एडीएम हत्याकांड के आरोपी को बरी करने का फैसला सही

नई दिल्ली| सुप्रीम कोर्ट ने वर्ष 2001 में कानपुर में भीड़ द्वारा एडीएम चंद्रप्रकाश पाठक की हत्या के मामले के 4 आरोपियों को बरी करने के फैसले को बरकार रखा है। शीर्ष अदालत ने कहा कि अभियोजन पक्ष की कहानी में कई खामियां हैं। जस्टिस एन.वी. रमण की अध्यक्षता वाली दो सदस्यीय पीठ ने सोमवार को इलाहाबाद हाईकोर्ट द्वारा चार आरोपियों को बरी करने के फैसले को चुनौती देने वाली याचिका खारिज कर दी। पीठ ने हाईकोर्ट के फैसले में दखल देने से इनकार कर दिया और आरोपियों का संदेह का लाभ देते हुए बरी करने के निर्णय को बरकरार रखा।

सुप्रीम कोर्ट ने मामले की जांच-पड़ताल पर आपत्ति जताई और कहा कि अभियोजन पक्ष की कहानी में कई खामियां हैं। कोर्ट ने पाया कि इस मामले में 7 चश्मदीद थे, जिनमें से पांच ने आरोपियों की पहचान की थी। कोर्ट को यह बात गले नहीं उतरी कि चश्मदीदों ने 200 से 300 दंगाइयों की भीड़ में खास पहचान के साथ आरोपियों की पहचान की। मसलन, एक आरोपी का दांत बड़ा होने के कारण उसकी पहचान की गई, जबकि पोलियोग्रस्त एक आरोपी की पहचान की गई।

हालांकि इनकी इस पहचान का एफआईआर में जिक्र नहीं था। पीठ ने पाया कि शिनाख्त परेड भी 55 दिन बाद हुई थी। कोर्ट ने पाया कि पोस्टमार्टम रिपोर्ट में मृतक के शरीर में दो जख्म होने का जिक्र था। एक जख्म गोली के अंदर जाने का और दूसरा गोली के बाहर निकलने का। वहीं यह भी कहा गया कि गोली मृतक के शव की राख से मिली थी। अदालत को अभियोजन पक्ष की यह कहानी भी गले नहीं उतरी। अभियोजन पक्ष के अन्य सिद्धांत भी शीर्ष अदालत के गले नहीं उतरे है।

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