नई दिल्ली । यौन शोषण को लेकर दायर की गई याचिका पर सुनवाई करते हुए हाई कोर्ट ने बृहस्पतिवार को कहा कि अवांछित शारीरिक संपर्क यौन शोषण नहीं है। आकस्मिक शारीरिक संपर्क भी यौन शोषण नहीं है। न्यायमूर्ति विभू बखरू ने यह टिप्पणी करते हुए महिला वैज्ञानिक की याचिका पर सुनवाई करते हुए की।
काउंसिल ऑफ साइंटिफिक एंड इंडस्टियल रिसर्च में काम करने वाली महिला ने आरोप लगाया था कि अप्रैल 2005 में लैब में काम करते समय आरोपी ने उनके हाथ से सैंपल लेकर फेंक दिया और कमरे से बाहर धक्का दे दिया था।
कार्यस्थल पर महिला यौन शोषण-निरोधक,निषेधन और निवारण-कानून 2013
इस कानून के तहत शारीरिक संपर्क, शारीरिक संबंध बनाने की मांग या आग्रह या अश्लील टिप्पणियां करना या अश्लील सामग्री दिखाने को यौन उत्पीड़न माना जाएगा।
किसी भी तरह के अवांछित शारीरिक, मौखिक या गैर मौखिक यौन व्यवहार को भी यौन उत्पीड़न के दायरे में रखा गया है. इस कानून का उल्लंघन करने पर 50 हजार रुपये के जुर्माने का प्रावधान किया गया है।
अगर बार-बार इसका उल्लंघन किया जाता है तो जुर्माने की राशि बढ़ा दी जाएगी और जिस कार्यस्थल पर ऐसा होगा, उसका लाइसेंस या रजिस्ट्रेशन रद्द किया जा सकता है।
इस विधेयक में सभी दफ्तरों, अस्पतालों, संस्थानों और अन्य कार्यस्थलों को निर्देश दिया गया है कि वे यौन उत्पीड़न से जुड़ी शिकायतों से निपटने के लिए एक आंतरिक कमेटी बनाएं। इस कमेटी का नेतृत्व कोई महिला ही करेगी।
चूंकि भारत में बहुत सारी कंपनियों में 10 से कम कर्मचारी काम करते हैं और उनके लिए ऐसी कमेटी का गठन करना संभव नहीं है, इसलिए इस विधेयक में प्रावधान है कि जिला अधिकारी स्थानीय शिकायत समिति का गठन कर सकता है।
News Source: jagran.com
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