बच्चों की शिक्षा के लिए अनपढ़ ग्रामीण ने सौंप दिया अपना घर

बड़वानी। मध्य प्रदेश के बड़वानी जिले का पाटी विकासखंड देश के सबसे पिछड़े 10 विकासखंडों में शामिल है, लेकिन इसके छोटे से गांव ठेंग्चा में शिक्षा के प्रति जागरूकता का अनूठा उदाहरण सामने आया है। गांव के बच्चे पढ़-लिख सकें, इसलिए सरकारी स्कूल संचालित करने के लिए एक अनपढ़ ग्रामीण कोटवाल बाबा ने अपनी झोपड़ी दे रखी है।

इसमें जब तक स्कूल लगता है, तब तक उनका सात सदस्यीय परिवार खेत पर समय बिताता है। स्कूल चलाने के एवज में वह किराया भी नहीं ले रहे हैं। यही नहीं, यह स्कूल भी 65 साल के कोटवाल बाबा व उनके एक बेटे कैलाश के प्रयास से शुरू हुआ। स्कूल की मांग पूरी होने के साथ शिक्षक भी मिल गया, लेकिन भवन नहीं था। इस वजह से कोटवाल बाबा ने पांच साल पहले अपनी झोपड़ी देने की पेशकश की।

गौरतलब है कि केंद्र की वनबंधु योजना के तहत 2014-15 में देश के 10 सबसे ज्यादा पिछड़े विकासखंडों में मध्य प्रदेश से एकमात्र पाटी विकासखंड शामिल था। हाल ही में नीति आयोग द्वारा जारी रिपोर्ट में बड़वानी जिले को प्रदेश के सबसे पिछड़े जिलों में दूसरे स्थान पर बताया गया है। ग्राम ठेंग्चा के अवाया फलिया में स्थित इस झोपड़ी में शिक्षक की टेबल-कुर्सी, बोर्ड और टाटपट्टी के अलावा गृहस्थी का सामान भी नजर आता है।

कोटवाल बाबा के पांच बेटों में चार अनपढ़ हैं। एक इसी स्कूल में पढ़ चुका है। दो बेटों की शादी हो चुकी है। दो बेटे अलग रहते हैं। झोपड़ी में बाबा, उनकी पत्नी, तीन बेटे और दो बहुओं सहित सात सदस्य रहते हैं। परिवार के पास 3-4 एकड़ असिंचित जमीन है। स्कूल में पदस्थ एकमात्र शिक्षक प्रधान पाठक अमृत राठौड़

के मुताबिक वर्तमान में इसमें 38 बच्चे पढ़ाई कर रहे हैं।

2017-18 के सत्र में कोटवाल बाबा के छोटे बेटे सहित स्कूल के नौ बच्चों ने माध्यमिक विद्यालय में कक्षा छठवीं में प्रवेश लिया है। पांचवीं तक इसी स्कूल में पढ़ीं सुनीता व संगीता ने बताया कि स्कूल में पढ़ाई तो अच्छी होती है, लेकिन अच्छा भवन भी मिल जाए तो अच्छा हो।

स्कूल भवन का काम अधूरा

सर्व शिक्षा अभियान पाटी के सब इंजीनियर वीरेंद्र सेजवार ने बताया कि 2014-15 में 14 लाख की लागत से स्कूल भवन स्वीकृत हुआ था। भवन एक साल में बन जाना था, लेकिन अब तक नहीं बन पाया है। पाटी विकासखंड में 16 स्कूल स्वीकृत हुए थे। इनमें 11 प्राथमिक विद्यालय में से सात व पांच माध्यमिक विद्यालय में से दो स्कूलों के भवन बन चुके हैं, शेष भवन अधूरे हैं। जिला परियोजना समन्वयक (डीपीसी) संजय तोमर ने बताया कि भवन अब तक पूरे क्यों नहीं हुए, जांच करवाएंगे। इसके बाद नियमानुसार कार्रवाई होगी।

मैंने अपनी झोपड़ी स्कूल के लिए दे दी, ताकि गांव के बच्चे पढ़-लिख जाएं। दिन में हम खेत पर काम पर चले जाते हैं। ऐसे में हमारी झोपड़ी बच्चों की पढ़ाई के काम में आए, इससे बड़ी सेवा और क्या होगी।

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