मोह-माया के कारण मनुष्य अपना मूल स्वरूप भूल जाता है : स्वामी अवधेशानन्दं जी महाराज

पूज्य सद्गुरुदेव आशिषवचनम्
            ।। श्री: कृपा ।।
  🌿
 पूज्य “सद्गुरुदेव” जी ने कहा – सच्चे स्वरूप का ध्यान करें। स्वयं के वास्तविक स्वरूप का ज्ञान उच्चतम संतोष, आनंद और शांति का स्रोत है। अपने वास्तविक स्वरूप की स्मृति और बोध का फलादेश है – निर्भयता और अखण्ड-आनन्द के अनुभव का स्थायी बन जाना। अपने वास्तविक स्वरूप का बोध होने पर जीवन में स्वयं की भूमिका, उद्देश्य और महानता स्वतः प्रकट होने लगते हैं। स्वरूप बोध का सहज परिणाम है – अपनी सनातनता, नित्यता, शाश्वत – सत्ता और अजेय अवस्था को उपलब्ध होना। आत्म-स्वरूप का बोध और स्वयं की निजता में जीवन जीने का अभ्यास महती उपलब्धि है। अतः आत्मस्त रहें ..! मोह-माया के कारण मनुष्य अपना मूल स्वरूप भूल जाता है। वहीं भगवान का भजन भी विस्मृत हो जाता है। जबकि भागवत मनुष्य के मूल स्वरूप का बोध कराती है। भक्ति मार्ग में भक्त स्वयं को मिटाकर प्रभु को प्राप्त करता है।
भागवत माया रूपी जाल को हटाने का सशक्त माध्यम है। संसार में विषय भोगों में लिप्त रहने के कारण हर जगह अशांति का माहौल है। ज्ञान के अभाव में जीव राग, द्वेष व माया के अंधकार में भटक रहा है। जब तक उसे आत्मज्ञान का प्रकाश नहीं मिलेगा, तब तक वह भटकता ही रहेगा। आत्मज्ञान तो सतगुरु की शरण में जाने पर ही प्राप्त हो सकता है। याद रहे ! एक पूर्ण सतगुरु आत्मा व परमात्मा के स्वरूप का बोध करा देता है। इससे शिष्य का अज्ञान रूपी अंधकार मिट जाता है। उदाहरण के रूप में जिस प्रकार शारीरिक रोगों के इलाज के लिए हम एक कुशल चिकित्सक को ढूंढते हैं अथवा हम ऐसे डाक्टर के पास जाते हैं, जो योग्य हो, जिसके पास एम.बी.बी.एस., एम.डी. आदि डिग्रियां हो; उसी प्रकार सभी आंतरिक रोगों के उपचार हेतु हमें ऐसे सतगुरु की आवश्यकता है जो पूर्ण योग्य हो। उसकी योग्यता की पहचान ब्रह्मज्ञान है, जो उसे प्रभु से मिला है…।
🌿
 पूज्य “आचार्यश्री” जी ने कहा – सद्ज्ञान अपने दोषों और अपने गुणों को जानने के लिए तथा अपने दोषों को हटाने और गुणों को प्रकट करने के लिए है। आज अधिकांश लोगों को तत्त्वों का ज्ञान नहीं है। जो शिक्षित हैं, वे भी अपने ज्ञान का उपयोग दूसरों के दोषों को ढूंढने में करते हैं, अपने दोषों को देखने के लिए नहीं। अपने दोषों को देखने का मन नहीं होता, दूसरों के दोषों को देखने का मन हो जाता है। इसे क्या माना जाए? शिक्षित या अशिक्षित, दोनों ही अपने दोषों को देखने के बजाय दूसरों के दोषों को ही क्यों देखते हैं? यह मिथ्यात्व का लक्षण है। सम्यक्त्वी अंतर्मुखी होता है, जबकि मिथ्यात्वी बहिर्मुखी होता है। वह पर में देखता है, स्व में नहीं झांकता। इसीलिए न कि मिथ्यात्व और अज्ञान अन्दर बैठे हुए हैं? अन्यथा तो ज्ञान स्वयं को, स्वयं के स्वरूप को जानने के लिए ही होता है।
स्वयं के दोषों को जानकर उनके निस्तार के प्रयास करने के लिए, अपनी आत्मा को उज्ज्वल बनाने के लिए ज्ञान होता है। यह संसार उस परमात्मा की सर्वश्रेष्ठ कृति है जो सबका आदि कारण है। जब उसने इच्छा की तभी मूल तत्त्व में स्फुरण होकर जगत का विकास हुआ। इसलिए किसी मनुष्य की सामर्थ्य नहीं कि वह इस जगत की उत्पत्ति का यथार्थ वर्णन कर सके। स्वयं वेद ने स्पष्ट शब्दों में कह दिया है कि “प्रकृति के तत्व को कोई नहीं जानता तो उनका वर्णन कौन कर सकता है? इस सृष्टि की उत्पत्ति के कारण क्या हैं? यह विभिन्न सृष्टियाँ किस उपादान अथवा कारण से प्रकट हुई? देव-गण भी इन सृष्टियों के पश्चात ही उत्पन्न हुए हैं, तब कौन जानता है कि यह सृष्टि कहाँ से उत्पन्न हुई? यह विभिन्न सृष्टियाँ किस प्रकार हुई? इन्हें किसने रचा? इन सृष्टियों के जो स्वामी दिव्य धाम में निवास करते हैं वही इनकी रचना के विषय में जानते हैं”। इसी तथ्य को समझ कर उपर्युक्त मन्त्र में कहा गया है कि इस सृष्टि रूपी वस्त्र का ताना-बाना किस प्रकार ताना गया और फिर वस्त्र को किस प्रकार बुना गया है, इसका वर्णन कर सकना मनुष्य की शक्ति के बाहर है।
हम तो अपने नेत्रों से तैयार सामग्री को ही देख रहे हैं। हमारे पूर्वज भी हम को इसी प्रकार देखते आए हैं। तब हम किस प्रकार जानें कि आदि में इसकी रचना किस प्रकार की गई थी? इसका अगर कोई मार्ग है तो यही कि हम सच्चे हृदय से इसके रचयिता परमात्मा की पूजा, उपासना करें, उसके आदेशों का यथार्थ रूप में पालन करें और अपने जीवन को उसके बनाये नियमों के अनुकूल बनावें। ऐसा करने से ही हम आत्मा और प्रकृति के रहस्य को जानकर अपने सच्चे स्वरूप का ज्ञान प्राप्त करने में समर्थ हो सकते हैं। वास्तव में परमात्मा ही इस संसार का धारक है और वहीं इसमें ओत-प्रोत है। वही सब का स्वामी और सच्चा पिता है। इसलिए जो कोई भी बालकोचित सरलता से उस भगवान की गोद में बैठने की अभिलाषा करेगा अथवा उसकी शरण में जायेगा, वही सच्चे ज्ञान का अधिकारी बन सकेगा …।

Comments are closed.