दार्जिलिंग चाय उत्पादकों ने यूएस और पूर्वी यूरोप के बाजारों पर लगाया दांव

कोलकाता। पिछले साल दार्जीलिंग में विरोध प्रदर्शन के कारण चाय बागान चार महीने तक बंद रहे थे। इसका नुकसान चाय बागानों को ऑक्शन से जापानी खरीदारों की गैरमौजूदगी के रूप में भुगतना पड़ रहा है। इस बीच ट्रेडर्स ईस्ट यूरोपियन और अमेरिकी मार्केट में संभावनाएं तलाश करने में जुट गए हैं। दार्जिलिंग टी एसोसिएशन के चेयरमैन बिनोद मोहन के मुताबिक, हम इन बाजारों में थोड़ी थोड़ी चाय भेजते रहे हैं। लेकिन अब हमारे द्वारा उन देशों में एक्सपोर्ट बढ़ा दिया है क्योंकि वहां दार्जीलिंग चाय की ऊंची कीमत मिलती है। हम दार्जिलिंग चाय की बिक्री के लिए टी बूटीक और टी लॉउंज को टारगेट कर रहे हैं।’

बात दे कि गोरखा जनमुक्ति मोर्चा के विरोध प्रदर्शनों के चलते पिछले साल पहाड़ी इलाके में जून से सितंबर तक जन-जीवन अस्त-व्यस्त रहा। इसी समय दार्जीलिंग टी के लिए पीक पीरियड होता है। आमतौर पर चाय के विदेशी खरीदार बाजार में सेकंड फ्लश टी आने पर उसमें ज्यादा दिलचस्पी लेते हैं। हर साल आमतौर पर 85 लाख किलो दार्जीलिंग चाय का उत्पादन होता है जिसमें से फर्स्ट फ्लश टी का उत्पादन 17 लाख किलो होता है। जिस चाय का उत्पादन नए सीजन के पहले दो महीने में होता है, वह फर्स्ट फ्लश टी कहलाता है। इस चाय हल्की होती है और यह पूरी तरह प्राइवेट डील में बिकती है।

इस साल दार्जीलिंग चाय का उत्पादन 2016 के मुकाबले 6-7 प्रतिशत कम रहने के आसार हैं। उस साल इलाके के 87 चाय बागानों में कुल 85 लाख किलो चाय का उत्पादन हुआ था। इलाके के काफी पुराने चाय बागान मालिक एस एस बगाड़िया ने कहा, ‘सेकंड फ्लश सीजन के दौरान मूसलाधार बारिश होते रहने से इस साल दार्जीलिंग चाय की फसल पर गहरा असर हुआ है। इस साल दार्जीलिंग चाय के बाजार में जापानी खरीदारों के नहीं आने के बावजूद इसके दाम में 2016 के मुकाबले 5-7 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई है। मोहन कहते हैं, हमारे कॉस्ट ऑफ प्रॉडक्शन में भी बढ़ोतरी हुई है। इसकारण दाम में बढ़ोतरी होने से चाय की बढ़ी लागत की भरपाई करने में मदद मिलेगी। दार्जीलिंग में चाय की फसल के लिए बागान का साइज बढ़ाना बहुत मुश्किल है। इसलिए हम चाय की ज्यादा कीमत वसूल करने की कोशिश कर रहे हैं।’

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