आज़ाद लब : गंधारी बनी सभी सरकारें –विश्वबंधु

यहाँ सभी सरकारों को गंधारी इसलिए कहा जा रहा है  क्योकि धृतराष्ट्र तो जन्म से अंधे थे उनका कोई दोष नहीं है था   क्योकि उन्हें दिखाई नहीं देता था  , परंतु गांधारी को आंखे थी और परन्तु उन्होंने पट्टी बांध रखा था l मतलब वह देख सकती थी, लेकिन देखना नहीं चाहती थी या देख नहीं रही थी या देखकर अनदेखा कर रही थी l ठीक वैसा ही अभी की सभी सरकारें चाहे वो प्रदेश सरकार हो या केंद्र सरकार सभी गांधारी बने हुए हैं l सबको पता है क्या हो रहा है, कैसे हो रहा है और इसका समाधान कैसे होगा यह भी पता है, परंतु गंधारी बनकर बैठे हैं कि जो हो रहा है होने दो हम बोल देंगे कि हमने तो कुछ देखा ही नहीं क्योकि हमारे आंख पर पट्टी थी l  इसीलिए सरकारें अगर धृतराष्ट्र हो तो आज मान ले चलो वो देख नहीं सकती , परंतु गंधारी बन जाना बहुत दुखदाई है l 
देश में वर्तमान समय में प्रवासी मजदूरों के पलायन की समस्या कोरोना से भी बड़ी समस्या बनती जा रही है l पहली समस्या उनको उनके घर तक पहुंचाना जो कि वह चाहते हैं कि अपने घर पहुंच जाएं अपने परिवार के साथ रहें और दूसरा उनके साथ करोना का भी यात्रा करना l मतलब एक तरफ मानवीय दृष्टिकोण से उनको घर पहुंचाना अति आवश्यक है परंतु साथ में कोरोना भी उनके साथ पूरे भारत की यात्रा कर रहा है जो कि भारत देश के लिए बड़ी ही गंभीर परिणाम
कोरोना की लड़ाई के खिलाफ ला सकता है l परंतु हिंदुस्तान में लगभग 22 करोड़ प्रवासी मजदूर अलग-अलग राज्यों में अपने घर छोड़ के काम करते हैं यह है तो देशवाशी लेकिन इनको प्रवासी कहा जाता है l क्योंकि किसी और राज्य से किसी और राज्य में काम की तलाश में जाते हैं l
वर्तमान में इनको इनके घर पहुंचाना सबसे बड़ी समस्या होती जा रही है सभी सरकारों को समस्या मालूम है, समाधान भी मालूम है, क्या करना है यह भी मालूम है ,परंतु वह कर नहीं रहे हैं l  क्योंकि यह राजनीति का बहुत बड़ा अंग है वह मजदूरों को लेकर आएंगे, परंतु वह तब लेकर आएंगे जब उनको लगेगा कि मजदूरों को महसूस होगा कि उनकी सरकार उनके लिए काम कर रही, वरना बिना दिक्कत के लाते तो मजदूरों को एहसास नहीं होता की उनकी सरकार ने उनकी मदद की है जो की वोट पानी का एक जरिया है l इसका उदाहरण यह है कि इन मजदूरों को अपने परदेस जाने के लिए या भेजने के लिए हर पार्टी, हर राजनीतिक दल राजनीति कर रहे हैं l सभी श्रेय लेने का होड़ में लगे हुए परंतु इन बेचारे रोटी गई कि नहीं गई यह सवाल कोई सरकार नहीं दे रहा सभी सरकारें जीवन के बैठी पता सब कुछ है , परंतु आंखों पर पट्टी बांध रखा है l  कहा जाता है कि सोए हुए को जगाया जा सकता है, परंतु सोने का नाटक करने वाले को कभी नहीं जगाया जा सकता l  कोई भी सरकारें सोई नहीं है बल्कि सोने का नाटक कर रही है और कोई इनको कोई नहीं जगा सकता l
केंद्र सरकार इस पूरे मामले पर मूक दर्शक बना हुआ है , ना ही गृह मंत्रालय के तरफ से कोई वक्तव्य जारी हो रहा है और ना ही प्रधानमंत्री के तरफ से इस समस्या के ऊपर आज तक एक शब्द बोला गया है और सोशल मीडिया के द्वारा, ना ही उनके किसी भी संबोधन में दुख व्यक्त किया जा रहा है  और न ही समाधान नहीं किया जा रहा है l  देश में इतनी बड़ी संख्या में आजादी के बाद पहली बार पलायन हो रहा है l आजादी के समय तो पर्याप्त संसाधन नहीं था परन्तु आज तो हमारे पास सभी संसाधन है, हम विदेशों से लोगों को देश ला रहे हैं लेकिन एक राज्य से दूसरे राज्य में लोगों को नहीं भेज पा रहे हैं या समझ के परे है l इससे भी बड़ी समस्या होगी इनको वापिस लाना क्योकि यह जब तक नहीं आएंगे उस परदेस में फिर औद्योगिक गति अपनी गति से नहीं चलेगी और यह सच्चाई है की इनके बगैर किसी  प्रदेश का उद्योग नहीं चलेगा l  आज जो प्रदेश इन से अपना पल्ला झाड़ रहे हैं वह परदेस कल इनको बुलाने के लिए गिड़गिड़येंगे और बहुत सारी योजनाएं बनाएंगे इनके हक़ की l   
22 करोड़ प्रवासी मजदूर किसी भी पार्टी की सत्ता को बनाने और बिगाड़ने के लिए बहुत महत्वपूर्ण अंक इस अंक के साथ राजनीतिक पार्टियां खेल रही है l परंतु उन्हें यह नहीं लगता कि यह आंकड़ा उनके खिलाफ बी जा सकता है और वह हाशिए पर आ जाएंगे और हो सकता है संभव है कि वह भी कभी इन प्रवासी मजदूरों की तरफ पैदल पलायन करने को मजबूर हो जाए क्योंकि वक्त बदलता है कबीर ने कहा है –माटी कहे कुम्हार से तू क्यों रोंदे मोहे, एक दिन ऐसा आएगा मैं रोंदे गा तोहे  l  तो अच्छे दिन आने के  सपने दिखाए गए पर पूरे दिन धूप में पैदल चलना पड़ेगा यह किसी ने नहीं सोचा था l
विश्वबंधु 

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