CASE STUDY:-किसान से समर्थन मूल्य पर सरकार माल नहीं ले रही है, बैंकों के पास कम आ रही नगदी,

सीए भरत नीमा —
 इन दिनों बाजार में सभी लोग परेशानी महसूस कर रहे है, इसके पीछे कारण जो दिख रहा है वह ऐसा है कि नोटबंदी के बाद सरकार ने बैंकों को छूट दे दी कि पैसा जमा करने और निकालने में खर्चा लगेगा जो कि पहले नहीं लगता था और कानूनन बैंकों से ट्रांजेक्शन करना भी जरुरी है। सीए भरत नीमा ने बताया व्यक्ति को ऐसा लग रहा है कि मेरी गाढ़ी मेहनत की कमाई में से खर्चा बैंक वालों को सिर्फ इस कारण से क्यों दूं, इसलिए वह अपने पास नगदी ही रखने की कोशिश करता है। इन सबके कारण बैंकों के पास दिन में नगदी जमा बहुत कम आ रही है और निकालने वालों की संख्या व राशि बहुत ज्यादा है। मतलब लिक्विडिटी प्रॉब्लम है। जमीनी तौर पर बैंक वाले पैसा नगदी नहीं होने का बोलकर किसानों को वापस कर रहे है या थोड़ी-थोड़ी राशि दे रहे है इससे पैसों की डिमांड और बढ़ रही है, क्योंकि किसान सोचने लगा कि एक बार में पैसा निकाल लो बाद में कौन चक्कर लगाएगा, मंडी की अलग परेशानियां है जैसे माल विक्रय में पूरा-पूरा दिन खराब होता है।
समर्थन मूल्य से बहुत कम पैसों में उपज बिक रही
सीए नीमा ने बताया समर्थन मूल्य पर सरकार माल नहीं ले रही है और लेती है तो किसान को उपज को बेचकर नगदी करने में 5 से 7 दिन का समय लग जाता है। अभी किसान को समर्थन मूल्य से बहुत कम पैसों में उपज बिक रही है जैसे तुवर जिसका समर्थन मूल्य करीब 5050 रुपए प्रति क्विंटल है लेकिन 3500 रुपए में बिक रहा है। उड़द का समर्थन मूल्य 5200 रुपए है बिक रहा है 4400 में। सोयाबीन का समर्थन मूल्य 2775 रुपए है बिक रहा 2600 में, रायडा का समर्थन मूल्य 3300 रुपए है, बिक रहा है 2900 रुपए में, मसूर भी 3100 में बिक रही है जो कि समर्थन मूल्य से बहुत कम है। रिटेल में बहुत ज्यादा दाम होते हुए भी किसान को कम भाव में माल बेचना पड़ता है इसका रास्ता सरकार को निकालना चाहिए।
छोटे से छोटे आदमी ने बनाया अपना मार्क
उन्होंने बताया अब जीएसटी में बगैर ब्रांडेड मार्क वाले माल पर निल टैक्स है मतलब जो बोरी में बेचा। लेकिन वही माल ब्रांडेड मार्क युक्त पैक किया हुआ होने पर 5 प्रतिशत जीएसटी लगा दिया है जबकि प्रैक्टिकल में हर छोटे से छोटे आदमी ने अपना मार्क बनाया है और वह सामान्यतया छोटे-छोटे लोगों को बगैर विज्ञापन के माल बेचता है। आज कल माल पैक हो कर ही बिकता है गली-गली मं लोग अपना ब्रांड बनाकर बेच रहे है। इस प्रकार उपभोक्ता को जीएसटी लगने से माल महंगा ही मिलेगा। लोगों को समझ नहीं आ रहा है कि इन छोटी पैकिंग को ब्रांडेड मानेंगे या नहीं। यह मुद्दा बहुत लोगों से संबंध रखता है, तो सरकार को इस संबंध में विज्ञापन के माध्यम से इस ब्रांडेड व अनब्रांडेड के संशय को दूर करके स्पष्ट भाषा में क्लियर करना चाहिए।

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