बैंकों पर भारी पड़ रहे आरबीआइ के नए नियम, करना पड़ रहा घाटे का सामना

नई दिल्ली । एनपीए को लेकर आरबीआइ के नए नियम से बैंकों को कितना फायदा होगा, यह तो बाद में पता चलेगा। लेकिन अभी ये नियम सरकारी बैंकों के वित्तीय नतीजों को बुरी तरह से प्रभावित कर रहे हैं। फंसे कर्ज (एनपीए) की समय रहते पहचान करने और उसके लिए वित्तीय समायोजन करने संबंधी नए नियम से सरकारी बैंकों को बहुत बड़ी राशि अपने मुनाफे से अलग करनी पड़ रही है। लिहाजा इन बैंकों को घाटा हो रहा है। गुरुवार और शुक्रवार को सार्वजनिक क्षेत्र के देना बैंक, यूनियन बैंक और केनरा बैंक के वित्तीय नतीजे सामने आए हैं, और एनपीए के नए नियमों के चलते तीनों ही बैंकों को भारी घाटा हुआ है।

यूनियन बैंक ऑफ इंडिया ने पिछले वित्त वर्ष की चौथी और आखिरी तिमाही (जनवरी-मार्च, 2018) में 2,583 करोड़ रुपये का घाटा उठाया है। उससे पिछले वित्त वर्ष की समान तिमाही में बैंक को 108 करोड़ रुपये का शुद्ध लाभ हुआ था। यह इसलिए हुआ क्योंकि बैंक को समीक्षाधीन तिमाही में एनपीए के मद में 5,667.92 करोड़ रुपये की राशि का प्रावधान करना पड़ा। उससे पिछले वर्ष की समान अवधि में बैंक को इस मद में 2,444.12 करोड़ रुपये का प्रावधान करना पड़ा था। पिछले पूरे वित्त वर्ष (2017-18) में बैंक को 5,212.47 करोड़ रुपये का घाटा हुआ है।

केनरा बैंक के वित्तीय नतीजों को देखें तो पिछले वित्त वर्ष की चौथी तिमाही (जनवरी-मार्च, 2018) में बैंक के एनपीए के लिए प्रावधान की गई राशि में तीन गुना बढ़ोतरी हुई है। इसके चलते समीक्षाधीन तिमाही में केनरा बैंक को 4,859.77 करोड़ रुपये का नुकसान उठाना पड़ा। एक तिमाही पहले (अक्टूबर-दिसंबर, 2017) बैंक ने 126 करोड़ रुपये, जबकि उससे पिछले वित्त वर्ष की समान अवधि यानी जनवरी-मार्च, 2017 में 214 करोड़ रुपये का मुनाफा हासिल किया था।

सार्वजनिक क्षेत्र के देना बैंक की भी यही कहानी रही है। एनपीए में भारी बढ़ोतरी और इसके लिए प्रावधान की राशि बढ़ाने की वजह से बैंक को 1,225.42 करोड़ रुपये की हानि हुई है।

माना जा रहा है कि अगले कुछ दिनों में अन्य सरकारी व निजी बैंकों के आने वाले वित्तीय नतीजे भी कमोबेश ऐसे ही रहेंगे। दरअसल, इसके लिए भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआइ) के नए निर्देशों को जिम्मेदार माना जा रहा है जिसने एनपीए निपटारे के आधा दर्जन पुराने नियमों को खत्म कर दिया है। नए नियम इसलिए लागू किए गए हैं कि बैंक एनपीए की पहचान समय रहते कर सकें। इससे पहले बैंकों को यह सुविधा थी कि वे कर्जदारों को एनपीए चुकाने का एक और मौका देते थे। इससे उस राशि को एनपीए में दिखाने और उसके लिए अलग से राशि समायोजित करने की बाध्यता नहीं थी। नए नियमों के तहत बैंक ऐसा नहीं कर पा रहे हैं। इससे न केवल एनपीए की राशि बढ़ी है, बल्कि उसके समायोजन के लिए भी बैंकों को ज्यादा रकम रखना पड़ रहा है।

सरकारी बैंकों को अक्टूबर-दिसंबर, 2017 में एनपीए की वजह से 51,000 करोड़ रुपये का समायोजन करना पड़ा था। अभी तक के आंकड़ों से लगता है कि यह राशि जनवरी-मार्च, 2018 की तिमाही में दोगुने से भी ज्यादा हो सकती है। गौरतलब है कि बैंकों ने वित्त मंत्रालय से गुहार लगाई है कि एनपीए के नए नियमों में बदलाव किया जाए। माना जा रहा है कि इस बारे में वित्त मंत्रालय और आरबीआइ के बीच बातचीत भी हो रही है ताकि इन नियमों के कुछ प्रावधानों को आसान किया जा सके।

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