हम पत्थर पर लकीर खीचते है …

लाल किला के प्राचीर से अपने पांचवें भाषण मे प्रधानमंत्री मोदी पहले की तरह निर्भीक, निश्चिंत और समर्पित नहीं लग रहे थे l आज जो मोदी दिखे वो पहले वाले मोदी से अलग दिख रहे थे l आज वो बार -बार पसीना पोछते और बार -बार उनकी निगाहे अपने कागज पर लिखे भाषण पर जा रहा था , जो की उनकी शैली नहीं है l शायद यह चुनाव के पहले की बेचैनी हो सकती है वर्ना आज उनको यह नहीं कहना पड़ता जो शायद उन्होने आज पहली बार बोला है की ‘मेरे बारे मे लोग बहुत कुछ बोलते है’ यह नहीं कहना की जरुरत नहीं होती l इस बात से क्या यह मान लिया जाये की निर्भीक चलने वाले मोदी को अब लोगो के बातों की चिंता होने लगी, हमेशा निश्चिंत दिखने वाले मोदी को अब चुनाव के पहले कुछ भय लगने लगा है ! खैर कारण जो भी हो यह लोकतंत्र कई लिए अच्छा है l 

अब बात करते है भारत के गरीबो के स्वास्थ्य परियोजना को जिसका आज से औपचारिक रूप से शुरु की जा रही है परन्तु यह देशवासियों के लिए 25 सितम्बर बीजेपी कई संस्थापक पंडित दीन दयाल उपाध्याय जी के जन्म दिवस  से उपलब्ध होगा और यह शायद यह बीजेपी की अपने संस्थापक को दी जाने वाली सबसे बड़ी श्रधानजली होगी l आज के पूरे भाषण मे कुछ भी नया नहीं था l  जो देश आशा कर रहा था वैसी कोई बात आज के भाषण मे नज़र नहीं आई l शायद उसका कारण मोदी जी ने खुद कहा की वो मखन पर नहीं, पत्थर पर लकीर खीचते है l शायद इसी कारण थकान हो गई होगी और वही पुरानी सभी बाते आज फिर दोहरा दी l

 

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