फिल्म मेकिंग से दें सपनों को नई उड़ान

स्क्रीनप्ले आइडिया और कहानी के विकास के बाद का चरण है। इसके आधार पर ही फिल्म का फिल्मांकन होता है पटकथा लेखक/निर्देशक की मदद से कहानी की पटकथा तैयार की जाती है। दरअसल पटकथा एक नहीं, अनेक हो सकती हैं जिसमें कैमरा पर्सन और अभिनेताओं समेत सभी जरूरी लोगों के लिए आवश्यकता के अनुरूप पटकथाएं तैयार की जाती हैं। पटकथा में स्पेसिफिक्स यानी समय, लोकेशंस और सिचुएशन की सूचना अंग्रेजी में लिखी जाती है।

म में से बहुत सारे लोग ऐसे होते है जिन लोगों को कहानियां सुनना बहुत अच्छा लगता है। वह छोटी से छोटी किसी पुरानी घटना को भी मिर्च-मसाला लगाकर दोस्तों को सुनाते है। अगर आपको भी ऐसा करना और कहानी लिखना पंसद है तो फिल्म मेकिंग आपके लिए एक बेहतर करियर विकल्प साबित हो सकता है। आप फिल्म मेकिंग का कोर्स कर करियर को नई दिशा भी प्रदान कर सकते है। आइए, जानते हैं क्या होता है फिल्म मेकिंग और इसके लिए कौन से कोर्स हैं उपलब्ध।

क्या होता है फिल्म मेकिंग: फिल्म मेकिंग एक कला है जिसके लिए एक बेहतर कैमरे की जरूरत होती है। फिल्म मेकिंग में स्क्रिप्ट के आधार पर की जाती है। इसमें चरित्र होते हैं, एक कहानी होती है, हर कहानी की एक भाषा होती है। फिल्म दृश्य होते हैं, ध्वनियों का दृश्यों के साथ मिलान होता है, स्पेशल इफेक्ट्स होते हैं और गीत-संगीत होता है. फिल्मों में क्रिएटिविटी और टेक्नोलॉजी का अनोखा मेल देखा जाता है। आज फिल्मों में नई-नई तकनीकों का प्रयोग किया जा रहा । हर एक फिल्म को रिलीज होने से पहले उसे सेंसर बोर्ड के सामने परखा जाता है। वहां से पास होने के बाद ही उसे आम जनता के लिए रिलीज की जाती है।

जरूरी योग्यता: फिल्म मेकिंग को बेहतर तरीके से बताने के लिए आज कई पोस्ट ग्रेजुएट कोर्स उपलब्ध हैं। बैचलर स्तर पर भी अलग-अलग संस्थान कोर्स कराते हैं। बैचलर कोर्स में दाखिला लेने के लिए न्यूनतम योग्यता बारहवीं है। जबकि पोस्ट ग्रेजुएट कोर्स के लिए न्यूनतम 40 प्रतिशत अंकों के साथ ग्रेजुएट की डिग्री होना अनिवार्य है
यहां हैं अवसरों की भरमार: फिल्म मेकिंग का कोर्स करने के बाद आपके पास 1 या 2 नहीं बल्कि ढेरों विकल्प मौजूद हैं। जिनमे ये विकल्प मुख्य रूप से शामिल है। स्क्रीनप्ले, निर्देशन, सिनेमेटोग्राफी, संगीत, कोरियोग्राफी, और वीडियोग्राफी इत्यादि।
निर्देशन: फिल्मों में निर्देशन करना एक मल्टीटास्किंग काम है। फिल्म की पटकथा से लेकर संवादों की प्रस्तुति और कैमरे के संयोजन तक का काम एक निर्देशक को करना होता है।

सिनेमेटोग्राफी: फिल्म के शॉट से जुड़ा हुआ काम सिनेमेटोग्राफी कहलाता है। सिनेमेटोग्राफी में मौलिक रूप से तीन शॉट और दो मूवमेंट होते हैं। शॉट क्लोज अप, मिड और लॉन्ग होता है, जबकि मूवमेंट पैन और टिल्ट। इसे शॉट और मूवमेंट फिल्म का व्याकरण कहा जाता है।
आय: इस क्षेत्र में विभिन्न कामों के लिए अलग- अलग वेतन मिलता है। शुरुआती स्तर पर फिल्म से जुड़े किसी भी काम में वेतन 15 से 20 हजार रुपये होता है। इस क्षेत्र में एक बार अगर यदि आप स्थापित हो गए, तो फिर आय की कोई सीमा नहीं रहती।

यह हैं कोर्स :-
पोस्ट ग्रेजुएट प्रोग्राम इन सिनेमा
पोस्ट ग्रेजुएट डिप्लोमा इन डायरेक्शन
पोस्ट ग्रेजुएट डिप्लोमा इन सिनेमेटोंग्राफी
पोस्ट ग्रेजुएट डिप्लोमा इन साउंड रिकार्डिंग एंड साउंड डिजाइन
पोस्ट ग्रेजुएट डिप्लोमा इन एडिटिंग
पोस्ट ग्रेजुएट डिप्लोमा इन आर्ट डायरेक्शन एंड प्रोडक्शन डिजाइन
सर्टिफिकेट कोर्स इन स्क्रीनप्ले राइटिंग
डिप्लोमा इन वीडियो प्रोडक्शन
बैचलर ऑफ फिल्म टेक्नोलॉजी आदि
संस्थान
फिल्म एंड टेलीविजन इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया
(एफटीआईआई), पुणे
सत्यजीत रे फिल्म एंड टेलीविजन इंस्टीट्यूट, कोलकाता
व्हिसलिंग वुड्स इंटरनेशनल, मुंबई

 

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