिंदी की वर्णमाला विश्व की सर्वाधिक व्यवस्थित वर्णमाला है। इसमें स्वरों और व्यंजनों को अलग-अलग व्यवस्थित किया गया है। इसके अतिरिक्त सभी वर्णों को उनकी उच्चारण स्थानादि की विशेषताओं के आधार पर रखा गया है। हिंदी की लिपि “देवनागरी” विश्व की सर्वाधिक वैज्ञानिक लिपि है। इसमें प्रत्येक ध्वनि के लिए एक निश्चित लिपि चिह्न का प्रयोग होता है और एक लिपि चिह्न एक ही ध्वनि का प्रतिनिधित्व करता है। हिंदी का शब्दकोष असीम है, जहाँ एक-एक वस्तु, कार्य, भाव आदि को व्यक्त करने के लिए सैकड़ों शब्द विद्यमान हैं। हिंदी आज विश्व की दूसरी सबसे अधिक बोली जाने वाली भाषा के रूप में प्रतिष्ठित है। एक सर्वेक्षण के अनुसार इस समय हिंदी विश्व में दूसरी सबसे अधिक बोले जाने वाली भाषा है। गैर हिंदी भाषी देशों के लोग भी हिंदी सीख रहे हैं। हिंदी पूरे भारत और विश्व के कई देशों जैसे मॉरीशस, सउदी अरब, सूरीनाम, संयुक्त राष्ट्र अमेरिका, दक्षिण अफ्रीका, यमन, युगांडा, फिज़ी, गुयाना, मलेशिया, त्रिनिनाड, सिंगापुर, न्यूजीलैंड, जर्मनी, टोबैगो, नेपाल आदि में बोली और समझे जाने वाले एक बड़े वर्ग से भी प्रचलित है।
प्रयोग की दृष्टि से भी हिंदी इतनी समृद्ध है कि इसकी पाँच उपभाषाएँ और कम से कम सोलह बोलियाँ प्रचलित हैं, जिनमें से कई बोलियों और उपभाषाओं में भी प्रचुर साहित्य उपलब्ध है। हिंदी बहुत सरल और लचीली भाषा है जिसे सीखने में कोई कठिनाई नहीं होती। हिंदी भाषा में जो लिखा जाता है वही पढ़ा भी जाता है। अतः इसके लेखन और उच्चारण में स्पष्टता है। हिंदी दुनिया की सर्वाधिक तीव्रता से प्रसारित हो रही भाषाओं में से एक है। सबसे बड़े सर्च इंजन “गूगल” ने भी हिंदी को अब अपनी सभी सेवाओं में एक माध्यम के रूप में शामिल किया है। कम्प्यूटर और इंटरनेट पर भी हिंदी का प्रयोग बहुत तेजी से बढ़ रहा है। आज प्रायः हर विषय पर सामग्री हिंदी में प्राप्त की जा सकती है। ऐसे समय में जबकि भारत तेजी से विकास के पथ पर अग्रसर है और सम्पूर्ण विश्व की दृष्टि भारत की ओर लगी है, भारत के विकास के साथ ही दुनिया में हिंदी का महत्व बढ़ना भी निश्चित है। तो आइये ! हम सब अपने देश को पुन: विश्वगुरु बनाने के साथ ही हिन्दी को विश्वभाषा बनाने का संकल्प लें। इसलिए “कृपया मातृभाषा का प्रयोग करें, हिन्दी का प्रयोग करें …।”

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