#BoycottCHINA : VIVO से करार ख़त्म नहीं करेगा भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड

न्यूज़ डेस्क : चीनी कंपनी वीवो से हर साल स्पॉन्सरशिप के जरिए 440 करोड़ रुपये मिलते हैं। वीवो ने 2018 में 2199 करोड़ रुपये में पांच साल के लिए यह अनुबंध हासिल किया था, जो 2022 में खत्म होगा। वहीं दूसरी ओर भारतीय ओलंपिक संघ (आईओए) के महासचिव राजीव मेहता ने कहा कि आईओए को लि-निंग के साथ अपने प्रायोजन को खत्म करना चाहिए। यह कंपनी टोक्यो ओलंपिक में भारतीय दल के किट की प्रायोजक है। आइओए ने मई 2018 में लि-निंग के साथ करार किया था। करार के मुताबिक कंपनी खिलाडि़यों के कपड़े, जूते प्रायोजित करेगी।

 

 

लद्दाख के गलवां घाटी में भारत-चीन के बीच खूनी संघर्ष के बाद देशभर में चीनी सामानों, कंपनियों के बहिष्कार की मांग तेज हो गई है। कयास लगाए जा रहे थे कि इसका असर इंडियन प्रीमियर लीग और टीम इंडिया पर भी पड़ेगा, लेकिन गुरुवार को बीसीसीआई के कोषाध्यक्ष अरुण कुमार धूमल ने स्पष्ट कर दिया कि बोर्ड अगले चक्र के लिए अपनी प्रायोजन नीति की समीक्षा के लिए तैयार है, लेकिन आनन-फानन में ‘वीवो’ कंपनी के साथ करार खत्म नहीं करेगा। आईपीएल में चीनी कंपनी से आ रहे पैसे से भारत को ही फायदा हो रहा है, चीन को नहीं। 

 

यहां यह बताना जरूरी हो जाता है कि इंडियन प्रीमियर लीग का टाइटल स्पॉन्सर चीनी स्मार्टफोन कंपनी वीवो है। इतना ही नहीं यह कंपनी टूर्नामेंट के दौरान सबसे ज्यादा विज्ञापन भी देती है। कोषाध्यक्ष अरूण धूमल ने कहा कि हमें वीवो से हर साल स्पॉन्सरशिप के जरिए 440 करोड़ रुपये मिलते हैं और कंपनी से हमारा करार 2022 तक है, इसके बाद ही स्पॉन्सरशिप की समीक्षा की जाएगी।

 

 

समाचार एजेंसी पीटीआई से बात करते हुए दुनिया के सबसे अमीर क्रिकेट बोर्ड के कोषाध्यक्ष कहते हैं, ‘जब आप भावुक होकर बात करते हैं, तो आप तर्क को पीछे छोड़ देते हैं। हमें समझना होगा कि हम चीन के हित के लिए चीनी कंपनी के सहयोग की बात कर रहे हैं या भारत के हित के लिए चीनी कंपनी से मदद ले रहे हैं। जब हम भारत में चीनी कंपनियों को उनके उत्पाद बेचने की अनुमति देते हैं तो जो भी पैसा वे भारतीय उपभोक्ता से ले रहे हैं, उसमें से कुछ बीसीसीआई को ब्रांड प्रचार के लिए दे रहे हैं और बोर्ड भारत सरकार को 42 प्रतिशत कर चुका रहा है। इससे भारत का फायदा हो रहा है, चीन का नहीं।’

 

पिछले साल सितंबर तक चीनी मोबाइल कंपनी ओप्पो भारतीय टीम की प्रायोजक थी, लेकिन उसके बाद बेंगलुरू स्थित शैक्षणिक स्टार्ट अप बायजू ने चीनी कंपनी की जगह ली। धूमल ने कहा कि वह चीनी उत्पादों पर निर्भरता कम करने के पक्ष में हैं, लेकिन जब तक उन्हें भारत में व्यवसाय की अनुमति है, आईपीएल जैसे भारतीय ब्रांड का उनके द्वारा प्रायोजन किए जाने में कोई बुराई नहीं है।

 

 

धूमल ने कहा कि, ‘अगर मैं किसी चीनी कंपनी को भारत में क्रिकेट स्टेडियम बनाने का ठेका देता हूं, तो मैं चीनी अर्थव्यवस्था की मदद कर रहा हूं। गुजरात क्रिकेट एसोसिएशन ने मोटेरा को दुनिया का सबसे बड़ा क्रिकेट स्टेडियम बनाया और यह अनुबंध एक भारतीय कंपनी (एलएंडटी) को दिया गया था। देश भर में हजारों करोड़ रुपये की क्रिकेट संरचना तैयार की गई है और कोई भी अनुबंध चीनी कंपनी को नहीं दिया गया। व्यक्तिगत रूप से मैं भी देश में चीनी उत्पादों पर प्रतिबंध लगाने के पक्ष में खड़ा हूं, लेकिन अगर वह चीनी धन भारतीय क्रिकेट की भलाई के लिए लग रहा है तो इसमें बुराई ही क्या है, हम तो एक तरह से भारत की मदद ही कर रहे हैं।’

 

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