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Amrit Anand

मनुष्य के संकल्प में ही उसका भवितव्य निहित : स्वामी अवधेशानन्दं जी महाराज

पूज्य सद्गुरुदेव आशिषवचनम्
            ।। श्री: कृपा ।।
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 पूज्य "सद्गुरुदेव" जी ने कहा - यह संसार प्रभु की अभिव्यक्ति है और प्रत्येक व्यक्ति भगवान की छवि में बनाया गया है। सभी के साथ सम्मान, दयालुता और प्रेम के साथ

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हमेशा अपनी समीक्षा करते रहना चाहिए : स्वामी अवधेशानन्दं जी महाराज

पूज्य सद्गुरुदेव आशिषवचनम्
            ।। श्री: कृपा ।।
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 पूज्य "सद्गुरुदेव" जी ने कहा - यह संसार सर्वशक्तिमान परमात्मा का ही विस्तार है और वह परमसत्ता ही इस जगत की उत्पत्ति, स्थिति और लय का  कारण है। इसलिए आध्यात्मिक अंतःकरण

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मोह-माया के कारण मनुष्य अपना मूल स्वरूप भूल जाता है : स्वामी अवधेशानन्दं जी महाराज

पूज्य सद्गुरुदेव आशिषवचनम्
            ।। श्री: कृपा ।।
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 पूज्य "सद्गुरुदेव" जी ने कहा - सच्चे स्वरूप का ध्यान करें। स्वयं के वास्तविक स्वरूप का ज्ञान उच्चतम संतोष, आनंद और शांति का स्रोत है। अपने वास्तविक स्वरूप की स्मृति और बोध

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मनुष्य-जीवन ऊर्जा का अक्षय भंडार है : स्वामी अवधेशानन्दं जी महाराज

पूज्य सद्गुरुदेव आशिषवचनम्
            ।। श्री: कृपा ।।
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 पूज्य "सद्गुरुदेव" जी ने कहा - आत्म-कल्याण के पथिकों के लिए सांसारिक सुख, सफलता-असफलता, लाभ-हानि, यश-अपयश आदि कारक गौण है। अतः बाह्य कारकों से प्रभावित हुए बिना जीवन-सिद्धि के

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अलभ्य को लभ्य कर दे, वही गुरु है : स्वामी अवधेशानन्दं जी महाराज

पूज्य सद्गुरुदेव आशिषवचनम्
            ।। श्री: कृपा ।।
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  पूज्य "सद्गुरुदेव" जी ने कहा - जिस तरह सूरज की किरणें सभी को रोशनी और गर्माहट देती हैं, उसी तरह एक आत्मवान आध्यात्मिक गुरु अपनी कृपा और करुणा सभी पर दिखाता है। अध्यात्म परंपरा

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धर्म वही है जो किसी को कष्ट नहीं देता : स्वामी अवधेशानन्दं जी महाराज

पूज्य सद्गुरुदेव आशिषवचनम्
            ।। श्री: कृपा ।।
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 पूज्य "सद्गुरुदेव" जी ने कहा - पुरुषार्थ न केवल लौकिक संग्रहण के लिए उपयोगी है, अपितु दैव अनुग्रह कारक भी है। जप-तप, यज्ञ आदि पारमार्थिक उपक्रम पुरुषार्थ से ही सिद्ध होते हैं।

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तप से आत्मा निर्मल और शुद्ध होती है : स्वामी अवधेशानन्दं जी महाराज

पूज्य सद्गुरुदेव आशिषवचनम्
            ।। श्री: कृपा ।।
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 पूज्य "सद्गुरुदेव" जी ने कहा - आध्यात्मिक जीवन उत्कृष्ट एवं आत्मोन्नति कारक है।अज्ञान निवृत्ति, आत्म-जागरण एवं इहलौकिक-पारलौकिक अनुकूलताओं का सृजन आध्यात्मिक जीवनशैली द्वारा

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धर्म का अर्थ होता है – धारण, अर्थात् जिसे धारण किया जा सके : स्वामी अवधेशानन्दं जी महाराज

पूज्य सद्गुरुदेव आशिषवचनम्
            ।। श्री: कृपा ।।
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 पूज्य "सद्गुरुदेव" जी ने कहा - धर्म जीवन सिद्धि के लिए परमात्मा द्वारा बनाई गई उच्चस्तरीय व्यवस्था का नाम है। महापुरुषों के अनुसरण-धर्मानुकूल आचरण में ही प्रकृति संरक्षण और

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भारतीय संस्कृति का आदर्श-वाक्य “अनेकता में एकता एवं एकता में अनेकता” दोनों है: स्वामी…

पूज्य सद्गुरुदेव आशिषवचनम्
            ।। श्री: कृपा ।।
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 पूज्य सद्गुरुदेव जी ने कहा - "वसुधैव कुटुम्बकम्" के दिव्य भाव की उद्घोषक भारतीय संस्कृति प्रत्येक संदर्भ में नित्य नूतन और समीचीन है। आज  विश्व के समक्ष उपस्थित अति लोभ,

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ब्रह्माण्ड में व्याप्त ईश्वर की परिकल्पना का कोई छोर नही है : स्वामी अवधेशानन्दं जी महाराज

पूज्य सद्गुरुदेव आशिषवचनम्
            ।। श्री: कृपा ।।
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 पूज्य "सद्गुरुदेव" जी ने कहा - सकारात्मक विचारों में अतुल्य-ऊर्जा, शुभता और अनन्त-सामर्थ्य समाहित है। जिस प्रकार सूर्य के उदय होते ही अंधकार का निर्मूलन हो जाता है, उसी

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