दर्शकों का प्यार ही मामा जी को सुपर डांसर-3 में वापस लेकर आया- परितोष त्रिपाठी

हर गली मोहल्ले में एक मामा जी होते हैं और हर मामा जी को एक शिल्पा शेट्टी से प्यार होता है, नाम भले टीना रीना कुछ भी हो। मुझे अब सब मामा जी ही बुलाते हैं, यहां तक की मेरी माता जी भी मुझे मामा बुलाने लगी हैं। किसी भी एक्टर के लिए सबसे जरूरी चीज यही है कि उसके किरदार को याद किया जाए। यही उसके लिए सबसे बड़ी उपलब्धि होती है। यह कहना है सुपर डांसर-3 फेम मामा जी यानी परितोष त्रिपाठी का। डांस रियलिटी शो सुपर डांसर में वह लगातार तीसरी बार अपने शेरों शायराना अंदाज में दर्शकों का मनोरंजन करते नजर आएंगे। हाल ही में हुए एक इंटरव्यू में उन्होंने अपने करियर और सुपर डांसर चैप्टर-3 के बारे में खुलकर बात की।

 

दर्शकों के प्यार ने सुपर डांसर से जोड़े रखा

परितोष के मुताबिक, असल में कोई एक यूनिट हिट नहीं हुई बल्कि पूरा सेटअप ही मशहूर हुआ। बच्चे, चैनल, जजेज की कमेस्ट्री, ये सारा कुछ दर्शकों को काफी अच्छा लगा। फिर अगर कोई चीज दर्शकों द्वारा बहुत पसंद की जा रही है तो उसे क्यों तोड़े। सबकुछ ऑडियंस के प्यार पर निर्भर करता है।

 

पिछले दो सीजन से ज्यादा मनोरंजक

उन्होंने बताया कि सुपर डांसर चैप्टर 3 पिछले दो सीजन से थोड़ा ऊपर है, बोल सकते हैं कि इसका लेवल काफी हाई हो गया है। खास बात है कि इस बार ऑडिशन में जो बच्चे आए, वो काफी टैलेंटेड हैं और पूरी तैयारी के साथ आये थे। जाहिर सी बात है ये पिछले दो सीजनों की तुलना में काफी कठिन होने वाला हैं। कुल मिलाकर दर्शकों को तीसरे सीजन में भी बहुत मजा आने वाला है। दर्शकों के मन मुताबिक चीज पेश की जा रही है।

 

एक प्रयोग था मामा जी का कैरेक्टर 

उत्तर प्रदेश के देवरिया से आने वाले परितोष ने अपने मामा जी के कैरेक्टर का जिक्र करते हुए कहा, ‘दरअसल ये एक प्रयोग था। ऐंकर कैसा बोलेगा ये कुछ भी पता नहीं था, बस इतना था कि मामा-भांजे शो को होस्ट करना है। ज्यादातर ऐंकर कोट पेंट सूट बूट वाले होते हैं, लेकिन ये पहली बार था जब किसी ऐसे ऐंकर को लाया गया, जो अच्छी हिंदी जनता हो, अपने मजाकिया और शेरों शायरी के अंदाज में दर्शकों को बांधे रखने का हुनर जनता हो।’

 

सीरियल या मूवी करने से ज्यादा कठिन थियेटर

इसके अलावा उन्होंने अपने थियेटर अनुभव और टीवी सीरियल या फिल्म्स के काम करने के तौर-तरीकों के अंतर के बारे में बताया कि, ‘मेरी पढ़ाई डीयू से हुई है। हम चार दोस्तों ने मिलकर एक थियेटर भी खोला है। आज उसे बारह साल होने को हैं। मैंने मुंबई में भी कई नाटक किए हैं। मुंबई में तो लगभग 300 शो किए होंगे। मैं साल 2000 से ही थियेटर कर रहा हूं। मेरी समझ से रंगमंच थोड़ा मुश्किल होता है क्योंकि उसमे रीटेक लेने का कोई ऑप्शन नहीं होता। सुपर डांसर में भी मामा जी का जो कैरेक्टर है, उसे सबकुछ लिखा हुआ नहीं मिलता। कई बार आपको खुद ही कुछ ह्यूमर पैदा करना पड़ता है। थियेटर आपको वो मजबूती देता है जिसके बूते आप सैकड़ों की भीड़ में सीना तान कर खड़े हो सकते हैं। टीवी थोड़ा टेक्निकल है। वहां टेक्निक काम करती है। कैमरे को ही महबूबा मान कर एक्ट करना पड़ता है। दोनों आपने आप में कठिन है लेकिन थियेटर मेरे मुताबिक थोड़ा ज्यादा कठिन है।’

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